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बिन लादेन पर क्या सोचता है जर्मनी

३० अप्रैल २०१२

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर अमेरिकी जनता खुशी मना रही थी पर जर्मन युवाओं में कार्रवाई को लेकर झिझक थी. 51 फीसदी जर्मनों का मानना था कि अमेरिका के विशेष दस्ते को बिन लादेन को पकड़ना चाहिए था, मारना नहीं चाहिए था.

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तस्वीर: Reuters

हालांकि एआरडी टेलीविजन के सर्वे में सामने आया कि ऐसा विचार रखने वालों में अधिकतर युवा थे. हालांकि 42 प्रतिशत लोगों का यह भी कहना था कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की कार्रवाई सही रही.

जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने बिन लादेन की मौत के बाद हड़बड़ी में ऐसा बयान दे दिया, जिसके लिए उनकी काफी निंदा हुई. बिन लादेन की मौत से 'मैं खुश हूं' कहने वाली मैर्केल ने ताबड़तोड़ बयान में संशोधन करते हुए कहा, "लादेन की मौत की खबर से मैं निश्चिंत हुई. बिन लादेन अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क का सरगना था जिसने कई बड़े अपराधों को अंजाम दिया. हम राहत की सांस ले सकते हैं कि वह अब किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता."

World Trade Center Anschlag 11. September 2001
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वहीं जर्मनी के गृह मंत्री पेटर फ्रीडरिष ने कहा कि बिन लादेन की मौत के बाद ऐसा बिलकुल नहीं सोचा जा सकता कि आतंक का अंत हो गया है. अफगानिस्तान में जर्मन सेना की उपस्थिति, उसका देश पर क्या परिणाम होगा इस पर भी बात हो रही है. 51 प्रतिशत जर्मन मानते हैं कि बिन लादेन की मौत के बाद आतंकी हमलों की आशंका बढ़ गई है.

जर्मनी के विज्ञान और राजनीति संस्थान में आतंकी मामलों के जानकार गिडो श्टाइनबर्ग कहते हैं कि सिर्फ 2009 में ही जर्मनी से 40 लोग पाकिस्तान आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण लेने गए.  वहीं सुरक्षा अधिकारियों को अंदेशा है कि 1990 से अभी तक कुल 522 लोग आतंकी शिविरों में शामिल हुए.

हालांकि जर्मनी में इस्लामिक कट्टरपंथ कोई नई बात नहीं क्योंकि हाल के सालों में एक के बाद एक कई मामले सामने आए हैं जिसमें जर्मन मूल के लोगों ने कट्टरपंथ अपनाया और आतंकी हमलों की साजिश रची. इतना ही नहीं बिन लादेन की मदद करने वाले चरमपंथी भी जर्मनी के उत्तरी शहर हैम्बर्ग में रह रहे थे और उन्होंने वहीं रहते हुए पढ़ाई की और 9/11 वाले हमले की साजिश रची.

Zerstörtes ehemaliges Anwesen von Osama Bin Laden in Abbottabad Pakistan
तस्वीर: picture alliance/dpa

इस गुट के मोहम्मद अता 1992 में हैम्बर्ग में आया वह यहां सिटी प्लानिंग की पढ़ाई करना चाहता था. मरवान अल शेही ने संयुक्त अरब अमीरात में शिप बिल्डिंग की पढ़ाई की वहीं जेयाद जेरा लेबनान से एरोनॉटिक्स सीखने आए. ये सभी हैम्बर्ग के अल क़द मस्जिद में मिलते और हमले की साजिश रचते. अता के घर में अमेरिकी हमले की योजना बनी.

यह पहला ऐसा खुलासा था जिसने जर्मनी को बड़ा झटका दिया. इसके बाद जर्मनी में एक के बाद एक ऐसे खुलासे हुए जिन्होंने जर्मनी में आतंकवाद के नए चेहरे को उजागर किया. बिन लादेन की मौत और उससे जुड़ी बयानबाजी जर्मनी में नहीं देखी गई. हालांकि इस्लामिक कट्टरपंथ, उससे जुड़ी चिंताएं और जर्मन मूल के युवाओं का इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर झुकाव ऐसे मुद्दे हैं जिन पर यहां बहस लगातार तेज हो रही है.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल

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