बर्लिन में संस्कृतियों का कार्निवाल
बढ़ते राष्ट्रवाद और पॉपुलिज्म के युग में संस्कृतियों के त्योहार का महत्व बढ़ गया है. इस साल भी बर्लिन में संस्कृतियों का कार्निवाल हुआ. 1996 से यह सांस्कृतिक बहुलता और सहिष्णुता का प्रतीक है.
दुनिया भर के नृत्य दल
संस्कृतियों के कार्निवाल में हर साल अल्पसंख्यकों के नृत्यों को सड़कों पर निकलने वाली परेड के दौरान दिखाया जाता है. पिछले साल के कार्निवाल में परंपरागत चीनी नृत्य का प्रदर्शन करते डांसिंग ड्रैगन ग्रुप.
राजधानी में श्वेबिया के रंग
बर्लिन में कई सारी विशेषताएं हैं लेकिन जर्मनी के दूसरे शहरों की तरह कार्निवाल मनाना उनमें शामिल नहीं है. श्वेबिया के इलाके में लोकनृत्यों की परंपरा है. ये मंडलियां बर्लिन की परेड में भी दिखती हैं.
मानसिक सीमाओं का अंत
बर्लिन के कार्निवाल में राष्ट्रीयताओं, लिंगों और पीढ़ियों की सीमाएं टूट जाती हैं. इस तस्वीर में साम्बा क्वीन सोनिया दे ओलिवेरा संस्कृतियों के कार्निवाल परेड के एक बुजुर्ग भागीदार के साथ दिख रही हैं.
खुली दुनिया की अपील
तारंटेला ग्रुप के भागीदारों ने 2016 की परेड में एक राजनीतिक संदेश भी दिया था, अलगाव से सांस्कृतिक जड़ें खोने का खतरा है. अलगाववादी नीतियां पिछले साल बड़ा मुद्दा थीं.
परेड, कंसर्ट और स्ट्रीट फेस्टिवल
प्रसिद्ध परेड के अलावा इस मौके पर बहुत सारे दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं. इस मौके पर बर्लिन शहर में चार दिनों का बहुसांस्कृतिक महोत्सव मनाया जाता है.