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समाज

बंगाल में सबसे ज्यादा होती हैं नाबालिग शादियां

प्रभाकर मणि तिवारी
९ फ़रवरी २०१८

यह सुनकर हैरत जरूर हो सकती है. लेकिन अपेक्षाकृत प्रगतिशील समझे जाना वाला पश्चिम बंगाल बाली उमर में विवाह के मामले में पूरे देश में अव्वल है.

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Bildergalerie Kinderheirat in Südasien
तस्वीर: Getty Images/AFP/Str

बीते छह साल से राज्य में एक महिला ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होने और सरकार की ओर से इस कुरीति को खत्म करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बावजूद समस्या जस की तस है. युवतियों के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 साल है. लेकिन राज्य की 40 फीसदी से ज्यादा युवतियों का विवाह इससे पहले ही हो जाता है. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे यानी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें हैं. इसमें कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में 18 से 29 साल की उम्र वाली 44 फीसदी महिलाओं की शादी कानूनी उम्र से पहले ही हो गई थी. 21 से 29 साल तक के पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 17 फीसदी है.

गांव शहर का अंतर

बाली उम्र में विवाह करने वाली युवतियों के मामले में बंगाल के बाद क्रमशः बिहार, झारखंड और आंध्र प्रदेश का स्थान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में लगभग 44 फीसदी महिलाएं न्यूनतम कानूनी उम्र तक पहुंचने से पहले ही शादी कर लेती हैं. इस मामले में पांच फीसदी आंकड़े के साथ लक्षद्वीप का स्थान सबसे नीचे है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कम उम्र में होने वाली शादियों की तादद समय के साथ घट रही है.

सर्वेक्षण में देश की 5.78 लाख महिलाओं का शामिल किया गया था. इससे उनके यौन आचरण के बारे में भी कई दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं. इसमें कहा गया है कि 25 से 49 आयु वर्ग की 10 फीसदी महिलाओं ने 15 साल की उम्र से पहले ही यौन संबंध बना लिए थे, जबकि 18 साल की उम्र से पहले ऐसा करने वाली महिलाओं की तादाद 38 फीसदी थी. इस मामले में ग्रामीण इलाकों की महिलाएं शहरी महिलाओं के मुकाबले आगे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी महिलाएं ग्रामीण महिलाओं के मुकाबले दो साल देरी से यौन संबंध बनाती हैं.

बीते साल 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबध कायम करने को अपराध की श्रेणी में रखने का फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की एक खंडपीठ ने भी एक रिपोर्ट के हवाले से बंगाल में बाल विवाह के आंकड़ों पर चिंता जताई थी. उसमें कहा गया था कि बंगाल 40 फीसदी ऐसे मामलों के साथ शीर्ष पर है. ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा बढ़ कर 47 फीसदी हो जाता है.

वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है. राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था.

कन्याश्री

राज्य के खासकर ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह के बढ़ते मामलों और इससे होने वाली चौतरफा छीछालेदर को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद वर्ष 2013 में कन्याश्री नामक एक अनूठी योजना शुरू की थी. इसके तहत आठवीं से 12वीं तक की छात्राओं को सालाना साढ़े सात सौ रुपए की स्कॉलरशिप और 18 की उम्र पूरी होने पर एकमुश्त 25 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है.

इस योजना का मकसद जहां लड़कियों में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देना हैं वहीं इससे बाल विवाह जैसी कुरीति पर भी अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी. राज्य के 16 हजार से ज्यादा संस्थानों और स्कूलों के जरिए लागू होने वाली इस योजना के तहत फिलहाल 40 लाख से ज्यादा छात्राएं पंजीकृत हैं. सरकार अब इस योजना को स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाने जा रही है. बीते साल संयुक्त राष्ट्र ने हेग (नीदरलैंड्स) में आयोजित एक कार्यक्रम में जनसेवा वर्ग में इस योजना को पुरस्कृत भी किया था.

अलग-अलग वजहें

आखिर राज्य में बाल विवाह के मामलों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? दरअसल, इसकी कई वजहें हैं. कलकत्ता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की दो एसोसिएट प्रोफेसरों-अरिजित दत्ता और अनिंदिता सेन ने बीते साल इस मुद्दे पर गहन शोध के बाद सितंबर में एक रिपोर्ट लिखी थी. उसमें उन्होंने दावा किया था कि गरीबी बाल विवाह की अकेली नहीं लेकिन एक अहम वजह है. अरिजित दत्ता कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को बढ़ावा देकर ही बाल विवाह पर अंकुश लगाया जा सकता है. कन्याश्री परियोजना के तहत धीरे-धीरे ही सही, लेकिन यह काम हो रहा है." वह कहती हैं कि मुर्शिदाबाद समेत राज्य के सबसे पिछड़े तीन जिलों में बाल विवाह और लड़कियों के पढ़ाई बीच में छोड़ने के मामलों में पहले के मुकाबले कमी आई है. सेन कहती हैं, "कन्याश्री की वजह से बाल विवाह के नकारात्मक पहलुओं के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है."

समाजशास्त्री डॉ मनोरंजन माइती कहते हैं कि स्थिति में पहले के मुकाबले मामूली सुधार जरूर हुआ है. लेकिन अब भी सरकार के साथ ही सामाजिक संगठनों को मिल कर इलाके में जागरूकता अभियान शुरू करना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है. ऐसे सतत प्रयासों के जरिए ही बंगाल के माथे पर लगे इस कलंक को मिटाया जा सकता है.