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पाकिस्तान ध्वस्त होने के कगार पर नहीं: पूर्व सीआईए अधिकारी

१० अक्टूबर २०१६

डेढ़ दशक के अभियान के बाद भी अमेरिका अफगानिस्तान में वैसे नतीजे हासिल नहीं कर पाया है जैसे सोचे थे. इस्लामाबाद में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के स्टेशन चीफ रहे रॉबर्ट ग्रेनियर इसके लिए कई कारणों को जिम्मेदार मानते हैं.

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Afghanistan - Symbolbild Soldat
तस्वीर: Reuters/O. Sobhani

ग्रेनियर अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता से बेदखल करने की मुहिम से नजदीकी तौर पर जुड़े रहे हैं. इसलिए वहां कई घटनाक्रमों का उनके पास सटीक ब्यौरा है. डीडब्ल्यू के साथ विशेष इंटरव्यू में उन्होंने कई अहम बातें बताईं. जब उनसे पूछा गया कि क्या 9/11 हमले के बाद ओसामा बिन लादेन को पकड़ने का लक्ष्य अमेरिका तालिबान से बातचीत करके हासिल नहीं कर सकता था, तो उन्होंने कहा कि ऐसा संभव नहीं हुआ.

वह कहते हैं, "मैंने तालिबान में नंबर दो नेता मुल्ला उस्मानी से बात की थी. अपनी दूसरी मुलाकात में मैंने उसे भरोसा दिलाने की कोशिश की कि वह तालिबान नेता मुल्ला उमर को हटाकर खुद नेता बन जाए और ओसामा बिन लादेन और उसके अन्य साथियों को कानून के कठघरे तक लाने में मदद करे. मैने उससे कहा था कि इससे तालिबान भी बचेगा.”

वह बताते हैं, "कुछ लोग कहते हैं कि हमें इस बातचीत को कुछ और समय जारी रखना चाहिए था लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मुल्ला उमर का तालिबान नेतृत्व के सदस्यों पर बहुत अधिक नियंत्रण है. जो हमारे बस में था हमने किया, लेकिन बात बनी नहीं. मुझे नहीं लगता कि अगर हम और बात करते तो तालिबान के साथ कोई समझौता हो सकता था.”

लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अफगानिस्तान के लोगों ने अमेरिकी और नाटो बलों को तालिबान के कब्जे से आजादी दिलाने वाले बल की बजाय कब्जा जमाने वाला बल मान लिया? ग्रेनियर कहते हैं कि ये एक जटिल मुद्दा है, लेकिन एक समस्या ये भी है कि सीआईए और पेंटागन के बहुत से अधिकारियों को अफगानिस्तान के बारे में और खास तौर से तालिबान और अल कायदा के रिश्तों के बारे में ज्यादा नहीं पता था.

वह कहते हैं, "निश्चित तौर पर कुछ तालिबान सदस्य थे जिन्होंने अपराध किए और उन्हें कानून के कठघरे तक लाया जाना चाहिए लेकिन कई ऐसे मामले थे जहां राजनीतिक सौदेबाजी की जा सकती थी. लेकिन उस वक्त अमेरिकी नीति निर्माता इस बारे में बिल्कुल कुछ नहीं सोचना चाहते थे. मेरे ख्याल में एक मौका था जिसे गंवा दिया गया.”

रॉबर्ट ग्रेनियर ने "88 डेज टू कंधार" नाम की एक किताब भी लिखी है
रॉबर्ट ग्रेनियर ने "88 डेज टू कंधार" नाम की एक किताब भी लिखी हैतस्वीर: Bob Cullen Photography

पाकिस्तान की लचर हालात पर ग्रेनियर कहते हैं कि वहां कट्टरता बढ़ने की एक वजह अफगानिस्तान में पश्चिमी सेनाओं का अभियान भी है. लेकिन वह इस बात को नहीं मानते कि पाकिस्तान देश के तौर पर ध्वस्त होने के कगार पर है. वह कहते हैं, "2002 के बाद से ही पाकिस्तानी नेतृत्व को समझ आ गया कि अफगानिस्तान में अमेरिकी मौजूदगी से उनके लिए कई समस्याएं पैदा होने वाली हैं और ऐसा ही हम देख रहे हैं.” ग्रेनियर के मुताबिक अमरीकी ड्रोन हमलों के कारण पाकिस्तान में कट्टरपंथियों को और बढ़ावा मिला और इससे पाकिस्तानी जनता को अपनी सरकार पर हमले करने का एक और मौका मिला.

ग्रेनियर अफगानिस्तान में तालिबान को पूरी तरह खत्म किए जाने की सवाल पर कहते हैं कि ऐसा अभी संभव नहीं दिखता है. वह कहते हैं कि बस अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगान सरकार को समर्थन देते रहना होगा ताकि वह तालिबान को सत्ता से दूर रखने में ज्यादा से ज्यादा सक्षम बने. ग्रेनियर की राय में अभी अफगान बल इस हालत में नहीं है कि तालिबान का अकेले दम पर मुकाबला कर सके. इसलिए कुछ समय तक मौजूदा यथास्थिति बनी रहेगी, लेकिन जब सभी पक्ष इस स्थिति से परेशान हो जाएंगे तो एक तरह के राजनीतिक समाधान की उम्मीद की जा सकती है.

(रॉबर्ट ग्रेनियर के साथ मथियास फोन हाइन की बातचीत पर आधारित)