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'बाय बाय बेल्जियम'- सरकार संकट में

२३ अप्रैल २०१०

शुक्रवार को बेल्जियम सरकार का भविष्य अधर में ही रहा. प्रधानमंत्री यीव लेटैर्मे के इस्तीफ़े पर किंग अलबर्ट टू अब भी विचार कर रहे हैं. उधर गठबंधन से बाहर जाने वाली पार्टी वीएलडी ने अल्टिमेटम के साथ बातचीत का प्रस्ताव रखा.

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प्रधानमंत्री लैटर्मे का इस्तीफ़ातस्वीर: AP

फ़्लेमिश वीएलडी पार्टी के अलेक्ज़ेन्डर डे क्रू ने कहा है कि वह संकट हल करने के लिए बातचीत करने को तैयार है लेकिन समझौता छह मई तक हो जाना चाहिए. बेल्गा समाचार एजेंसी से क्रू ने कहा, "जिन लोगों ने हमारा विश्वास तोड़ा है, अगर वे विश्वास फिर से बनाना चाहते हैं तो हम हालात पर फिर से विचार कर सकते हैं."

बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स फ्रांसीसी और डच बोलने वाले दो हिस्सों में बंटी हुई है. फ़्लेमिश पार्टियां चाहती हैं कि डच बोलने वाले हाल और विलवुर्दे हिस्से दुभाषी ब्रसेल्स से अलग कर दिए जाएं. इस बात को बेल्जियम की संवैधानिक अदालत के 2003 के आदेश का समर्थन है. लेकिन अगर ये सुधार किए जाने हों तो दो कम्यून में रहने वाले फ्रैंच भाषी लोगों को ख़ास मुआवज़ा मिलना चाहिए. इन सुधारों के लागू होने के साथ ही ये ख़तरा हो सकता है कि डच हिस्सों में रहने वाले फ्रैंच लोगों को स्थानीय कार्यालयों में फ्रैंच उपयोग करने का हक़ ख़त्म हो जाए.

Belgien Regierungskrise Yves Leterme gibt auf
लेटैर्मे फ़्लेमिश क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता हैंतस्वीर: AP

प्रधानमंत्री लेटैर्मे के गठबंधन की पांच पार्टियों में से तीन फ्रैंच भाषी हैं और दो डच भाषी. पांच महीने पहले ये गठबंधन इस वादे के साथ बनाया गया था कि ब्रसेल्स हाल विल्वुर्दे मामले पर इस्टर तक फ़ैसला ले लिया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बेल्जियम के पूर्व प्रधानमंत्री विल्फ्रीड मार्टेन्स का तटस्थ सुझाव भी समस्या नहीं सुलझा सका. क्योंकि फ्रैंच बोलने वाले उनके अल्पसंख्यक समुदाय को दी गई गारंटी से संतुष्ट नहीं थे.

फ़्लेमिश उदारवादी पार्टी का कहना था कि इस मामले पर संसद में वोट होना चाहिए लेकिन इससे डच भाषी लोगों के समर्थन में निर्णय जा सकता था क्योंकि संसद में डच सांसदों की संख्या साठ फीसदी है. लेकिन इस दिशा में जाने वाले फ़ैसले से सभी को ये चिंता है कि देश बंट जाएगा.

साथ ही जुलाई से बेल्जियम यूरोपीय संघ का अध्यक्ष बनने वाला है, इस पर बेल्जियम की राजनीतिक अस्थिरता का फर्क पड़ सकता है.

उधर प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े और इस मसले के हल नहीं होने पर बेल्जियम के अख़बारों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. बेल्जियम की एकता और नेताओं पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने बाय बाय बेल्जियम और क्या इस देश के बने रहने का अब भी कोई अर्थ है.. इस तरह टिप्पणियां पहले पेज पर दी हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे

संपादनः महेश झा