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क्यों नियम बदलने की मांग कर रही हैं विमान कंपनियां

प्रभाकर२६ फ़रवरी २०१६

भारत में निजी विमान कंपनियों के बीच प्राइस वॉर यानि किराए को लेकर जंग की बात तो अक्सर सुनने में आती है. लेकिन फिलहाल भारत सरकार के एक नियम को लेकर इन कंपनियों में वॉर ऑफ वर्ड्स यानि जुबानी जंग लगातार तेज हो रही है.

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Flugzeug Boieng
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Fyrol

केंद्र सरकार के पांच बटा बीस नियम के तहत देशी एयरलाइंस को पांच साल तक देश में उड़ानों का संचालन करना पड़ता है. इसके अलावा उसके पास कम से कम 20 विमान होने चाहिए. उसके बाद ही उसे अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की अनुमति मिलती है. सरकार ने नई नागरिक उड्डयन नीति के मसविदे में इस नियम को खत्म करने का प्रस्ताव रखा है. इस नीति को जल्द ही अंतिम स्वरूप दिया जाना है. दिलचस्प बात यह है कि यह प्रस्ताव वर्ष 2013 में लगभग उसी समय तैयार किया गया था जब टाटा समूह ने घरेलू एयरलाइंस उद्योग में दोबारा कदम रखने का एलान किया था.

टाटा समूह ने बीते दो वर्षों के दौरान सिंगापुर एयरलाइंस और एयर एशिया के साथ मिल कर दो नई एयरलाइंस शुरू की है. इनके नाम क्रमशः विस्टारा और एयर एशिया इंडिया हैं. अब टाटा समूह चाहता है कि उक्त नियम खत्म कर दिया जाए ताकि इन दोनों कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू करने की अनुमित मिल सके. लेकिन देश की चार निजी विमान कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं.

Tata Group Vorsitzender Ratan Tata PK zu Landrover Jaguar
टाटा का कहना है कि इस नियम से महज चुनिंदा कंपनियों को ही फायदा हो रहा है.तस्वीर: AP

रतन टाटा के खुले पत्र पर विवाद

इस विवाद की शुरूआत उस समय हुई जब टाटा समूह के रतन टाटा ने एक खुला पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि देश की चार विमान कंपनियां इस नियम के तहत लाभ लेते रहने के लिए नई विमान कंपनियों के खिलाफ सरकार पर पांच बटा बीस नियम को जारी रखने के लिए दबाव डालने का प्रयास कर रही हैं. टाटा का कहना था कि इस नियम से महज चुनिंदा कंपनियों को फायदा हो रहा है. उड्डयन उद्योग व उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.

लेकिन टाटा के इस पत्र के साथ जुबानी जंग शुरू हो गई है. पहले तो देश की चार निजी विमान कंपनियों, जेट, इंडिगो, स्पाइसजेट और गो एयर ने इसका विरोध किया और अब इन चारों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एयरलाइंस (एफआईए) ने बाकायदा एक बयान जारी कर टाटा संस नियंत्रित दोनों विमान कंपनियों की ओर से पांच बटा बीस नियम को रद्द करने के लिए दबाव बनाने का कड़ा विरोध किया है.

फेडरेशन ने इस मुद्दे पर इस सप्ताह नागरिक उड्डयन मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री और दूसरे केबिनेट मंत्रियों को सौंपे अपने ज्ञापन में आरोप लगाया है कि प्रस्तावित नई नीति उद्योग के 95 फीसदी खिलाड़ियों के साथ पक्षपात करती है. यह सिर्फ टाटा की ओर से प्रमोट की गई दोनों नई कंपनियों-विस्टारा और एयर एशिया इंडिया के हित साधती है. पुरानी कंपनियों की मांग है कि अगर सरकार उक्त नियम रद्द करती है तो उसे रूट डिसपर्सल गाइडलाइंस (आरडीजी) को भी रद्द कर देना चाहिए. आरडीजी के तहत देशी विमान कंपनियों के लिए अपनी कुल उड़ानों का एक निश्चित हिस्सा पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और अंडमान जैसे दूरदराज के और नुकसानदेह मार्गों पर भी संचालन करना अनिवार्य है.

राष्ट्रहित या अपना हित?

रतन टाटा ने पांच बटा बीस नियम को रद्द करने के पक्ष में अपनी दलीलों में कहा है कि इससे भारतीय उड्ड्यन उद्योग बिना किसी पक्षपात के तेज गति से विकसित हो सकता है और आम लोगों और उपभोक्ताओं को लाभ होगा. लेकिन दूसरी ओर स्पाइसजेट के प्रमोटर अजय सिंह कहते हैं, "विदेशी रूट पर मुनाफे वाली उड़ानें शुरू करने से पहले हमें पांच साल तक देश की सेवा करने को कहा गया था. ऐसे में दोनों नई विमान कंपनियों को भी ऐसा करने को क्यों नहीं कहा जाएगा?" वहीं इंडिगो के अध्यक्ष आदित्य घोष कहते हैं, "आरडीजी को हटाए बिना पांच बटा बीस नियम को रद्द करने का मतलब यह होगा कि विस्टारा व एयर एशिया छोटे शहरों से सीधे अपने मूल साझीदार के विदेशी ठिकानों तक उड़ान भर सकते हैं."

इन दोनों कंपनियों को विदेशी उड़ान की अनुमति मिलने से पहले नुकसानदेह मार्गों पर उड़ानों के संचालन से पांच साल तक भारी नुकसान सहना पड़ा था. घोष का कहना है कि उक्त नियम को रद्द करने की स्थिति में बड़े एयरपोर्टों पर उपभोक्ताओं से वसूले जाने वाले यूजर चार्ज में बढ़ोतरी होगी क्योंकि वहां से कम यात्री उड़ान भरेंगे. विमान कंपनियों का कहना है कि टाटा की कंपनियों को तो विदेशी उड़ानें शुरू करने की अनुमति मिल जाएगी लेकिन उन्हें दूरदराज के नुकसानदेह मार्गों पर अपनी उड़ानें जारी रखनी होगी और इससे उनका नुकसान बढ़ता रहेगा. घोष ने कहा, "यह पक्षपातपूर्ण है. हम इसका कड़ा विरोध करेंगे."

एफआईए का कहना है कि रतन टाटा राष्ट्रहित में नहीं, बल्कि अपने हित में उक्त नियम को खत्म करने की वकालत कर रहे हैं. फेडरेशन का आरोप है कि दोनों नई उड्डयन कंपनियां देशसेवा की बजाय अपनी सेवा करने और मोटा मुनाफा कमाने के मकसद से ऐसा कर रही हैं. वे भारत को आधार बना कर विदेशी उड़ानों के जरिए अपना विकास करना चाहती हैं.

निजी क्षेत्र की चार जमी-जमाई और दो नई विमान कंपनियों के बीच शुरू हुई इस जंग का अंजाम क्या होता है, यह तो बाद में पता चलेगा. फिलहाल तो दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलों के जरिए एक-दूसरे को गलत साबित करने में जुटे हैं.