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फिर फंसी दुनिया अमीर गरीब में

२२ नवम्बर २०१३

संयुक्त राष्ट्र के सालाना पर्यावरण सम्मेलन की बैठक में ग्रीन पीस कार्यकर्ता उठ कर चले गए. ऐसे में वॉरसा में चल रहे सम्मेलन के भी विफल हो जाने के आसार हैं.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

मामला एक बार फिर अमीर और गरीब देशों की जिम्मेदारी को लेकर उलझ गया. पर्यावरण पर बातचीत शुक्रवार को पूरी हो रही है और 10 दिनों में कोई ऐसी उत्साहजनक बात सामने नहीं आई है, जिसके आधार पर वॉरसा सम्मेलन की कामयाबी की बात कही जा सके.

बातचीत उस वक्त फंस गई, जब जहरीली गैसों के उत्सर्जन को लेकर अलग अलग देशों की जिम्मेदारी की बात आई. नाटकीय घटनाक्रम में छह पर्यावरणविद और विकास ग्रुप के अधिकारियों ने बैठक छोड़ दी. ग्रुप ने एक बयान जारी कर कहा, "वॉरसा पर्यावरण बैठक से एक बेहतर भविष्य की कल्पना की जा रही थी. लेकिन यह ऐसे रास्ते पर चल पड़ी है, जहां कुछ भी हासिल नहीं होता दिख रहा है."

Umweltverbände verlassen Klimakonferenz in Warschau
वॉरसा में विरोध प्रदर्शनतस्वीर: AFP/Getty Images

क्यों छोड़ आए बैठक

इस पर ग्रीनपीस के अलावा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, ऑक्सफैम, एक्शनएड, अंतरराष्ट्रीय ट्रेड यूनियन और फ्रेंड्स ऑफ अर्थ ने दस्तखत किए हैं. उनका दावा है कि संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त 800 प्रतिभागी विरोध के पक्ष में हैं. ग्रुप ने पोलैंड की ओर अंगुली दिखाते हुए कहा कि उसने वैश्विक कोयला बैठक को हरी झंडी दिखाई है, जिसकी बैठक वॉरसा में ही हुई और बिलकुल संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण सम्मेलन के वक्त में. उन्होंने जापान की भी आलोचना की, जिसने कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य घटा दिया है. ऑस्ट्रेलिया को भी आड़े हाथों लिया गया, जिसने ज्यादा कार्बन छोड़ने वालों पर टैक्स लगाया था, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया.

ग्रीनपीस के कार्यकारी निदेशक कुमी नायडू ने कहा, "जलवायु परिवर्तन से जिन लोगों के जीवन पर असर पड़ रहा है, सरकारों ने उनके चेहरे पर तमाचा जड़ा है." गैरसरकारी संगठन यहां पर्यवेक्षक और सलाहकार के तौर पर जमा हुए हैं. लेकिन फैसला करने का अधिकार संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के पास ही है.

Klimakonferenz Warschau 21.11.2013 Ban Ki Moon
बान की मून की अपीलतस्वीर: Reuters

बान की पुकार

इससे पहले बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अपील की थी कि वे कड़े कदम उठाएं, ताकि धरती को बचाया जा सके. वॉरसा में 190 देश ऐसा समझौता करने के उद्देश्य से जमा हुए कि 2015 तक विश्व का तापमान दो डिग्री कम किया जा सके. मौजूदा हालात में पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि इस शताब्दी के अंत तक तापमान चार डिग्री तक बढ़ सकता है.

प्रतिनिधियों का कहना है कि इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए कुछ अच्छे कदम उठाए गए हैं. पेरिस में 2015 को अहम बैठक होने वाली है. यूरोपीय पर्यावरण कमिश्नर कोनी हेडेगार्ड का कहना है, "अभी भी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे लिए बेहद अहम हैं. मिसाल के तौर पर एक साफ तस्वीर कि हम कैसे 2015 तक अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. हम अपनी बातचीत में आगे नहीं बढ़ रहे हैं."

विकासशील देशों की मांग है कि इस काम के लिए अमीर देशों को ज्यादा जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्योंकि इतिहास गवाह है कि उन्होंने ज्यादा कार्बन गैस छोड़ी हैं. विकसित देश कहते हैं कि विकासशील देशों को बड़ा हिस्सा निभाना चाहिए. उनका तर्क है कि आने वाले कल में ज्यादा उत्सर्जन चीन और भारत जैसे देशों से होने वाला है. तीसरी दुनिया के विशाल देश ब्राजील के विदेश मंत्री लुई अलबर्तो फिगुरिडो मखाडो का कहना है कि नए मसौदे में "अलग अलग देशों के लिए अलग अलग जिम्मेदारियां तय की जानी चाहिए."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)

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