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बुर्के के जरिए विरोध

२२ अगस्त २०१४

अठारह साल की सुमरीन फारूक को जब लंदन की सड़क पर परेशान किया गया, तो उसने स्कार्फ पहनने का फैसला कर लिया. ब्रिटेन में युवतियों के बीच स्कार्फ और बुर्का पहनने का चलन अचानक से बढ़ा है.

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तस्वीर: CLAUDE PARIS/AP/dapd

पहचाने जा सकने वाले मुसलमानों के खिलाफ ब्रिटेन में हाल के दिनों में हमले बढ़े हैं. लेकिन इसके बावजूद ज्यादा महिलाओं और युवतियों ने बुर्का पहनने का फैसला किया है, जिससे वे साफ पहचानी जा सकें.

धारणा है कि घर के मर्द महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए जोर देते हैं लेकिन सर्वे से पता चलता है कि ज्यादातर का फैसला अपना होता है. फारूक का कहना है, "मैं उस हर चीज के लिए जिम्मेदार हूं, जो मैं करती हूं. इसलिए मैं स्कार्फ भी पहनूंगी." वह पूर्वी लंदन के लेटन हाउस के इस्लामी सेंटर में स्वयंसेवी के तौर पर काम करती हैं.

Schweiz Burkaträgerin in Zürich
यूरोप के कई देशों में बुर्के पर बहसतस्वीर: imago/Geisser

कितने स्कार्फ, कितने नकाब

ब्रिटेन की आबादी करीब 6.3 करोड़ है, जिसमें मुसलमानों का हिस्सा पांच फीसदी से भी कम है. आधिकारिक तौर पर आंकड़ा नहीं है कि कितनी औरतें स्कार्फ, हिजाब या नकाब पहनती हैं. लेकिन देखा गया है कि हाल के बरसों में ऐसी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

शंजा अली 25 साल की हैं और एमए की पढ़ाई करने के बाद लंदन में एक मुस्लिम एनजीओ में काम करती हैं. उनकी मां पाकिस्तानी हैं और अली का कहना है कि उनकी मां ने कभी बुर्का नहीं पहना. पर अली खुद बुर्का पहनती हैं, "मैंने तय किया कि मैं खुद को मुस्लिम के तौर पर प्रदर्शित करूंगी. उसके बाद से मेरे साथ कभी बदतमीजी नहीं हुई है."

उनका कहना है, "कभी कभी आप भूल सकते हैं कि आपने अपना सिर ढंका है या नहीं लेकिन आप यह नहीं भूल सकते हैं कि आपने इसे क्यों ढंका है. आप इस बात को बार बार खुद को याद दिलाते रहते हैं. आप कैसे दिखते हैं, इससे जरूरी है कि आपका चरित्र कैसा है."

हाल में बढ़ा चलन

ब्रिटेन में मुस्लिम वीमेन नेटवर्क की अध्यक्ष शाइस्ता गौहर का कहना है कि न्यूयॉर्क में 9/11 और ब्रिटेन के 2005 वाले आतंकवादी हमलों के बाद ज्यादा महिलाओं ने हेडस्कार्फ पहनना शुरू कर दिया है, "कुछ महिलाओं के लिए यह दिखाने का तरीका है कि वह मुस्लिम हैं. हालांकि मुस्लिम धर्म में ऐसा करना जरूरी नहीं है."

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बुर्का वाली महिलाओं पर होते हैं हमलेतस्वीर: dapd

उनका कहना है कि ब्रिटेन की बहुत कम महिलाएं पूरे चेहरे को ढंकने वाला नकाब पहनती हैं. इस नकाब पर ब्रिटेन में बहस हो रही है कि क्या यहां की संस्कृति को देखते हुए ऐसा करना सही है. पिछले साल एक मुकदमे के दौरान जज ने कहा कि पूरी तरह नकाब से ढंकी महिला का बयान दर्ज नहीं हो सकता है. इसके बाद यूरोप के दूसरे देशों में भी इस तरह की बहस शुरू हो गई है.

बहस के बाद तय हुआ कि अदालत के अंदर महिला नकाब पहन सकती है लेकिन गवाही देते वक्त नहीं. धार्मिक जानकारों का मानना है कि पूरे चेहरे को ढंकने वाले नकाब के पीछे संस्कृति ज्यादा है, धर्म कम.

हमलों की वजह

हाल के दिनों में देखा गया है कि अपने धर्म का प्रदर्शन करने की वजह से मुस्लिम महिलाओं पर ज्यादा हमले हुए हैं. मेजरिंग एंटीमुस्लिम अटैक (मामा) संगठन का कहना है कि पहली अप्रैल 2012 से 30 अप्रैल 2013 के बीच मुस्लिमों पर 584 हमले हुए. इनमें से 74 फीसदी ऑनलाइन हमले थे. शारीरिक तौर पर हुए हमलों में से लगभग 60 फीसदी मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ थे और इनमें से 80 फीसदी ने नकाब पहन रखा था. मामा का कहना है कि मार्च 2013 और फरवरी 2014 के बीच हमलों की संख्या बढ़ कर 734 हो गई है.

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पूरे बदन के बुर्के पर काफी हुई बहसतस्वीर: dapd

पिछले साल बर्मिंघम यूनिवर्सिटी ने भी इसी तरह का रिसर्च किया, जिसमें पता चला कि पिछले 15 साल में नकाब पहनने वाली महिलाओं पर हमले हुए. हालांकि इसके बाद भी किसी ने नकाब पहनना नहीं छोड़ा.

पूर्वी लंदन में रहने वाली 17 साल की यासमीन नवसा का कहना है कि नकाब पहन कर वह अलग दिखती है, "इस्लाम में कहीं नहीं लिखा है कि आपको नकाब पहनना है, यह आपका फैसला है. अलग अलग रंगों के साथ अब यह फैशन बन चुका है." उनका कहना है कि स्कार्फ पहनना आम बात हो चुकी है लेकिन अगर आप बुर्का पहनते हैं तो लोग एक दो बार आपको जरूर देखते हैं.

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फैशन के लिए भी बुर्के का इस्तेमालतस्वीर: picture-alliance/dpa

अल्पसंख्यक बहुसंख्यक

जिन देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, वहां नकाब पहनने की रिवायत मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से ज्यादा है. 2012 में ऑस्ट्रिया, भारत, इंडोनेशिया और ब्रिटेन में एक सर्वे हुआ. इसमें मुस्लिम बहुसंख्यक इंडोनेशिया और अल्पसंख्यक भारत में महिलाओं के स्कार्फ पहनने पर राय ली गई. पता चला कि इंडोनेशिया में ज्यादातर औरतें आराम, फैशन और उदारता दिखाने के लिए इसे पहनती हैं.

लेकिन अल्पसंख्यक देशों के बारे में पता चला कि धार्मिक वजह के अलावा इत्मिनान और बदसलूकी करने वालों के विरोध के तौर पर नकाब पहनने वालों की संख्या ज्यादा है. लंदन स्कूल की रिसर्चर केरोलिन हावर्थ कहती हैं, "अल्पसंख्यक महिलाएं नकाब पहन कर अपनी सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक विरोध का प्रदर्शन करती हैं."

सुंदस अली 29 साल की हैं और उनकी हाल में शादी हुई है. उनके पति ने नकाब का फैसला सुंदस अली पर ही छोड़ दिया. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुकीं अली बताती हैं कि कुछ मुस्लिम महिलाओं को नकाब पहनने पर बोरिंग और ओल्ड फैशन वाला समझा जाता है, "यह एक गलत धारणा है कि मर्दों के दबाव में महिलाएं नकाब पहनती हैं. मेरे और मेरे दोस्तों के साथ ऐसा नहीं हुआ है."

एजेए/एएम (रॉयटर्स)