1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

फसल बीमा का रामबाण भी किसानों पर फेल

क्रिस्टीने लेनन
१० जुलाई २०१७

किसानों की फसली अनिश्चितताएं दूर करने के लिए बहुप्रचारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू हुए एक साल से अधिक हुआ लेकिन किसानों की चिंताएं बरकरार हैं और आत्महत्याएं जारी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दी है नसीहत.

https://p.dw.com/p/2gFII
GMF13 Klick13101 Klick13 Indien Bildergalerie Global Media Forum
तस्वीर: Thangasami Sivanu

लगभग एक साल पहले शुरू हुई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को किसानों के लिए रामबाण की तरह प्रचारित किया गया था. फसली अनिश्चितताओं के चलते कर्ज के जाल में फंसने वाले किसानों के लिए यह लाभकारी था भी. लेकिन योजना के एक साल पूरे होने के बाद भी जमीन पर इसका असर उम्मीद से काफी कम है.

अच्छे लक्ष्य

कर्ज के चंगुल में फंसने से किसानों को बचाने की क्षमता इस योजना में है. हालांकि इस योजना का लाभ सभी किसानों तक पहुंचाने में लंबा समय लगेगा. एक जागरूक किसान जगदीश पाटिल कहते हैं कि कागज पर इस योजना के लक्ष्य काफी अच्छे हैं. इस योजना के तहत बहुत कम प्रीमियम पर फसलों के बीमा का प्रावधान है. प्राकृतिक आपदा, कीट-रोगों की स्थिति में किसानों को पर्याप्त बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता मिलेगी.

अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार रस्तोगी का मानना है कि खेती को मुनाफे का सौदा बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए यह एक अच्छा कदम है. वे कहते हैं कि बीमा कंपनियों ने इस योजना को अपने लिए कमाई का साधन बना लिया है जिसके कारण किसानों तक इसका पूरा फायदा नहीं पहुंचता.

एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना पर सरकार से पूछा, "अगर किसी भी किसान को लोन दिया जाता है तो पहले उसका फसल बीमा होगा. फिर किसान लोन डिफॉल्टर कैसे हो गया? अगर फसल बर्बाद होती है तो लोन चुकाने का जिम्मा बीमा कंपनियों का होगा." समस्या यह भी है कि बैंक योजनाओं को लेकर किसान तक नहीं पहुंच पाते, ऐसे में किसान बिचौलिये के चंगुल में फंस जाते हैं.

आत्महत्याएं रातों रात नहीं रुकेंगी

तमाम किसान समर्थक योजनाओं के बावजूद किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार की कल्याणकारी योजना कागज पर नहीं रहनी चाहिये और ग्रामीण कर्ज की समस्या से निपटने के लिए मुआवजा कोई समाधान नहीं है. हालांकि कोर्ट ने फसल बीमा योजना जैसी किसान समर्थक योजनाओं के प्रभावी नतीजे आने के लिये कम से कम एक साल के समय की आवश्यकता संबंधी केंद्र सरकार की दलील से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि किसानों की आत्महत्या के मामले को रातों रात नहीं सुलझाया जा सकता है.

चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को किसानों के लिए चल रही योजनाओं को अमली जामा पहनाना होगा. पीठ ने कहा, "सरकार को पूरी ताकत किसानों के लिए तैयार कल्याण योजनाओं को कागजों से निकालकर अमल करने में लगानी होगी." कोर्ट गुजरात में किसानों के आत्महत्या के मामले बढ़ने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. बाद में न्यायालय ने इसका दायरा बढ़ाकर अखिल भारतीय कर दिया था.

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को जानकारी दी कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से 12 करोड़ में से 5.34 करोड़ किसान जोड़े गये हैं. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि किसानों को इन योजनाओं के बारे में विभिन्न स्तरों पर जानकारी दी जा रही है और 2019 तक इस योजना से 50 फीसदी किसानों को जोड़ लिया जायेगा.

आशंकाएं

मध्य प्रदेश के किसान राजू सिंह रघुवंशी ने फसल बीमा की राशि न मिलने से परेशान होकर खुदकुशी कर ली. यह आत्महत्या योजना में जटिलताओं की ओर इशारा करता है. एक किसान राधेश्याम कहते हैं कि बैंकों से सही और पूरी जानकारी नहीं मिलती. दावे के निपटारे में निजी बीमा कंपनियों की हीलाहवाली को लेकर भी वह चिंतित हैं.

कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का कहना है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बीमा कंपनियों की निरंतर निगरानी की व्यवस्था है. जानकारों का कहना है कि फसल बीमा योजना में सरकार निजी बीमा कंपनियों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर रही है. आशंका जताते हुए राजकुमार रस्तोगी कहते हैं कि कहीं निजी बीमा कंपनियां इस योजना को अपने लिए हाथ आया मौका ना समझ लें, यदि ऐसा होता है तो योजना अपने लक्ष्य से दूर रह जाएगी.