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ब्रिटेन के मरीज़ों की आउटसोर्सिंग!

१८ जनवरी २०१०

ब्रिटेन के कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर कुछ ब्रिटिश मरीज़ों का इलाज भारत में किया जाए तो सरकारी पैसा भी बचेगा और अस्पतालों के बाहर लगी कतार भी कम की जा सकेगी. उनके मुताबिक इससे भारत को भी फ़ायदा होगा.

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन और आईआईएम बंगलौर ने स्वास्थ्य व्यापार की संभावना पर शोध कर रहे हैं. एक साल की रिसर्च के बाद पता चला है कि अगर ऐसा किया जाए तो दोनों देशों को फ़ायदा होगा. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा करने से ब्रिटिश सरकार सालाना 12 करोड़ पाउंड बचा सकती है.

ऐसे किसी समझौते में अस्पतालों को ऑपरेशन के बाद मरीज़ की अच्छी देखभाल को बाध्य बनाया जा सकेगा और चिकित्सा में धांधली को भी रोका जा सकेगा. कहा जा रहा है कि नए सिस्टम के तहत भारत के अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं से डॉक्टर और चिकित्सा क्षेत्र में काम कर रहे लोग भी अपने देश में ही रहेंगे. एक अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन में इस वक्त 10 हज़ार से ज़्यादा भारतीय मूल के डॉक्टर हैं.

स्वास्थ्य व्यापार के इस नए आइडिया के तहत हिप रिप्लेसमेंट और हर्निया के ऑप्रेशन के लिए अगर ब्रिटेन और भारत समझौता कर लें तो ब्रिटिश नागरिकों का इलाज जल्दी भी होगा और कुछ पैसे भी बचेंगे.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में अंग्रेज़ी बोले जाने के कारण ब्रिटेन से आने वाले लोगों को परेशानी नहीं होगी और ब्रिटिश नागरिकों को भारतीय डॉक्टरों की आदत भी है. ब्रिटेन से कई लोग हर साल प्लास्टिक सर्जरी, अंगों के ट्रांस्प्लांट और दांतों का इलाज कराने विदेश जाते हैं. लेकिन रिसर्च में यह नहीं कहा गया है कि इससे भारतीय चिकित्सा क्षेत्र पर दूसरे किस्म के प्रभाव पड़ेंगें.

रिपोर्टः एजेंसियां/एम गोपालकृष्णन

संपादनः ओ सिंह