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पुरुषों के जीन में छिपा है रिकॉर्ड बनाने का राज

१५ जुलाई २०१२

पुरुष बाहर का काम काज देखते हैं जबकि महिलाएं घर गृहस्थी संभालती हैं. बंटवारा पुराना है. लेकिन अब शोध के बाद पता चला है कि रिकॉर्ड तोड़ने और कुछ रोमांचक करने का जुनून पुरुषों के जीन में ही होता है.

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तस्वीर: Johannes Hacker

इसके उलट महिलाएं स्वाभाविक रूप से व्यवस्था संभालना पसंद करती हैं.

इंसान के व्यवहार का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता मानते हैं कि रिकॉर्ड की नई नई बुलंदियों को छूना इंसान का स्वभाव है. दूसरों से तेज होना, आगे बढ़ना और ऊपर जाना ये इंसान की फितरत है. बर्लिन की फ्री यूनीवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक पेटर वाल्शबुर्गर कहते हैं, ''हमारे विकास की जड़ें पाषाण युग में समाई हैं जब जीने के लिए संघर्ष में जीत हासिल करना सबसे जरूरी था. हम सभी प्रतिस्पर्धा में जीते हुए लोगों के वंशज हैं. रिकॉर्ड बनाने की इच्छा हमारे जीन में समाई है, खासकर पुरुषों के.'' लेकिन महिलाओं की जीन की संरचना इससे अलग होती है. वाल्शबुर्गर के मुताबिक महिलाएं बच्चों की देखभाल करना और सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करना पसंद करती हैं. महिलाएं स्थायित्व पसंद करती हैं.

Symbolbild Stammzellenforschung Mensch DNA
तस्वीर: AP

शोधकर्ता ये भी मानते हैं कि आज के दौर में रिकॉर्ड बनाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है. हालांकि ये पहले जैसा आसान नहीं रहा है. आज के दौर में रिकॉर्ड बनाने के लिए काफी अनुभव और प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है. आम लोगों की खास उपलब्धियों को आजकल टेलीविजन पर भी दिखाया जाने लगा है. इससे भी रिकॉर्ड बनाने की इच्छा को बल मिलता है. टीवी पर दिखाए जाने की वजह से रिकॉर्ड बनाने वालों को तुरंत नाम और पैसा हासिल हो जाता है.

इंसान के अंदर पहचान पाने की इच्छा बहुत तेज होती है. इसीलिए वे ऐसे उदाहरण साबित करना चाहते हैं. यू ट्यूब जैसी वेबसाइट इंसानी उपलब्धियों को पल भर में पूरी दुनिया में फैलाने में मदद करती हैं. लेकिन पहचान पाने की बेकरारी के पीछे कुछ सामाजिक कारण भी हैं. वे सभी संस्थान जो इंसान को बेहतरी का अहसास कराते थे धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. तलाक में बढ़ोत्तरी की वजह से परिवार खत्म हो रहे हैं, लक्ष्य में अस्पष्टता की वजह से राजनीतिक दलों का महत्व खत्म हो रहा है और समाज में आ रहे बदलाव की वजह से चर्च की भूमिका भी घट रही है. इसकी वजह से कई बार इंसान अपनी दिशा भी खो देता है.

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तस्वीर: AP

बर्लिन के हुम्बोल्ट यूनीवर्सिटी के मनौवैज्ञानिक येन्स आसेनडॉर्फ कहते हैं, ''खेल कूद पहले भी पुराने ग्रीक जमाने में होता था, लेकिन आजकल रिकॉर्ड की खबर मीडिया की वजह से ज्यादा लोगों तक पहुंचती है. इसकी वजह से समाज में फायदा भी मिलता है.'' वह कहते हैं, ''रिकॉर्ड बनाने का जुनून खत्म नहीं हुआ है. बल्कि समाज की प्रतिक्रिया बदल गई है.'' अब सवाल ये उठता है कि इंसान का शरीर क्या रिकॉर्ड बनाने के बाद थकता नहीं, क्योंकि इसकी सीमा होती है. जवाब है नहीं क्योंकि रिकॉर्ड बनाने की चाहत एक प्रक्रिया है और इसे हमेशा चुनौती मिलती रहती है. नए नियम और नई तकनीक हमेशा आती रहती हैं और पुराने को पीछे छोड़ती रहती हैं.

वीडी/एमजे (डीपीए)

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