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बर्लिन में भांग की दुकानें

Anwar Jamal Ashraf१७ सितम्बर २०१३

जर्मन राजधानी बर्लिन में जल्द ही भांग खरीदना वैध होगा लेकिन सीमित मात्रा में. बर्लिन के क्रॉयत्सबर्ग जिले की नई मेयर मोनिका हरमन अपने यहां जर्मनी का पहला भांग बेचने वाला कॉफी हाउस खोलना चाहती हैं.

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तस्वीर: DW

जब मोनिका हरमन ने अगस्त में क्रॉयत्सबर्ग जिले के मेयर का पद संभाला तो उन्होंने भांग को कानूनी बनाने को अपनी प्राथमिकता बना लिया. यह ऐसा विषय है जो संसदीय चुनावों से पहले शहर में विवादों का कारण बन गया है. लेकिन हरमन अपने पूर्वगामी मेयर फ्रांत्स शुल्स के नक्शे कदम पर चल रही हैं और भांग को कानूनी बनाने को इलाके के गोएरलित्सर पार्क में बढ़ती ड्रग समस्या से निबटने का रास्ता मानती है. यह जगह पिछले समय में शहर का ड्रग व्यापार का मुख्य अड्डा बन गया है.

ग्रीन राजनीतिज्ञ हरमन का कहना है, "यदि हम डीलरों और उनके सामान पर नियंत्रण करना चाहते हैं तो हमें डिस्ट्रीब्यूशन पर नियंत्रण करना होगा." उनका मानना है कि इस पहल से धीरे धीरे डीलरों का बिजनेस समाप्त हो जाएगा और ड्रगों के इस्तेमाल में भी कमी आएगी. यह एम्स्टरडम की तरह कॉफी हाउस में गांजा पीना चाहने वाले लोगों के लिए तो अच्छा है, लेकिन हरमन का कहना है कि नीदरलैंड्स की ड्रग नीति जरूरी नहीं कि बर्लिन के लिए भी एक मॉडल हो. सरकारी दुकानों में सेल्समैन को हेल्थ ट्रेनिंग होगी ताकि वे ग्राहकों को ड्रग के बारे में सलाह दे सकें

Hanfparade Berlin 2013
तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण कदम है जो ड्रग नीति में सुधार की मांग कर रहे हैं. बर्लिन में भांग समर्थकों के संगठन हांफ फरबांड के गियॉर्ग वुर्थ कहते हैं, "इसका लक्ष्य डीलरों को कारोबार से बाहर निकालना और ऐसा ढांचा बनाना है जिससे आप बिना मिलावट वाला भांग खरीद सकें, जो कम खतरनाक होता है." उनका कहना है कि उन्होंने दूसरे शहरों से इस तरह के कॉफी शॉप या स्पेन की तरह कनाबिस सोशल क्लब खोलने का अभियान शुरू किया है ताकि प्रतिबंधों की वजह से होने वाली मुश्किलों को दूर किया जा सके.

लचीलापन या पुलिस छापे

जर्मन कानून के अनुसार मारिजुआना खरीदना या बेचना गैरकानूनी है, लेकिन उसके इस्तेमाल पर स्थिति स्पष्ट नहीं है. हर प्रांत फैसला लेता है कि वहां लोग गिरफ्तारी की परवाह किए बिना कितना भांग रख सकते हैं. अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए थोड़ा सा भांग रखने से कम या कोई कानूनी पचड़ा नहीं होता. बर्लिन में इसकी सीमा 15 ग्राम है, जबकि हैम्बर्ग या नॉर्थराइन वेस्टफेलिया में सिर्फ 6 ग्राम ही है. फिलहाल भांग को वैध बनाने पर पर्याप्त राजनीतिक समर्थन नहीं मिल रहा है.

विपक्षी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के अलावा वामपंथी डी लिंके और पाइरेट पार्टियां कम प्रतिबंधकारी नीति की मांग कर रही हैं, जबकि कंजरवेटिव पार्टी भांग पर प्रतिबंध बनाए रखने के पक्ष में है. वे इस समस्या से पुलिस को निबटने देना चाहते हैं. बर्लिन की ड्रग कमिश्नर क्रिस्टीने कोएलर अजारा कॉफी शॉप खोलने के विचार को यथार्थवादी नहीं मानती, क्योंकि जर्मनी की ड्रग नीति उसे रोकने और लती लोगों को सलाह देने पर केंद्रित है.

Monika Hermann Die Grünen
तस्वीर: imago/Caro

पुलिस प्रवक्ता थोमस नॉयनडॉर्फ भी कॉफी शॉप की प्रभावशीलता को संदेह की निगाहों से देखते हैं. वे कहते हैं, "जब तक ग्राहक रहेंगे, कारोबार रहेगा." उनका मानना है कि ड्रग की खरीद बिक्री को रोकने के लिए छापों में वृद्धि से डीलर शहर के दूसरे इलाकों में चले जाएंगे. इस साल जुलाई तक पुलिस ने गोएर्लित्सर पार्क पर करीब 60 छापे मारे और 170 लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें से 90 ड्रग कानून के हनन के लिए थे.

ड्रग नीति में सुधार

इस बीच गोएर्लित्सर पार्क में ड्रग की खरीद बिक्री जारी है. इलाके की एक महिला निवासी कहती हैं, "किसी आक्रामक डीलर का मेरा कोई अनुभव नहीं हुआ है. लेकिन वे आपको आते जाते अक्सर टोकते हैं. मुझे मेरे इलाके में कॉफी शॉप से कोई एतराज नहीं है." भांग पर प्रतिबंध की नीति में सुधार का अंतिम फैसला बॉन के संघीय ड्रग इंस्टीट्यूट को लेना होगा. फिलहाल इस मामले पर बर्लिन की विधान सभा में बहस हो रही है और हॉफमन ड्रग इंस्टीट्यूट में अर्जी देने पर विचार कर रहे हैं.

मादक द्रव्यों पर प्रतिबंध को समाप्त करने पर बहस के मामले में जर्मनी अकेला नहीं है. पिछले दिनों में अमेरिका ने भी इस पर पुनर्विचार किया है और अगस्त 2013 में प्रातों को ड्रग नीति तय करने की छूट दे दी है. ऊरुग्वे में भी सितंबर में नया मारिजुआना कानून पास होने की संभावना है. सरकार उसे वैध बनाने और उसके उत्पादन और बिक्री पर नियंत्रण की तैयारी कर रही है. गियॉर्ग वुर्थ कहते हैं कि जर्मनी में इस बहस पर संसदीय चुनावों का साया है. "यदि कंजरवेटिव सरकार बनती है तो समस्या बनी रहेगी, और इसे लागू होने में और कुथ साल लग जाएंगे. लेकिन मैं उत्साहित हूं कि हम यह काम करवा लेंगे, बस समय की बात है."

रिपोर्ट: लवीनिया पीतू/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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