ब्रिटेन से लौटाए गए भारतीय छात्र
३० अगस्त २०१२लंदन मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी (एलएमयू) लाइसेंस की कई शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहा था. इसके बाद यूनाइटेड किंगडम बॉर्डर एजेंसी ने विदेशी छात्रों को दाखिला देने का एलएमयू का लाइसेंस रद्द कर दिया. इसके बाद से यूरोपीय संघ के बाहर से आए छात्रों के सिर पर तलवार लटक रही है.
ब्रिटेन के कानून के तहत अगर इन छात्रों को 60 दिनों के भीतर ब्रिटेन के अंदर किसी दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर नहीं मिल पाता है, तो उन्हें उनके देश वापस भेजने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाएगा. जिन छात्रों को इस यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए वीजा दिया गया था और जो अगले महीने ब्रिटेन आना चाह रहे थे, उनका वीजा रद्द समझा जाएगा.
ब्रिटिश गृह मंत्रालय के नियम के अनुसार, "जब हमने लाइसेंस रद्द कर दिया और उससे पहले ही अगर किसी छात्र ने वीजा हासिल कर लिया है और अगर छात्र ब्रिटेन नहीं पहुंचा है तो उसका वीजा रद्द हो जाएगा. अगर वह इसके बाद भी ब्रिटेन आता है, तो उसे देश में घुसने की अनुमति नहीं दी जाएगी."
एलएमयू के सामने हाल के सालों में पैसों की और दूसरी दिक्कतें आ रही थीं. उसका कहना है कि लाइसेंस रद्द होने का दूरगामी नतीजा होगा. यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर मैलकम गाइल्स का कहना है कि उनकी प्राथमिकता छात्रों का भविष्य है और वह अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने की हर संभव कोशिश करेंगे.
भारतीय और गैर यूरोपीय छात्रों की मदद के लिए एक टास्क फोर्स की स्थापना की गई है. उच्च शिक्षा मंत्री डेविड विलेट्स का कहना है, "यह जरूरी है कि संजीदा छात्रों की मदद की जाए और उन्हें सलाह दी जाए, जिनका इस मामले में कोई कसूर नहीं है. अगर जरूरी हो तो उन्हें दूसरे शैक्षणिक संस्थान भी खोजने में मदद की जाए, जिससे वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें."
उन्होंने बताया कि इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय मदद देने वाली संस्था और यूके यूनिवर्सिटीज से कहा है कि इस मामले को हल करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाया जाए. यह तुरंत काम करने लगेगा.
आव्रजन मंत्री डामियन ग्रीन ने कहा कि एलएमयू ने वीजा शर्तों का घोर उल्लंघन किया है और वह ऐसी स्थिति में काम नहीं कर सकता है. ब्रिटेन ने यह साफ करने की कोशिश की है कि इस मामले से दूसरे विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे विदेशी छात्रों को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है.
ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों को गैर यूरोपीय छात्रों से भारी फीस मिलती है. डेविड कैमरन के प्रधानमंत्री बनने के बाद से यूनिवर्सिटी के बजट में काफी कटौती की गई है. इसके बाद ब्रिटेन के हर छात्र को सालाना 9000 पाउंड (करीब आठ लाख रुपये) देने पड़ते हैं, जबकि विदेशी छात्रों की फीस इससे लगभग तीनगुनी होती है.
एजेए/एमजे (पीटीआई)