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अपने मकसद में नाकाम है फरक्का बांध

प्रभाकर, कोलकाता२२ अगस्त २०१६

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बने फरक्का बांध को बिहार में आने वाली सालाना बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए केंद्र सरकार से इस बांध को तोड़ने या ठोस गाद प्रबंधन नीति बनाने की अपील की.

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तस्वीर: Sourav Sarangi

बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों के दौरे के बाद नीतीश ने एक बार फिर जोरदार तरीके से यह मुद्दा उठाया है. नीतीश का आरोप है कि फरक्का बांध बनने से पहले बिहार में बाढ़ की हालत इतनी खराब नहीं थी. वर्ष 1975 में इस बांध के शुरू होने के बाद नदी की तलहटी में लगातार गाद जमा होती रही है. इसकी वजह से उसकी गहराई कम हो गई है. नतीजतन बरसात के दिनों में कुछ दिनों की बारिश से ही गंगा उफनने लगती है.

फिलहाल राजधानी पटना पर भी बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है. राज्य के 12 जिलों के लाखों लोग पहले से ही बाढ़ की चपेट में हैं. मुख्यमंत्री का आरोप है कि फरक्का बांध का खमियाजा बिहार को भुगतना पड़ता है. वह बीते लगभग एक दशक से केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाते रहे हैं. लेकिन अब तक इस मुद्दे पर किसी भी सरकार ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है. नीतीश कहते हैं, "गंगा नदी में लगातार जमती गाद की वजह से उसकी गहराई बहुत कम हो गई है. राज्य के 12 जिलों में आई बाढ़ इसी का नतीजा है." उनका कहना है कि नदी से गाद साफ करने का एकमात्र तरीका यही है कि फरक्का बांध को तोड़ दिया जाए. अगर केंद्र के पास इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प है तो उसे तुरंत नदी से गाद की सफाई का काम शुरू कर देना चाहिए.

नीतीश कुमार ने इससे पहले बीती 17 जुलाई को दिल्ली में अंतरराज्यीय परिषद की 11वीं बैठक में फरक्का बांध को तोड़ने का मुद्दा उठाया था. उन्होंने तब कहा था, "फरक्का बांध से जितना फायदा है उससे कहीं ज्यादा नुकसान है." अभी स्वाधीनता दिवस के मौके पर भी मुख्यमंत्री ने कहा था कि फरक्का बांध की वजह से गंगा में गाद जमा होने की वजह से नदी की गहराई लगातार कम होती जा रही है. हर साल बिहार को इसका खमियाजा भरना पड़ता है. अब एक बार फिर उन्होंने केंद्रीय आपदा प्रबंधन और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से बिहार में गंगा की गहराई की जांच करने को कहा है.

फरक्का बांध

वर्ष 1975 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में गंगा पर बना 2.62 किलोमीटर लंबा फरक्का बांध शुरू से ही विवादों में रहा है. इस बांध को बनाने का एकमात्र मकसद गंगा से 40 हजार क्यूसेक पानी को हुगली में भेजना था ताकि हुगली में कोलकाता से फरक्का के बीच बड़े जहाज चल सकें. इसमें 109 गेट बने हैं. तब यह सोचा गया था कि इस पानी से कोलकाता बंदरगाह में जमा होने वाली गाद बह जाएगी और यह दोबारा काम लायक हो जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. कोलकाता बंदरगाह की हालत अब भी जस की तस है. उल्टे इस बांध के चलते भारत व बांग्लादेश, जो इस बांध से महज 16 किलोमीटर दूर हैं, की ओर से इस बांध के औचित्य पर पुनर्विचार करने की मांग लगातार तेज हो रही है.

हुगली नदी में गाद जमने की समस्या बहुत पुरानी है. लेकिन देश के आजाद होने के बाद दामोदर नदी पर बने बांध के चलते यह समस्या काफी गंभीर हो गई. फरक्का बांध का मकसद इसी समस्या को दूर करना था. उन्नीसवीं सदी में सर आर्थर काटन ने पहली बार ऐसा कोई बांध बनाने का सुझाव दिया था. देश आजाद होने के बाद ऐतिहासिक कोलकाता बंदरगाह गाद की समस्या के चलते लगातार बदहाली की ओर बढ़ता रहा. एक दौर ऐसा भी आया जब पानी की गहराई कम हो जाने की वजह से बड़े जहाज कोलकाता तक नहीं पहुंच पाते थे. उसी दौरान सर आर्थर काटन के सुझावों पर नए सिरे से विचार करते हुए फरक्का में बांध बनाने का फैसला किया गया.

औचित्य पर सवाल

अब बीते कुछ वर्षों से इस बांध के औचित्य पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. नदी विशेषज्ञ डा. कल्याण रूद्र कहते हैं, "फरक्का बांध हुगली के मुहाने से गाद साफ करने के अपने इकलौते मकसद में नाकाम रहा है." कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के आंकड़ों से भी इसकी पुष्टि होती है. उसका कहना है कि फरक्का बांध बनने से पहले हुगली में गाद जमा होने की रफ्तार 6.40 मिलियन क्यूबिक मीटर सालाना थी जो अब बढ़ कर सालाना 21.88 मिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच चुकी है. डा. रूद्र कहते हैं कि हुगली नदी में ताजे पानी के साथ आने वाली गाद की मात्रा इतनी ज्यादा है कि फरक्का से आने वाले 40 हजार क्यूसेक पानी से उसे साफ करना असंभव है.

बांग्लादेश सरकार और वहां के नदी विशेषज्ञ भी लंबे अरसे से फरक्का बांध से आम जनजीवन पर होने वाले प्रतिकूल असर का मुद्दा उठाते रहे हैं. उनका आरोप है कि यह बांध बांग्लादेश में गाद का बहाव तो रोकता ही है गंगा के पानी को भी बांग्लादेश के डेल्टा से दूर कर देता है. इसका असर लाखों स्थानीय किसानों और मछुआरों पर पड़ता है. बांग्लादेश का आरोप है कि जल बंटवारे पर संधि के बावजूद उसे गंगा से उतना पानी नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए था.

दूसरी ओर, भारतीय सीमा में भी आम लोगों को तट-कटाव की गंभीर समस्या से जूझना पड़ रहा है. फरक्का बांध के चलते गाद जम कर नदी की गहराई कम हो जाने के कारण बारिश के दिनों में तट-कटाव की समस्या काफी गंभीर हो जाती है. इससे फरक्का और आसपास के इलाकों में रहने वालों ने भी बांध पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

यानी इस बांध से न तो इस पार के लोगों को फायदा है और न ही उस पार के. उल्टे इससे बांग्लादेश से लेकर बंगाल और बिहार तक के लोगों की समस्याएं और बढ़ रही हैं. शायद इसलिए नीतीश कुमार अबकी जोरदार तरीके से इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है.