1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बैसाखी पर 26 मील की दौड़

९ मई २०१२

टांगें न हों, तो न सही. जज्बा और हौसला तो है. सीने के नीचे से पूरी तरह अपाहिज महिला ने ब्रिटेन में मैराथन रेस पूरी करके एक नई मिसाल बना दी. इसके लिए उन्होंने खास ड्रेस पहनी और पूरी रेस बैसाखियों के सहारे पूरी की.

https://p.dw.com/p/14s7A
तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्लेयर लोमास के कदम धीरे जरूर थे, पर कमजोर नहीं. एक एक कदम हजारों टन की ताकत पैदा कर रहा था. पसीने से तरबतर लोमास बैसाखियों के सहारे बढ़ी जा रही थीं. एक कदम पीछे पति डैन हौसला बढ़ाए जा रहे थे. लंदन में फिनिशिंग प्वाइंट पर हजारों लोग जमा हो गए थे. हाथ तालियां बजाने में इस कदर मशगूल थे कि चेहरे पर ढलक जाने वाले आंसू भी नहीं पोंछे जा रहे थे. पूरा माहौल सपने की तरह लग रहा था.

बायोनिक तरीके से तैयार रीवॉक सूट पहने लोमास बढ़ी जा रही थीं. वह सीने से नीचे पूरी तरह अपाहिज हैं और अपना शरीर भी नहीं हिला सकतीं. दोनों पैर काम नहीं करते फिर भी कृत्रिम जूते और बैसाखी का सहारा है. इन सबसे बड़ी वह ताकत है, जो अंदर कहीं से आ रही है.

फिनिशिंग प्वाइंट पर लाल पट्टी लगाई गई थी. ऊपर लाल रंग के गुब्बारों का सैलाब था. लोमास के सधे हुए कदम उस लाल पट्टी को चूम लेने को बेकरार थे. एक एक कदम पर हजार हजार तालियां. रेस शुरू होने के 16 दिन बाद आखिर वह पल आ ही गया. हैरतअंगेज हिम्मत की धनी महिला ने मैराथन की पूरी दूरी यानी 42 किलोमीटर का सफर तय कर लिया. चेहरे की थकान विजयी मुस्कान के पीछे न जाने कहां छिप गई. पति डैन पीछे से निकल कर आगे आ गए. पत्नी को आगोश में लेने के लिए बाहें खोल दीं और लोमास के मन में जो कुछ चल रहा था, आंखों के रास्ते निकल आया.

Claire Lomas Spezialanzug Gelähmte Frau läuft Marathon
क्लेयर लोमासतस्वीर: picture-alliance/dpa

वहां मौजूद एक एक शख्स को पता था कि ये आंसू नहीं, बल्कि सच्चे मोती हैं. लोमास का चेहरा पति के कंधों में छिप गया और उधर घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ी ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया. तय वक्त में दौड़ पूरा कर लेने वाले एथलीट सिर झुकाए खड़े थे. इस विजय के आगे उनकी जीत भला क्या मायने रखती है. उन्होंने अपने गले से मेडल निकाल कर लोमास को सौंप दिया. उन्हें भी पता था कि जीत किसकी हुई है. लोमास ने भी साफ कर दिया कि वह "चांद से भी ऊपर" पहुंच चुकी हैं.

पांच साल पहले लोमास घुड़सवारी के दौरान बुरी तरह जख्मी हो गईं. जान तो बच गई लेकिन सीने के नीचे शरीर सुन्न हो गया. फिर भी मैराथन दौड़ने का फैसला किया. उनका कहना है, "कई बार ऐसे मौके आए कि मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इस काम को पूरा कर पाऊंगी. लेकिन जब मैंने शुरू किया तो फिर मैं बढ़ती गई. मुझे पता था कि मेरा एक कदम मुझे मंजिल के एक कदम पास लाएगा."

रेस शुरू होने के बाद उन्होंने हर रोज दो मील का सफर पूरा किया. पूरी दूरी में पति डैन और 13 महीने की बेटी मेसी उनके साथ रही. उनके मां बाप ने भी रास्ते भर हौसला बढ़ाया. मैराथन दौड़ का नियम है कि किसी तरह का मेडल पाने के लिए रेस उसी दिन पूरी करनी होती है. लोमास को कोई मेडल नहीं मिलेगा लेकिन उन्हें इसकी जरूरत भी नहीं.

32 साल की लोमास ने इस दौड़ के साथ ही चैरिटी में 86,000 पाउंड (लगभग 75 लाख रुपये) जमा कर लिए, जो पीठ या गला टूटने की वजह से अपंग हुए लोगों की मदद के लिए इस्तेमाल होगा. उनका कहना है, "मेरे हादसे के वक्त से ही लोगों ने मुझे बहुत साथ दिया है. मैं इसके लिए बहुत शुक्रगुजार हूं क्योंकि कइयों को यह साथ नहीं मिलता." उन्होंने रेस के वक्त जो पोशाक पहनी, उसे इस्राएल के अमित गोएफर ने डिजाइन किया है और उसकी कीमत 43,000 पाउंड (लगभग 38 लाख रुपये) है. जो लोग कमर के नीचे से अपाहिज हैं, वे इस पोशाक की मदद से न सिर्फ खड़े हो सकते हैं, बल्कि चल फिर भी सकते हैं.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ (एएफपी)

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी