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बेवतन जुड़वां बच्चों को मिला जर्मन वीजा

२७ मई २०१०

दो साल कानून के दांव पेंचों से लड़ने के बाद भारत में सरोगेट मदर के जरिए पैदा हुए जुड़वां बच्चों के हक में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया और अब तक मातृभूमि से मरहूम रहे इन बच्चों को जर्मनी आने का वीजा मिल गया है

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तस्वीर: Samir Kumar Dey

गुजरात में किराए की मां से ये बच्चे हुए थे, इनके जैविक माता पिता जर्मन हैं. बुधवार को सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने जस्टिस जी एस संघवी और सीके प्रसाद की एक खंडपीठ को बताया कि जर्मन सरकार ने भारत में किराए की कोख से पैदा हुए जुड़वां बच्चों को जर्मन वीजा दे दिया है और केंद्र सरकार ने सभी औपचारिकताएं और कागजी कार्रवाई पूरी कर ली है ताकि जुड़वां बच्चों और उनके माता पिता जल्द से जल्द जर्मनी लौट सकें.

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, हम उन्हें शुभकामनाएं ही दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट को उम्मीद है कि भारत सरकार सरोगेट मदर से पैदा हुए बच्चों के लिए कानून बनाएगी और ऐसे बच्चों की नागरिकता के बारे में साफ दिशा निर्देश देगी. ख़ासकर ऐसी स्थिति के लिए कि जो महिला बच्चे को जन्म दे वह भारतीय हो लेकिन जैविक पिता, और सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले पालक विदेशी हों.

इस बारे में सोलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार को कानून बनाने के अनुरोध के साथ एक पत्र लिखा है ताकि हाल में हुई इस घटना जैसी मुश्किलें पैदा नहीं हों. जर्मन दंपत्ति जॉन बालाज और उनकी पत्नी की कोशिश थी कि उनके बच्चों को भारतीय नागरिकता मिले. इन जुडवां बच्चों को फरवरी 2008 में मार्था इमेन्युएल ख्रिस्ती ने जन्म दिया. जर्मन माता पिता भारत की नागरिकता इसलिए चाहते थे क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो उनके बच्चों को जर्मनी आने की अनुमति नहीं मिलती. जर्मनी में सरोगेसी गैरकानूनी है.

इसके पहले अदालत ने सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी को कहा था कि इस मामले में मानवीय आधार पर माता पिता को रियायत दी जाए. केंद्र सरकार ने बेंच से कहा था कि भारतीय नागरिकता उन्हें नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा तभी किया जा सकता है जब बच्चे को जन्म देने वाली मां या जैविक पालकों ने उस बच्चे को छोड़ दिया हो. अब तक न तो भारत के कानून में सरोगेट मदर से जुड़ा कोई कानून है और न ही जर्मनी में. जर्मनी में तो इसे ग़ैर कानूनी माना जाता है.

11 नवंबर को उच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिए थे कि चूंकि जुडवां बच्चे भारतीय महिला की कोख से पैदा हुए हैं इसलिए उन बच्चों को भारतीय नागरिकता दी जाए. केंद्र ने नागरिकता अधिनियम 1955 के आधार पर फैसला लिया कि जिस दंपति ने सरोगेसी करने का निर्णय लिया है चूंकि वे जर्मन हैं इसलिए उनके बच्चों को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती और इसलिए उन्हें पासपोर्ट भी नहीं दिया जा सकेगा.

रिपोर्टः पीटीआई आभा मोंढे

संपादनः एस गौड़