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बाघ भी डरते हैं वहां जाने से

७ मार्च २०११

इस समय भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में तेजी से घटते बाघों के संरक्षण के लिए योजनाओं पर भारी रकम खर्च हो रही है. उधर उत्तरपूर्वी भारत के मेघालय में अब भी एक ऐसा उत्सव होता है जिससे बाघ भी डर के मारे थर-थर कांपते हैं.

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तस्वीर: DW

इस उत्सव को रोंगखली कहा जाता है. मेघालय-बांग्लादेश सीमा पर नोंग्तालांग गांव में यह उत्सव उसी समय मनाया जाता है जब गांव वाले किसी बाघ को मार देते हैं. ग्रामीण बाघ को मार कर उसकी खाल में भूसा भर देते हैं. उसे मुख्य द्वार पर टांग कर रखा जाता है. गांव वाले उसका मांस पका कर खाते हैं. जयंतिया भाषा में रोंग का मतलब बाघ और खली का मतलब उत्सव होता है. आमतौर पर यह उत्सव जनवरी से मार्च महीने तक फसल कटने के बाद मनाया जाता है.

बेअसर कोशिशें

तेजी से कम हो रहे बाघों के गैरकानूनी शिकार के बाद होने वाले इस रोंगखली उत्सव पर रोक के तमाम प्रयास अब तक बेअसर ही साबित हुए हैं. यह राज्य की जयंतिया जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है. लोगों में मान्यता है कि इस उत्सव के जरिए देवता की पूजा से लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के अलावा महामारी, भुखमरी और अंधेपन का प्रकोप नहीं झेलना पड़ता.

Eine Familie in Meghalaya in vollem Ornat anlässlich des jährlichen Tigerfestivals
रोंगखली उत्सव में सजे हुए लोगतस्वीर: DW

गांव के जी.टी.लिंबू कहते हैं, ‘बाघ को चाहे आत्मरक्षा के लिए मारा जाए या फिर शिकार का आयोजन कर, उसके बाद देवता को खुश करने के लिए पूजा की जाती है. हम इस उत्सव के जरिए देवता को खुश करने की कोशिश करते हैं. हम सब मिलकर देवता की पूजा करते हैं और बाघ को पारंपरिक वाद्यों के साथ विदाई दी जाती है.'

गांव के लोगों की दलील है कि उनके समाज में यह उत्सव सदियों से मनाया जाता रहा है. अब आधुनिक नियमों की बजह से वह अपनी इतनी पुरानी परंपरा कैसे छोड़ सकते हैं.

परंपरा के नाम पर

गांव के लोग मानते हैं कि पूजा के बाद बाघ का शव पवित्र हो जाता है और घर में उसका एक अंश रखने पर अपवित्र आत्माएं दूर रहती हैं और सफलता हासिल होती है.

उत्सव में उत्साह के साथ भाग लेने वाले गांव के किसान मुकुल लिंग्दोह बताते हैं कि यह उत्सव आम तौर पर फसल कटने के बाद के महीनों में मनाया जाता है. आम तौर पर मारे गए बाघ या तेंदुए का मांस और अंतड़ियां निकालकर सुखा ली जाती हैं. जानवर की खाल को भूसे से भरकर गांव के बाहर विशेष रूप से बने फाटक पर लटका दिया जाता है. इस फाटक को वहां फ्लोंग कहा जाता है. गांववासियों भलाई के लिए प्रार्थना करने के बाद उत्सव का मुख्य भाग शाद ख्ला यानी बाघ-नृत्य आयोजित किया जाता है. इस नृत्य में बाघ मारने वाले व्यक्ति को खास सम्मान मिलता है और उसे सबसे पहले नाचने का अधिकार दिया जाता है.

Indonesien Tiger Flash-Galerie
खतरे में शिकारीतस्वीर: AP

जब तक उत्सव चलता है तब तक भूसा भरा बाघ का शव उसी तरह लटका रहता है. गांव के प्रवेश द्वार पर लटके ऐसे शव को गांव वाले अपनी शान समझते हैं. गांव की पुरानी परंपरा के तहत इस उत्सव के आखिर में बाघ के भुने हुए मांस से सामुदायिक भोज से आयोजित किया जाता है.

उत्सव के साथ

मुख्य उत्सव से एक दिन पहले शव को गांव के अंदर लाकर एक विशेष स्थान पर रखा जाता है. अगले दिन यानी मुख्य उत्सव के दिन सभी ग्रामीण रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाक पहनकर गांव में जुलूस की शक्ल में घूमते हैं. इस दौरान ग्रामीण जमकर नाचते-गाते हैं. गांव की तमाम गलियों को भी रंग-बिरंगे झंडों से सजाया जाता है.

वन अधिकारियों का कहना है कि इस तरह तेजी से घटते जा रहे किसी वन्य जीव को मारना कानून का उल्लंघन है. मेघालय के एक वरिष्ठ वन अधिकारी पी.के.नौटियाल का कहना है कि राज्य के वन विभाग ने इस मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू की है. उन्होंने कहा कि कुछ गांववालों की शिनाख्त करने के बाद उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं.

अधिकारियों का कहना है कि जनजातीय परंपराओं के नाम पर वन्य जीव संरक्षण कानून के उल्लंघन की इजाजत नहीं दी जा सकती. लेकिन गांव वालों का सवाल है कि आधुनिक कानून के नाम पर वह अपनी सदियों पुरानी परंपरा कैसे छोड़ सकते हैं. यानी पूरब का स्कॉटलैंड कहे जाने वाले मेघालय के उक्त इलाके में बाघों के सिर पर मंडराता मौत का साया टलने का फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आता.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा एम

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