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पाकिस्तान में बाढ़ की भयानक विभीषिका

१३ अगस्त २०१०

पाकिस्तान में आई बाढ़ इस सप्ताह फिर से जर्मन अखबारों की सुर्खियों में रही. बाढ़ की विभीषिका, राहत पहुंचाने में सरकार की विफलता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने मदद की चुनौती.

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तस्वीर: AP

बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेस्त्साइटुंग ने पाकिस्तान में आई बाढ़ पर रिपोर्ट दी जो पिछली बाढ़ों की भयावहता को लांघ गई है. सरकार इससे निबटने में विफल साबित हुई है. बाढ़ में अब तक 1800 लोग मारे गए हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. अखबार लिखता है,

''सचमुच अब तक बाढ़ की विभीषिका के आकलन में संयुक्त राष्ट्र और इस्लामाबाद के बीच बड़ा अंतर है. संयुक्त राष्ट्र ने 40 लाख लोगों के पीड़ित होने की बात कही है तो पाकिस्तान की सरकार 1 करोड़ 20 लाख लोगों के प्रभावित होने की. इस बीच भयावहता की पुष्टि हो रही है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी ने नाटो और अमेरिका से मदद देने को कहा है. लेकिन इलाके में तैनात नाटो और अमेरिका के सैनिक राहत कार्य करने के लिए प्रशिक्षित नहीं है. 85 अमेरिकी हेलिकॉप्टरों के अलावा पड़ोसी अफगानिस्तान में तैनात बाकी पश्चिमी सैनिक आपदा में मूक दर्शक हैं. लेकिन उनके विरोधी तेजी से प्रतिक्रिया कर रहे हैं. कट्टरपंथी इस्लामी गुटों के बहुत से सामाजिक मोर्चा संगठन कई दिनों से बाढ पीड़ितों को मुफ्त खाना पहुंचा रहे हैं.''

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तस्वीर: AP

पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर की स्वात घाटी का इलाका पिछले सप्ताहांत से बाहरी दुनिया से कटा हुआ है. सहायता पहुंचाने के लिए लगाए गए अमेरिकी हेलिकॉप्टर भारी वर्षा के कारण उड़ान भरने की स्थिति में नहीं हैं. स्थिति बिगड़ रही है. अखबार आगे कहता है,

''यह आपदा सूनामी, 2005 में पाकिस्तान में आए भूकंप और हैती के भूकंप से भी खराब है. अब तक 1 करोड़ 38 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. यह पिछली प्राकृतिक विपदाओं को पार कर गया है. 2005 के भूकंप में 30 लाख लोग प्रभावित हुए थे, सूनामी में 50 लाख और हैती में भी 30 लाख.''

ईसाई राहत संस्था कारितास इंटरनेशनल के 150 कार्यकर्ता इस समय 20 हज़ार बाढ़पीड़ितों की मदद कर रहे हैं. लोग पानी के बीच फंसे हुए हैं. स्थिति की गंभीरता के बारे में बर्लिन का दैनिक टागेस्श्पीगेल लिखता है,

''बाढ़ का पानी कम नहीं हो रहा है. बीमार बच्चे पानी में ही मलत्याग कर रहे हैं. जब पानी बह जाएगा तो लोग महामारियों का शिकार हो जाएंगे, हैजा फैलने की आशंका है. सूरज बेरहमी से चमक रहा है, छांव में 49 डिग्री मापा गया है, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा है, हम करोड़ों डॉलर की मदद का आह्वान करेंगे और वे जोर देते हैं कि पाकिस्तान को आने वाले समय में भी मदद की जरूरत होगी. यह एक बड़ी चुनौती होगी.''

मानसून की भारी बारिश से भारत भी अछूता नहीं है. बादल के फटने से लेह लद्दाख में बाढ़ आ गई जिसमें डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए. नौए ज़्यूरिषर त्साइटुंग लिखता है,

''लद्दाख की राजधानी लेह में इस समय पूरी अफरातफरी है. फंसे हुए पर्यटक, सैनिक, बिहार के आप्रवासी मजदूर इलाके के इतिहास के संभवतः सबसे बड़ी प्राकृतिक विपदा की वजह से घबड़ाहट, अस्पष्टता, मदद और असमंजस में झूल रहे हैं. सिंधु नदी का पानी एक बड़े इलाके में तट से बाहर निकल आय़ा है. लेह का सड़क संपर्क टूट गया है. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार मृतकों की संख्या इस समय 130 है और 500 लोग लापता हैं. उनमें पांच पर्यटक भी हैं. पहाड़ी और कम आबादी वाला लद्दाख पाकिस्तान, कश्मीर और तिब्बत के बीच सामरिक स्थिति के कारण अत्यंत सैन्यीकृत है.''

फ़्रांकफ़ुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग ने रिपोर्ट दी है कि संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान में ये आरोप जोर पकड़ रहे हैं बाढ़ की ये विभीषिका सालों के भ्रष्टाचार के कारण ही संभव हुई है. सरकार विरोधियों का आरोप है कि अधिकारियों ने दशकों से सहायता राशि और बांध बनाने के लिए आबंटित राशि से जेबें भरी.

"भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के प्रमुख सैयद आदिल गिलानी का कहना है कि तीस साल पहले बाढ़ राहत विभाग के गठन के बाद से उसके 70 फीसदी बजट का गबन हो गया है. बाढ़ एक प्राकृतिक विपदा है जिसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन उससे होने वाली बर्बादी को रोका जा सकता है या कम किया जा सकता है. हमारे सुरक्षा बांध, पुल और रोड बह जाते हैं क्योंकि वे बुरी तरह बनाए गए हैं. पाकिस्तान में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर का भी कहना है कि बाढ़ एक ओर भारी वर्षा और दूसरी ओर भ्रष्टाचार के मेल का नतीजा है. सरकार इसे नहीं मानती. वह आपदा के पैमाने का पूर्वानुमान नहीं लगा पाने का सहारा लेती है."

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फ़्रांकफ़ुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग ने लिखा है कि राष्ट्रपति जरदारी की विदेश यात्रा के कारण सरकार की आलोचना हुई है जबकि सेना और गैर सरकारी संगठनों के कामों की सराहना हुई है.

''जरदारी ने अपनी यात्रा को उचित ठहराते हुए कहा है कि विश्व जनमत को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान की कुर्बानी के बारे में बताना जरूरी था. अब राष्ट्रपति आपदा क्षेत्र का दौरा करने की योजना बना रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों की नजर से आपादा के पैमाने को देखते हुए सरकारी संस्थाओं का काम उतना खराब नहीं था जितना बताया जा रहा है.''

पाकिस्तान एक ओर तालिबान के खिलाफ संघर्ष में मदद दे रहा है तो दूसरी ओर पाकिस्तानी खुफिया सेवा आईएसआई और संभवतः सेना के अधिकारी भी नाटो सैनिकों और काबुल सरकार के खिलाफ तालिबान के संघर्ष को प्रोत्साहन दे रहे हैं. दैनिक टागेस्श्पीगेल का कहना है कि इस तरह भारत और पाकिस्तान की ऐतिहासिक दुश्मनी अफगान तालिबान के अस्तित्व का आधार है.

''जनमत को उपलब्ध कराए गए अमेरिकी सैनिक रिपोर्टों से पता चलता है कि ऐसी सूचनाएं हैं कि आईएसआई तालिबान को सिर्फ हथियार, यंत्र और परिवहन की मदद ही नहीं दे रहा है बल्कि अपने अधिकारियों के माध्यम से उनके हमलों का समन्वय करता है और उन्हें परामर्श देता है. तालिबान को जारी मदद का कारण चिर दुश्मन भारत के साथ पाकिस्तानी सैनिकों और राजनीतिज्ञों के दृढ़ अविश्वास में है. उपर से तो मामला कश्मीर के हक का है. पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों और सेनाधिकारियों के लिए पीठ पीछे एक स्थिर और नरमपंथी अफगानिस्तान का होना दहलाने वाला परिदृश्य लगता है, जो भारत का साथी बन सकता है. अफगानिस्तान में धर्मबंधुओं को सत्ता में आने में मदद देना या देश को स्थायी गृहयुद्ध में रखना, अपने प्रभाव को बनाए रखने की पूर्वशर्त है.''

संकलन: यूलिया थिएनहाउस/मझ

संपादन: ओ सिंह

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