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फलीस्तीनी बस्तियों में सौर ऊर्जा पर इस्राएली ग्रहण

२५ फ़रवरी २०१२

पश्चिमी तट की कुछ फलीस्तीनी बस्तियों में सोलर ऊर्जा और पवन चक्की ने जिंदगी आसान कर दी है लेकिन अब उन पर इस्राएली नागरिक प्रशासन के एक फरमान ने संकट खड़ा कर दिया है.

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तस्वीर: AP

सोलर पैनल और पवन चक्कियों से पैदा हो रही बिजली ने फलीस्तीन के गांव में रह रहे लोगों की जिंदगी आसान बना दी है. हाथों की बजाय मशीनों से काम हो रहा है, बकरी के दूध से मशीन से मक्खन निकाला जा रहा है, खाने को खराब होने से बचाने के लिए उन्हें फ्रिज में रखा जा रहा है और अंधेरा घिरने से पहले बच्चों को होमवर्क करने की जल्दी नहीं क्योंकि सूरज ढलने के बाद भी घर में रोशनी होती है.

जर्मनी की सहायता से इस्राएली समाजसेवियों के लगाए ये सोलर पैनल अब खतरे की जद में हैं. इस्राएली अधिकारी कह रहे है कि वो वैकल्पिक ऊर्जा से रोशन 16 गांवों में से छह गांवों के पैनल और टरबाइन ध्वस्त करने जा रहे हैं क्योंकि इसके लिए अनुमति नहीं ली गई. ये गांव पश्चिमी तट के इस्राएली नियंत्रण वाले हिस्से में हैं.

जर्मन सरकार ने इस पर चिंता जताते हुए सफाई मांगी है. यह विवाद कूटनीतिक खींचतान से कहीं ज्यादा बड़ा नजर आ रहा है. इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्राएल की आलोचना बढ़ रही है. पश्चिमी तट का 62 फीसदी हिस्सा पूरी तरह इस्राएली नियंत्रण में है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निगरानी रखने वाले लोग चेतावनी दे रहे हैं कि इस्राएल फलीस्तीनी विकास को पश्चिमी तट वाले अपने हिस्से में बुरी तरह दबा रहा है. इन्हीं इलाकों में इस्राएली बस्तियों को खूब सारी सुविधाएं दी जा रही हैं. यह हालत तब है जब कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का ज्यादातर हिस्सा इस इलाके में इस्राएली बस्तियों को गैरकानूनी मानता है.

पश्चिमी तट के 90 फीसदी से ज्यादा फलीस्तीनी प्रधानमंत्री सलाम फय्याद के नेतृत्व वाली स्वतंत्र सरकार के शासन में बिता रहे हैं. अर्थशास्त्री फय्याद की बेहतर प्रशासन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ होती है. उन्होंने अपने शासन वाले इलाकों में कोर्ट, पुलिस और दूसरी संस्थाओं को बेहतर ढंग से खड़ा किया है. फय्याद ने अपनी तरफ से काफी कोशिशें की है. फलीस्तीनी सरकार के प्रवक्ता घसन खातिब का कहना है कि मदद देने वाले देश बढ़ती समस्या से वाकिफ हैं, "लेकिन दुर्भाग्य से इस्राएल को जिम्मेदार ठहराने की कोई कार्रवाई नहीं हो रही है."

इस इलाके में सबसे ज्यादा असुरक्षित बकरी और भेड़ पालने वाले परिवार हैं, जिन्हें पश्चिमी तट के बंजर इलाकों में अपना जीवन बिताना पड़ रहा है. इस्राएल उनके छोटे छोटे समुदायों को मान्यता नहीं देता और उनकी बस्तियों को गैरकानूनी बताता है. इन लोगों का कहना है कि उनकी जड़ें कई पीढ़ी पुरानी है. इसी तरह के एक समुदाय अल थाला की दक्षिण पश्चिमी तट पर बनी बस्ती में पिछले साल अगस्त में जर्मन सहायता एजेंसियों की मदद से पहली बार बिजली आई. मेडिको और कॉमेट एमई नाम के इस्राएल समर्थक वैज्ञानिकों के गुट ने सोलर पैनल लगाए. यह गुट इलाके के 30 समुदायों को सोलर पैनल और पवन चक्की से लैस करने के अभियान पर निकला था. इन सोलर पैनलों और पवन चक्कियों ने लोगों की जिंदगी काफी आसान भी बना दी.

पिछले महीने इस्राएल के नागरिक प्रशासन ने अचानक काम रोकने का फरमान जारी कर दिया. इसके साथ ही अल थाला और पांच दूसरे समुदायों में लगे सोलर पैनलों और पवन चक्कियों को ध्वस्त करने का फरमान सुना दिया. उनका कहना है कि इन्हें लगाने के लिए किसी ने अनुमति नहीं मांगी इसलिए यह गैरकानूनी हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि इस मामले पर एक कमेटी फिर से विचार करेगी.

कॉमेट एमई से जुड़े वैज्ञानिक एलाद ओरियान कहते हैं कि उनके ग्रुप ने इसलिए अनुमति नहीं मांगी क्योंकि इस्राएल इन समुदायों को गैरकानूनी मानता है. ऐसे में अनुमति मांगना बेकार होता. उनका मानना है कि इन्हें तोड़ने का काम कुछ महीने बाद शुरू होगा तब तक जर्मन सरकार राजनीतिक दबाव बनाने में कामयाब हो जाएगी. जर्मनी ने इस परियोजना के लिए चार लाख यूरो दिए हैं. जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने सरकारी फरमान पर चिंता जताई है और कहा है कि वो स्थिति पर नजर रखे हुए है. इसी तरह के मामले में पोलैंड के उप विदेश मंत्री जेरजी पोमियानोव्सकी ने इस्राएल के राजदूत को बुला कर अपनी चिंता जाहिर कर दी है. इस्राएल का कहना है कि जो लोग अब हल्ला मचा रहे हैं उन्होंने न तो अनुमति मांगी और न ही सुनवाई के दौरान हाजिर हुए.

रिपोर्टः एपी/ एन रंजन

संपादनः महेश झा

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