प्रकृति का साथी ज्वालामुखी
२ अप्रैल २०१४टकाना ज्वालामुखी में आखिरी बार विस्फोट 1950 के दशक में हुआ. तब इससे निकला गुबार 4,000 मीटर की ऊंचाई तक उठा. इसके बाद से यह शांत है. इलाके में कहानी कुछ ऐसी चलती है, "यह एक ड्रैगन था, जो आग उगलने के बाद सो गया. अब यह चुपचाप सोया है. हर रोज बादलों को कंबल बना कर इसे ओढ़ कर सो जाता है और इसकी वजह से बादलों की पारिस्थितिकी तैयार हुई है."
लेकिन हकीकत में आस पास की जमीन उपजाऊ हो गई है. सरकार ने किसानों को जमीन मुफ्त में दी है, जहां वे अपनी मर्जी से कुछ भी उगा सकते हैं. बस उन्हें मक्का और बीन उगाने की इजाजत नहीं है.
ढलान वाली जगहों पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए खास सुरक्षा दीवार तैयार की गई है. प्रकृति संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय यूनियन यानि आईयूसीएन के रिसर्चर खावियर रामिरेज का कहना है, "जब पानी आता है, तो रास्ते में मिलने वाली हर चीज़ को अपने साथ बहा ले जाता है और वह भी बहुत तेज रफ़्तार से. कीचड़, मिट्टी और पत्थर. सब पानी के साथ बह जाते हैं. इस वजह से निचले इलाकों में बाढ़ आती है."
पेड़ों के तनों से बनाई गई इन सुरक्षा दीवार की वजह से स्थिति बेहतर हुई है. किसानों की खेती अच्छी हो रही है और प्रकृति का भी संरक्षण हो रहा है.
एजेए/ओएसजे