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प्रतिभा के लिए इंफोसिस का गांव

५ दिसम्बर २०१२

उद्यमियों की फसल उपजाने के लिए इंफोसिस खास गांव बनाने में जुटा है. ऐसा गांव जो इंजीनियरों की कच्ची जमीन पर उनके हुनर के बीज को सुविधा की खाद दे कर निवेश और सलाह से सींचेगा.

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तस्वीर: Fotolia/KochPhoto

इंफोसिस के संस्थापकों में से एक क्रिस गोपालकृष्णन कोच्चि में कंपनी की शानदार इमारत की एक पूरी दीवार पर लगे पोस्टर से झांकते हुए नजर आते हैं. पोस्टर पर संदेश लिखा है, "हमने इंफोसिस को एक कमरे में शुरू कर यहां पहुंचाया, अब आपकी बारी है." उनका संदेश स्टार्टअप विलेज के उन भावी उद्यमियों के लिए है जो अरबों डॉलर की अगली दिग्गज तकनीकी कंपनी बनाने का सपना देख रहे हैं.

सॉफ्टवेयर सेवा देने वाली भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी इंफोसिस को कुछ मध्यमवर्गीय इंजीनियरों ने कोई तीन दशक पहले शुरू किया था, लेकिन इतना वक्त बीतने के बाद भी देश इस तरह के पहली पीढ़ी वाले उद्यमियों को पनपाने के लिए उपजाऊ जमीन देने में नाकाम रहा है. स्टार्टअप विलेज इस कमी को मिटाना चाहता है. कोशिश है कि अगले 10 सालों में इंजीनियरों को मदद दे कर 1,000 इंटरनेट और मोबाइल कंपनियां खड़ी की जाएं. स्टार्टअप विलेज सदस्यों को ऑफिस की जगह, सलाह मशविरा और तकनीकी दुनिया के दिग्गजों से विचार विमर्श करने का मौका देता है. इन दिग्गजों में गोपालकृष्णन भी शामिल हैं, यह प्रोजेक्ट इन्हीं के दिमाग की उपज है.

वैसे आलोचकों का कहना है कि सिर्फ इतने से ही तस्वीर नहीं बदलेगी. जब तक भारत नए उद्यमियो के राह की बाधाएं दूर नहीं करता, तब तक मंजिल पाना आसान नहीं है. इसमें लालफीताशाही से लेकर, नई खोजों और निवेशकों की कमी तक शामिल है जो एशिया के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को नए उद्यमियों से दूर कर रही है. दुनिया के स्तर पर उद्यमशीलता के विकास के मामले में भारत 79 देशों की सूची में 74वें नंबर पर है. जाहिर है कि कारोबार शुरू करने के लिहाज से यह दुनिया की सबसे खराब जगहों में है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि हिंसा और अराजकता से जूझ रहा पाकिस्तान और गरीबी के दलदल में गले तक डूबे नेपाल में भी भारत की तुलना में कारोबार शुरू करना आसान है. भारत में बिजली से लेकर पूंजी हासिल करना बहुत ज्यादा समय लेने वाला और लंबी कागजी कार्रवाई वाला काम है.

भारत में जन्मे उद्यमी अमेरिका में बेहद सफल हैं. वहां किसी भी प्रवासी समूह की तुलना में ज्यादा भारतीयों ने तकनीकी कंपनियों की शुरुआत की है पर यही लोग भारत में सिलिकॉन वैली जैसी चीज बनाने में नाकाम रहे. 23 साल के कालिदिल कालिदासन ने दो साल पहले केरल में मोबाइल एप बनाने की कंपनी शुरू की और उन्हें इस काम के लिए एक भी निवेशक नहीं मिला. कालिदासन कहते हैं, "हम अकेले हैं, हमें नहीं बता कि कैसे कंपनी बनाई जाए, कैसे बेचा जाए. हमने कोशिश की और नाकाम हुए, फिर कोशिश की फिर नाकाम हुए." कालिदासन अब स्टार्टअप विलेज में हैं और एक ऐसी चीज बनाने में जुटे हैं जो सरकार को अवैध गर्भपात का पता लगाने में मदद करेगी.

Symbolbild hervorragend ausgebildete IT-Spezialisten in Indien
तस्वीर: AP

छोटी जरूरतें

सात महीने पुराना स्टार्टअप विलेज भावी उद्यमियों को काम करने की जगह बाजार दर से 90 फीसदी कम पर मुहैया कराता है. इसके अलावा कंप्यूटर, तेज गति का इंटरनेट कनेक्शन, कानूनी और बौद्धिक संपदा से जुड़ी सेवा और बड़े निवेशकों तक पहुंच देता है. स्टार्टअप विलेज उभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ लेकिन 68 उद्यमियों और उनकी टीम यहां की दो इमारतों में डट गई है. करीब एक लाख वर्ग फुट यानी बास्केटबॉल के दो कोर्ट के बराबर की जगह में बन रहा स्टार्टअप विलेज 2014 तक पूरी तैयार हो जाएगा.

पहले स्टार्टअप विलेज को सरकार और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी से तैयार किया गया है. गोपालकृष्णन इसके प्रमुख प्रमोटर हैं और इसमें ब्लैकबेरी बनाने वाली कंपनी रिसर्च इन मोशन और आईबीएम का भी सहयोग है. गोपालकृष्णन अपने गृह राज्य में शुरु हो रहे इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी उत्साहित हैं. विलेज टीम ने जान बूझ कर केरल को इसके लिए चुना क्योंकि दिल्ली और मुंबई के मुकाबले यहां खर्च कम है. इसके अलावा राज्य में मौजूद 150 इंजीनियरिंग कॉलेज इसके लिए जरूरी शुरूआती उत्साह का माहौल बनाने में मददगार हैं. हालांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि स्टार्टअप विलेज उतने काम का साबित नहीं होगा क्योंकि उनकी राय में पैसे के अलावा सलाह के रूप में उद्यमियों को सहयोग की जरूरत पड़ती है. माइक्रोसॉफ्ट एक्सीलरेटर के स्थानीय सीईओ मुकुंद मोहन कहते हैं, "भारत में उतने ज्यादा उद्यमी नहीं हैं और केरल में तो ऐसे लोगों की भारी कमी है जिनके पास सॉफ्टवेयर कंपनी बनाने, बढ़ाने और बेचने का हुनर हो." माइक्रोसॉफ्ट एक्सीलरेटर ने बैंगलोर में कई कंपनियों को शुरू करने में मदद दी. मुकुंद कहते हैं, "अगर आप पहले वहां नहीं रहे और आपने ऐसा नहीं किया है तो आप क्या सलाह देंगे." बैंगलोर में स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने में कोई खास काम नहीं हुआ. यहां बहुत सारे आशावादी फाइनेंसर और सीईओ बनने की ख्वाहिश रखने वाले लोग हैं लेकिन वो नियमों की चक्की और सरकार की आधी अधूरी इच्छा से जूझ रहे हैं.

भारत में हर साल बमुश्किल 700 तकनीकी स्टार्टअप शुरू किये जाते हैं जबकि अमेरिका में यह संख्या 14,000 है. भारत में जोखिम से बचने वाला मध्यवर्ग बेरोजगारी की सूरत में ही कारोबार की दुनिया में कदम रखता है. यहां समस्या यहा है कि अगर कोई कहे कि वह विप्रो या इंफोसिस में काम करता है तो उसकी ज्यादा इज्जत होती है लेकिन कहे कि खुद का कारोबार है तो लोग यही समझते हैं कि इसे नौकरी नहीं मिली. ऐसे माहौल में भावी उद्यमियों के मन की हालत समझी जा सकती है लेकिन फिर भी कोशिश जारी है.

एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)