1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान के कागजी स्कूल

९ नवम्बर २०१३

स्कूल हैं, पर बच्चे नहीं. क्लास भी नहीं लगती. अलबत्ता कभी कभी जानवरों को बांधा जाता है, या फिर इमारत पर दबंग लोगों का कब्जा होता है. पाकिस्तान में ऐसे कई कागजी स्कूल हैं, जिनका बच्चों या पढ़ाई से कोई रिश्ता नहीं.

https://p.dw.com/p/1AEXN
तस्वीर: AP

रहमतुल्लाह बिलाल ने दसियों साल ऐसे स्कूलों पर नजर रखी और उनकी संख्या जोड़ने की कोशिश की है. सिंध ग्रामीण विकास सोसाइटी के चेयरमैन 35 साल के बिलाल हाला शहर के आस पास शिक्षा अधिकारियों को बार बार उन जगहों के बारे में बताते हैं, जहां स्कूल होने चाहिए, लेकिन हैं नहीं.

पर शिक्षा विभाग ने उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया और तीन साल पहले उन्होंने नेताओं के घरों के सामने काली पट्टी पहन कर प्रदर्शन की योजना बनाई. उनके कुछ दोस्तों ने भी साथ दिया. वे ऐसी जगहों पर भी जाने लगे, जहां नेताओं को खास मेहमान बना कर बुलाया जाता है. उनका कहना है, "उन्होंने बात तो सुनी लेकिन कुछ नहीं किया. क्योंकि छात्रों के मां बाप की तरफ से कोई दबाव नहीं था."

कैसे सुनाएं आवाज

पिछले साल उनके ग्रुप ने डिजिटल तकनीक अपनाने का फैसला किया, "हमने समुदायों को इसमें शामिल किया. जैसे ही हमें किसी कागजी स्कूल के बारे में पता चला, हमने अलग अलग नंबरों से सांसद को हजारों एसएमएस भेजे." इसके बाद मीडिया ने इस मुद्दे को उछाला लेकिन हुआ फिर भी कुछ नहीं.

Pakistan Sukkur Schulzelt
किसी तरह चलते स्कूलतस्वीर: CARE/Thomas Schwarz

फिर बिलाल ने इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया. उन्होंने चीफ जस्टिस से अपील की कि सिंध प्रांत में शिक्षा की खराब हालत का जायजा लिया जाए और कागजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई हो. उन्होंने स्थानीय समुदायों को इन स्कूलों के बारे में ज्यादा जानकारी देने को कहा, इसके लिए एसएमएस का सहारा लिया गया और बिलाल का कहना है कि "10 दिन के अंदर हमने 1300 स्कूलों की सूची तैयार कर ली."

हजारों फर्जी स्कूल

सिंध हाई कोर्ट ने सर्वे कराया तो पता लगा कि ऐसे 6721 सरकारी स्कूल हैं और उनके लिए सरकार की तरफ से पैसा भी जारी किया जा रहा है. बिलाल की अपील पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी ने कहा, "स्कूलों में जानवर बांधे जा रहे हैं, इमारतों को अस्तबल बनाया जा रहा है. हम अपने बच्चों के साथ ऐसा कर रहे हैं, जबकि शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार है." हालांकि बिलाल को अब भी कानूनी नतीजे का इंतजार है, "जिन्होंने भी सरकार के साथ धोखा किया है, मैं उनके साथ इंसाफ होता देखना चाहता हूं."

इंडस रिसोर्स सेंटर की सादिका सलाहुद्दीन का कहना है कि वह इन स्कूलों को "बंद स्कूल" कहना ज्यादा पसंद करेंगी. उनकी संस्था खैरपुर, सुक्कूर, डाडू, जमशोरू और कराची जिलों में 130 ऐसे स्कूल चला रही है, जो कभी सिर्फ कागजों पर चल रहे थे.

सलाहुद्दीन का कहना है, "ऐसे स्कूल भ्रष्टाचार की निशानियां हैं, खास कर जहां शिक्षक आते ही नहीं. ऐसा नहीं कि ये टीचर पढ़ा नहीं रहे हैं, ये अपने अधिकारियों के दबाव में कहीं और पढ़ा रहे हैं और मोटी तनख्वाह पा रहे हैं." उनका कहना है कि कई शिक्षक तो इसी वजह से अपनी मनपसंद जगह पर ट्रांसफर करा लेते हैं.

सर्वे में खुलासा

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की 1 अक्टूबर को रिपोर्ट में पाकिस्तान के शिक्षकों के बारे में कहा गया है कि कई टीचर काम कहीं कर रहे हैं और उनका नाम कहीं और दर्ज है. सलाहुद्दीन का कहना है कि अगर स्कूल अस्तबल में तब्दील हो रहे हैं या वहां पढ़ाई नहीं हो पा रही है, तो इसके लिए सरकार की शिक्षा नीति जिम्मेदार है.

Pakistani girls recite verses of the Quran or holy book next to Islamabad's radical Lal Masjid or Red Mosque in Islamabad, Pakistan, on Monday July 7, 2008. Three more police officers have died from a suicide attack near Islamabad's Red Mosque, bringing the death toll to 18, an official said Monday, as investigators sorted out clues to who was behind the assault. (AP Photo/Emilio Morenatti)
एक पाकिस्तानी स्कूल में पढ़ती बच्चीतस्वीर: AP

उनका कहना है कि सरकार उन जमीनों पर स्कूल बना रही है, जो समुदायों ने दान की है. सलाहुद्दीन के मुताबिक, "मैं सिंध के गांवों को बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वहां जमीन मुट्ठी भर दबंग लोगों के हाथ में है और जब उनकी जमीन स्कूलों में चली जाती है, तो वे किसी तरह इस पर अधिकार की कोशिश करते हैं."

मौजूदा हालात में पाकिस्तान 2015 तक संयुक्त राष्ट्र के शिक्षा सहस्राब्दी लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा. यह 2000 के डकार घोषणापत्र के मुताबिक बुनियादी शिक्षा का लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाएगा, जिस पर उसने हस्ताक्षर किए हैं.

साल 2010 में पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की बच्चों की संस्था यूनिसेफ के एक सर्वे में पता चला कि पांच से 16 साल की उम्र के ढाई करोड़ बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है. सातगुना ज्यादा आबादी वाले पाकिस्तान के पड़ोसी देश भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 2009 में सिर्फ 80 लाख थी, भारत में 2003 में इस उम्र के ढाई करोड़ बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही थी. पाकिस्तान में सर्वे यूनेस्को ने लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज के साथ मिल कर किया था और इसमें संघ प्रशासित फाटा और गिलगिट बाल्टिस्तान और पाकिस्तानी हिस्से वाले कश्मीर को शामिल नहीं किया गया था.

कैसे पढ़ेंगे बच्चे

पाकिस्तान अपने जीडीपी का सिर्फ 1.9 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च करता है, जबकि दूसरे देश आम तौर पर इस पर चार फीसदी खर्च करते हैं. पाकिस्तान के बजट का 54 फीसदी हिस्सा रक्षा और हथियारों की खरीद पर खर्च होता है. इतने कम बजट का भी बहुत बड़ा हिस्सा इस्तेमाल नहीं हो पाता है. पाकिस्तान के चार प्रांतों ने 2012-13 में शिक्षा पर 31 अरब पाकिस्तानी रुपये खर्च किए. शिक्षा अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था अलीफ एलान का कहना है कि यह बजट का सिर्फ आधा है.

गैरसरकारी संस्था अलीफ एलान शिक्षा का बजट बढ़ाने और पैसों के बेहतर इस्तेमाल की मांग कर रही है. इससे जुड़े मुशर्रफ जैदी का कहना है, "हमें दोनों पर काम करने की जरूरत है क्योंकि जैसी समस्या है, उसका समाधान भी वैसा ही होना चाहिए."

जैदी का कहना है कि स्कूलों का निर्माण और शिक्षकों की नियुक्ति राजनीतिक हथकंडे बन गए हैं. लेकिन शिक्षा का अभी भी उतना राजनीतिकरण नहीं हुआ है "क्योंकि नेता इस मुद्दे को लेकर राजनीति नहीं कर रहे हैं."

एजेए/एनआर (आईपीएस)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें