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पहली बार दिखा अदृश्य डार्क मैटर

२४ जनवरी २०१०

वह अमवस्या की रात में काली बिल्ली की तरह अदृश्य है. इसीलिए अंग्रेज़ी में उसे डार्क मैटर, यानी काला पदार्थ कहते हैं. 1933 से वह वैज्ञानिकों को छका रहा है. हाथ ही नहीं आता.

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लार्ज हैड्रोन कोलाइडर से मिल सकती है मददतस्वीर: picture alliance/dpa

कभी किसी अनजान तारे के प्रकाश को अपने गुरुत्व बल से मोड़ देता है, तो कभी किसी मंदाकिनी (गैलेक्सी) के अत्यंत तेज़ी से घूमते हुए तारों को छटक कर दूर जाने से रोकता है. कहने को तो तीन चौथाई ब्रह्मांड उसी का बना है, पर देखने पर वह कहीं रत्ती भर भी दिखाई नहीं पडता.

जर्मनी में म्युनिख के पास गार्शिंग के खगोल भौतिकी माक्स प्लांक संस्थान के वैज्ञानिक भी इस काले पदार्थ पर से रहस्य का पर्दा उठाने में लगे हैं. संस्थान के निदेशक साइमन व्हाइट कहते हैं, "दु्र्भाग्य से हम नहीं जानते कि ब्लैक मैटर किस तरह का पदार्थ है. हमारे पास इस के प्रमाण तो हैं कि ब्रह्मांड में भारी मात्रा में ऐसा कोई पदार्थ है, जो गुरूत्वाकर्षण जैसा प्रभाव पैदा करता है, लेकिन हम उसे देख नहीं पाते".

पूरी तह से तो अब भी किसी ने नहीं देखा है. लेकिन, अब लगता है कि वैज्ञानिकों को इस छलिये की हल्की सी झलक मिल गयी है. गत दिसंबर में अमेरिका की कई प्रयोगशालाओं ने मिल कर घोषित किया कि उन के डिटेक्टरों ने पहली बार दो ऐसे कण दर्ज किये हैं, जो डार्क मैटर के मूल कण होने चाहिये. ये महासंवेदनशील डिटेक्टर मिनीसोटा की खनिज लोहे की एक खान में, जो अब इस्तेमाल में नहीं है, पौने एक किलोमीटर की गहराई पर लगे हैं. यदि बात सही निकली, तो यह भौतिक विज्ञान में अब तक की एक सबसे सनसनीखेज़ खोज बन जायेगी.

क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च CDMS, अर्थात परम शून्य तापमान वाले डिटेक्टरों की सहायता से काले पदार्थ की खोज नाम की इस परियोजना के प्रमुख डैन बाउअर ने बताया कि डिटेक्टरों ने जो कुछ दर्ज किया है, उसे होना तो अदृश्य काला द्रव्य ही चाहिये, लेकिन कुछ और होने की संभावना भी 25 प्रतिशत के बराबर है. इसी कारण विज्ञान जगत इस खोज को अभी पूरी मान्यता नहीं दे रहा है.

वैज्ञानिक काले पदार्थ को, यानी उसके अणुओं-परमाणुओं को, अब तक देख या पकड़ भले ही न पाये हों, विभिन्न प्रयोगों और अवलोकनों से इतना ज़रूर जानते हैं कि उसके मूलकण हमें ज्ञात इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन, प्रटोन या फिर उन से भी छोटे क्वार्क, लेप्टॉन, ग्लूऑन से बिल्कुल भिन्न होने चाहिये. कंप्यूटर अनुकरणों से यही पता चलता है.

वे न्यूट्रीनो कहलाने वाले उन कणों की तरह के होने चाहिये, जो इतने छोटे हैं कि हर क्षण लाखों-करोड़ों की संख्या में हमारे शरीर ही नहीं, हमारी पृथ्वी के भी आरपार आते-जाते रहते हैं और हमें रत्ती भर भी पता नहीं चलता. न्यूट्रीनो शायद ही कभी किसी परमाणु के नाभिक से टकराते हैं, इसलिए अच्छे से अच्छे पार्टिकल डिक्टेर भी उन के टकराने की बस इक्की दुक्की चमक ही दर्ज कर पाते हैं, जबकि वे संवेदनशील इतने हैं कि एक जुगुनू की चमक को एक किलोमीटर दूर से भी दर्ज कर सकते हैं.

वैज्ञानिकों का समझना है कि न्यूट्रीनो भी वहीं से आते हैं, जहां काले पदार्थ का जमघट है. और, काले पदार्थ, यानी डार्क मैटर का यह जमघट कहां से आता है? म्यूनिक विश्वविद्यालय के प्रो. हाराल्ड लेश कहते हैं, "एक अनुमान यह है कि वह मृत तारों का बना होना चाहिये. हर गैलेक्सी या मंदाकिनी में सौ से दौ सौ अरब तारे होते हैं. उन में से कुछ अपना जीवनकाल पूरा कर चुके होते हैं. ब्लैक होल यानी कृष्ण विवर, न्यूट्रॉन तारे, बुझ गये तारे, इत्यादि. वे गैलेक्सियों के आस-पास जमा हो जाते हैं. चमकते नहीं, इसलिए दिखते नहीं और केवल गुरूत्वबल के द्वारा अपने अस्तित्व का आभास देते हैं."

इस बीच एक और अनुमान वैज्ञानिकों के बीच लोकप्रिय हो रहा हैः

"आज यह माना जा रहा है कि डार्क मैटर विम्प (WIMP) कणों का बना होता है. यह नाम वीक इंटर ऐक्टिंग मैसिव पार्टिकल्स का संक्षेप है. ये विम्प बहुत ही अपरिचित किस्म के मूलकण होने चाहिये".

वीक इंटर ऐक्टिंग मैसिव पार्टिकल्स का अर्थ हुआ क्षीण अभिक्रिया करने वाले भारी कण. अनुमान है कि हमें ज्ञात परमाणुओं वाले मूलकणों की तरह ही, डार्क मैटर भी हमें अज्ञात कई प्रकार के मूलकणों का बना होना चाहिये. उसके मूलकण हमें बता सकते हैं कि समय हमेशा आगे की दिशा में ही क्यों चलता है. वे शायद सुपरसिमेट्री वाले इस सिद्धांत की भी पुष्टि करें कि ब्रह्मांड के हर कण और मूलकण का, उससे भी भारी, एक जुड़वां प्रतिरूप होता है. इसी उत्तर की जेनेवा में सेर्न के महात्वरक से भी खोज हो रही है.

मिनीसोटा वाली खनिज लोहे की बेकार पड़ी खान में ज़मीन से सैकड़ों मीटर नीचे जर्मेनियम और सिलिकॉन क्रिस्टल के बने 30 डिटेक्टर लगे हैं. वे लगभग ऋण 273 डिग्री सेल्ज़ियस वाले परमशून्य पर काम करते हैं. इस तापमान पर किसी कण के टकराने से पैदा हुई क्षीणतम गर्मी को भी मापा जा सकता है. साथ ही, जैसे ही डार्क मैटर वाला कोई विम्प कण इन क्रिस्टलों से टकरायेगा, उन्हें हिला देगा. इस गहराई पर पृथ्वी तक पहुंचने वाली ब्रह्मांडिय किरणें नहीं पहुंच सकतीं, इसलिए वे ऐसा कोई कंपन पैदा नहीं कर सकतीं. डिटेक्टरों ने ऐसे ही दो अलग अलग कंपन दर्ज किये हैं. यदि अगले कुछ वर्षों में ऐसे ही चार और घटनाएं दर्ज होती हैं, तो इसे डार्क मैटर वाली अवधारणा की पुष्टि मान लिया जायेगा.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: एस गौड़