पाकिस्तान का अगला सेना प्रमुख कौन
८ अक्टूबर २०१३जनरल अशफाक कयानी ने अटकलों को खारिज करते हुए कहा है कि वह अगले महीने रिटायर हो जाएंगे. अब फैसला शरीफ को लेना है जो उनके उनके लिए आसान नहीं होगा. पिछली बार नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया था जिन्होंने 1999 में उनका तख्तापलट कर दिया.
जनरल अशफाक कयानी 2007 से पाकिस्तान के सेना प्रमुख का पद संभाल रहे हैं. 2010 में उनके कार्यकाल को बढ़ा दिया गया था और ऐसी खबरें आ रही थीं कि इस बार भी ऐसा ही होगा, लेकिन कयानी ने साफ कर दिया है कि वह तय तारीख 29 नवंबर को ही अपना कार्यकाल खत्म करेंगे.
सूची में चार नाम
माना जा रहा है कि नवाज शरीफ कयानी की बनाई सूची में से ही किसी को सेना प्रमुख नियुक्त करेंगे. जिनका नाम सबसे आगे है, वह हैं लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम. लॉजिस्टिक्स स्टाफ के प्रमुख असलम ने 2009 में स्वात में तालिबान के खिलाफ ऑपरेशनों में हिस्सा लिया था. वह पंजाब में पैरामिलिट्री रेंजर्स के प्रमुख का पद भी संभाल चुके हैं. दूसरे हैं लेफ्टिनेंट जनरल रशद महमूद जो फिलहाल जनरल हेडक्वॉर्टर्स में चीफ ऑफ जनरल स्टाफ हैं. हालांकि वह असलम से रैंक में छोटे हैं लेकिन संभव है कि असलम को जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी का प्रमुख बनाए जाने की सूरत में लेफ्टिनेंट महमूद को सेना प्रमुख बना दिया जाए. इनके अलावा लेफ्टिनेंट जनरल राहील शरीफ और लेफ्टिनेंट जनरल तारीक खान का भी नाम चर्चा में है.
सेना प्रमुख की जिम्मेदारियां
छह लाख सैनिकों वाली पाकिस्तानी सेना का अगला प्रमुख बनने के लिए चार नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं. जो भी देश के इस सबसे ताकतवर समझे जाने वाले पद पर बैठता है, उसके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी. सबसे पहले तो उसे घरेलू आतंकवाद और तालिबान से निपटना होगा. भारत के साथ संबंधों में कड़वाहट भी एक मुद्दा है. फिर अफगानिस्तान में पाकिस्तान की बढ़ती महत्वकांक्षाएं भी हैं क्योंकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानिस्तान को लेकर ज्यादा बड़ी भूमिका की तलाश में है.
विश्लेषकों का मानना है कि बहुत संभव है कि नया जनरल अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर कयानी की बिछाई व्यवहारिक लीक पर ही चले और भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए की जा रही सरकारी कोशिशों में भी रोड़ा न अटकाए.
अमेरिका का साथ
सुरक्षा विश्लेषक इम्तियाज गुल का मानना है कि नए सेना प्रमुख को जनरल कयानी के रास्ते पर ही बढ़ना होगा. समाचार एजेंसी एएफपी से उन्होंने कहा, "सेना और उसके प्रमुख को सिविलियन नेतृत्व के हिसाब से ही चलना होगा. जनरल कयानी के अध्यक्ष रहने के दौरान पाकिस्तान ने लोकतांत्रिक रास्ते पर लंबा रास्ता तय किया है."
जानकार इस बात को लेकर भी एकमत दिखते हैं कि नया सेना प्रमुख अमेरिका विरोधी नहीं होगा क्योंकि बिना अमेरिकी मदद के इस वक्त पाकिस्तान के लिए हालात मुश्किल रहेंगे. जनरल कयानी के दौर की सबसे बड़ी सफलताओं में अमेरिका के साथ उनका बेहतर तालमेल भी गिना जाता है.
आईबी/एमजे (एएफपी)