बिखर न जाएं रेत पर सजे सुदर्शन के सपने..
७ सितम्बर २०१०बालू के ढेर को मनमाफिक सजीव मूर्ति में तब्दील कर देने की कला में माहिर सुदर्शन को एक अदद नौकरी की तलाश में दर दर भटकना पड़ रहा है. अपनी नायाब कला से देश दुनिया में नाम कमाने और राष्ट्रपति सम्मान तक हासिल करने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार सुदर्शन को नौकरी देने में लाचार है.
परिवार पालने के लिए नौकरी की तलाश पूरी न हो पाने के बीच ही सुदर्शन को देश का नाम ऊंचा करने के लिए अमेरिका जाना पड़ रहा है. अमेरिका में 13 सितंबर से रेत पर कलाकृति बनाने की विश्व प्रतियोगिता होने जा रही है. इसमें हिस्सा लेने का निमंत्रण पाने वाले वह पहले भारतीय हैं.
बेरोजगारी का दर्द बयां करते हुए सुदर्शन कहते हैं "सरकार की ओर से हर बार पुरस्कार के साथ नौकरी का भरोसा तो दिया जाता है लेकिन नतीजा सिफर ही रहता है. राष्ट्रपति और मुख्यमंत्रियों सहित तमाम बड़े लोग मुझे सम्मान तो दे देते है लेकिन नौकरी कोई नहीं देता, जिससे मैं अपने परिवार की ढंग से परवरिश कर सकूं."
अंतरराष्ट्रीय स्तर की कम से कम 40 प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके सुदर्शन 15 में अव्वल भी रहे. पिछले महीने बर्लिन में हुई विश्व प्रतियोगिता में भी उन्होंने अपनी कला का लोहा मनवाते हुए चैंपियन ट्रॉफी अपने नाम की. इसके लिए असम के पत्रकार संघ ने जब सुदर्शन को सम्मानित किया तब उनका दुख फूट ही पडा़. नम आंखों से उन्होंने कहा "ट्रॉफी, मेडल और दुशालों से सिर्फ अखबारों में जगह मिल जाती है लेकिन पेट की भूख नहीं मिटती."
रिपोर्टः पीटीआई/निर्मल
संपादनः ए कुमार