मुफ्तखोरी मंजूर नहीं
६ जून २०१६दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाले इस जनमत संग्रह के नतीजे रविवार रात आए. 76.9 फीसदी लोगों ने प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि पक्ष में 23 फीसदी वोट पड़े. प्रस्ताव में मांग की गई थी कि धनी देश स्विट्जरलैंड को अपने हर वयस्क नागरिक को हर महीने 2,500 स्विस फ्रैंक यानि करीब 1,71,000 रुपये देने चाहिए. इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह नागरिक काम करता है या नहीं.
प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि जो विदेशी नागरिक स्विट्जरलैंड में पांच साल से ज्यादा बीता चुके हैं और कानूनी रूप से निवासी हो गये हैं, उन्हें भी 2,500 फ्रैंक प्रतिमाह की बेसिक आय मिलनी चाहिए. 18 साल के कम उम्र के नागरिकों के लिए 625 स्विस फ्रैंक मांगे गए थे.
आम लोगों के एक समूह ने यह अभियान छेड़ा. एक कैफे से शुरू हुई इस मुहिम में 1,26,000 लोगों ने दस्तखत किये. सीधी लोकतांत्रिक भागीदारी वाले स्विट्जरलैंड को इसके बाद जनमत संग्रह कराना पड़ा.
अभियान चलाने वालों के मुताबिक देश में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों पाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में अगर थोड़ा सा टैक्स बढ़ाकर हर नागरिक को एक बेसिक इनकम दी जाए तो राहत मिलेगी. दूसरी तरफ सरकार और सभी राजनैतिक दलों ने जनमत संग्रह में इस प्रस्ताव को खारिज करने की अपील की. सरकार ने कहा कि अगर हर किसी को प्रतिमाह 2,500 फ्रैंक देने पड़े तो अर्थव्यवस्था बुरी तरह डगमगा जाएगी. सरकार ने कहा कि, "बिना काम के पैसा देना औद्योगिक देश स्विट्जरलैंड के लिए बहुत बड़ा कदम है."
प्रशासन के मुताबिक हर किसी को बेसिक आय देने के लिए 208 अरब स्विस फ्रैंक की जरूरत पड़ती. इतनी रकम जुटाने में सरकार के पसीने छूट जाते. टैक्स बढ़ाने और सामाजिक सुरक्षा में बड़ी कटौती करने के बाद भी 25 अरब फ्रैंक कम पड़ते.
जनमत संग्रह में हार के बावजूद यूबीआई अभियान चलाने वाले ने लुजान शहर में जोरदार पार्टी की. अभियान चलाने वाले राल्फ कुडिंग के मुताबिक 23 फीसदी वोट पाने से वे बेहद खुश हैं, "इसका मतलब है कि पांच में एक व्यक्ति ने बिना शर्त बेसिक इनकम के लिए वोट दिया. यह अपने आप में कामयाबी है."