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प्यार के लिए भारत आते हैं अफ्रीकी, मिलता क्या है?

एम अंसारी, दिल्ली१७ जून २०१६

भारत में मिनी अफ्रीका बन रहा है. दिल्ली में ही इतने अफ्रीकी हैं कि उनके अपने रेस्तरां, सलून और दुकानें खूब चल रही हैं. लेकिन हाल की घटनाओं से क्या उनका नजरिया बदला है. एक पड़ताल...

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तस्वीर: DW/A. Ansari

बेहतर भविष्य और रोजगार की तलाश में नाइजीरिया से ब्लेसिंग दो साल पहले भारत आ बसीं. दिल्ली के सफदरजंग इलाके के अर्जुन नगर में ब्लेसिंग खुद का अफ्रीकी ब्यूटी सलून चलाती हैं. इस इलाके में अफ्रीकी लोगों को ध्यान में रखते हुए कई सलून, रेस्तरां, खाने-पीने की चीजों की दुकानें खुल गई हैं.

ब्लेसिंग कहती हैं कि भारत में अफ्रीकियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है और वह इसका फायदा लेने यहां आ है. भारत में घाना, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, लीबिया, कॉन्गो, कीनिया से लोग पढ़ाई, बिजनेस और मेडिकल सुविधाओं के लिए बड़ी संख्या में आ रहे हैं.

नाइजीरियन फैशन डिजाइनर जॉन उचे जीसस का दक्षिणी दिल्ली के अर्जुन नगर में डिजाइनर कपड़ों का बुटीक है. जॉन ने दिल्ली के ही एक फैशन स्कूल से पढ़ाई की है और उसके बाद खुद का डिजाइनर बुटीक खोला है. वह अपने आपको नाइजीरिया में पैदा हुए भारतीय कहते हैं. जॉन बताते हैं कि पढ़ाई के दिनों से ही उनका भारतीयों और यहां की संस्कृति से खासा लगाव रहा है. यही कारण है कि उन्होंने नाइजीरिया ना जाकर यहां अपना कारोबार करने का फैसला किया.

Indien-Afrika-Gipfel in Neu Delhi Gruppenfoto
कूटनीतिक रिश्तों में कड़वाहट लाते नस्ली हमलेतस्वीर: Reuters/A. Abidi

दिल्ली के कृष्णा नगर, खिड़की एक्सटेंशन, मालवीय नगर, अर्जुन नगर और राजपुर खुर्द में अफ्रीकी नागरिकों की तादाद अच्छी खासी है. वे अपने कपड़ों को इन्हें इलाकों में रहने वाले अफ्रीकी के साथ साथ भारतीय ग्राहकों के लिए बनाते हैं.

मन में हिन्दुस्तानी प्रेम

अर्जुन नगर में ही अफ्रीकी महिलाओं के लिए सलून चलानी वाली ब्लेसिंग का कहना है कि उन जैसे लोगों के बाल थोड़े अलग होते हैं और भारत में उनकी देखरेख के लिए कोई विशेष सलून नहीं है ऐसे में अफ्रीकी मूल की महिलाओं के बीच यह सलून काफी लोकप्रिय है. ब्लेसिंग के मुताबिक, "दो साल पहले मैं यहां कारोबार करने आई थी लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि मेरा व्यापार चलेगा कि नहीं. मैं आज यह कह सकती हूं कि यह सलून भी अच्छा चल रहा है और मेरे ग्राहकों में अफ्रीकी के अलावा भारतीय भी शामिल हैं. मेरे लिए यह तो गर्व की ही बात है."

साल 2012 में 150 डॉलर के साथ लागोस से दिल्ली पहुंचे चुक्स अघेडे के पास शुरुआती दिनों में कोई काम नहीं था. कई दिनों तक उन्होंने एक अपने नाइजीरियाई दोस्त के साथ कमरा साझा किया. जब कोई काम नहीं मिला तो चुक्स अघेडे के दोस्त ने उन्हें कपड़ा धुलाई करने का आइडिया दिया. आज अघेडे अर्जुन नगर में ही 8000-10000 रुपये किराये के फ्लैट में रहते हैं और अपना लाउंड्री का कारोबार कर रहे हैं. दिल्ली के अर्जुन नगर में आने के बाद ऐसा लगता है कि शायद यह मिनी अफ्रीका है. यहां नाइजीरियाई रेस्तरां, पुरुषों के लिए हेयर कटिंग सलून, महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर मिल जाएंगे.

हाल के दिनों में अफ्रीकी नागरिकों के साथ बुरे बर्ताव और मारपीट की घटनाएं सामने आईं. इस पर ब्लेसिंग कहती हैं, "हम अपना देश छोड़ भारत में पैसे कमाने और बेहतर जिंदगी बिताने के लिए लिए आए हैं. कई बार हमारे साथ इक्का-दुक्का घटनाएं होती हैं लेकिन मैं इस पर ध्यान नहीं देती. हमें और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. मैं उन चीजों को अनदेखा कर देती हूं." ब्लेसिंग कहती हैं कि उनका परिवार नाइजीरिया में है और एक दिन वह भी भारत से ढेर सारा पैसा कमाकर नाइजीरिया वापस लौट जाना चाहती है.

भारतीय समाज में घुलते मिलते अफ्रीकी

डिजाइनर जॉन का भारत के प्रति स्नेह और लगाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. जॉन इसके लिए अपने भारतीय दोस्तों और जानने वालों को श्रेय देते हैं. जॉन के मुताबिक, "मैं खुशनसीब हूं कि मुझे अच्छे भारतीय दोस्त मिले. मैं जिन कर्मचारियों से काम लेता हूं वे भी मुझे अच्छी तरह से समझते हैं. वे जानते हैं कि मैं एक नाइजीरियाई हूं फिर भी वे मेरे साथ हर कदम पर साथ देते हैं. भारत और नाइजीरिया का संबंध काफी पुराना है और दोनों देशों के बीच अपार संभावनाएं हैं. हम दोनों देशों के नागरिकों को इन संभावनाओं को तलाशना चाहिए और इस दोस्ती को सकारात्मक दिशा पर ले जाना चाहिए." नस्लभेदी टिप्पणियों के बारे में जॉन कहते हैं कि वे जानते हैं कि पिछले कुछ समय से हो रही घटनाओं के कारण संबंध खराब हुए हैं लेकिन नस्लभेद कोई भारत की समस्या नहीं. जॉन के मुताबिक, "नस्लभेद तो पूरी दुनिया में है. यह भारत तक ही सीमित नहीं. कोई भी देश बेगुनाह नहीं है. हमें भगवान ने एक इंसान बनाकर भेजा है और हम भगवान के अच्छे दूत साबित हों. सही रास्ते पर चलें और अपने अपने देश को महान बनाएं."

नस्लभेद से मन में कड़वाहट

वहीं लीबिया से भारत पढ़ने आए इब्राहिम का नजरिया पिछले चार सालों में भारत के प्रति तेजी से बदला है. इब्राहिम कभी भारत में पढ़ने की दिली इच्छा रखते थे लेकिन हाल कि हिंसक घटनाओं ने उनके मन के अंदर असुरक्षा का भाव पैदा कर दिया है. इब्राहिम के मुताबिक, "भारत एक महान देश है, उसका लंबा इतिहास है, उसकी संस्कृति बहुत गहरी है, मैंने भारत को इन्हीं सब कारणों के लिए अपनी पढाई के लिए चुना लेकिन अब मैं एमबीए के लिए अमेरिका, कनाडा या फिर चीन जाना पसंद करूंगा." कारण पूछने पर इब्राहिम कहते हैं, "मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझपर अब तक हमला नहीं हुआ है. भारत में कुछ लोग हैं जो आपको ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे आप गली के कुत्ते हों. उनकी नजरों में एक अपमान का अहसास होता है. सरकारें कुछ नहीं करतीं. अगर चाहे तो सरकार अफ्रीकी नागरिकों की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ कर सकती है. हम यहां इसलिए नहीं आते कि हमारे पास पैसे नहीं हैं, हमारे पास पैसे हैं. हम भारत आ सकते हैं तो किसी भी देश में पढ़ने के लिए जा सकते हैं. नस्लभेद से कुछ हासिल नहीं होगा. हमें बेहतर इंसान बनना होगा."

सरकारी आकंड़ों की मानें तो साल 2012 में 40 हजार नाइजीरियाई लोगों ने भारतीय वीजा लिया था और तथ्य यह है कि अभी भी 5000 से 6000 नाइजीरियाई दिल्ली में रह रहे हैं.