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परमाणु कचरे से निपटने की चुनौती बढ़ाएंगी नई परियोजनाएं

१८ मई २०१७

भारत ने स्वदेशी तकनीक से बने 10 नए परमाणु रिएक्टर लगाने का फैसला किया है. इससे बिजली की जरूरत पूरी होगी औऱ कार्बन डाय ऑक्साइड की समस्या से निबटा जा सकेगा. भारत में इस्तेमाल होने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा कोयले से आता है.

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Indien Kudankulam Atomkraftwerk Archiv 2012
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

भारी पानी वाले इन रिएक्टरों के बनने से सात हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी. लेकिन देश में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन परियोजनाओं को लगाने के फैसले से परमाणु कचरे से निपटने की चुनौती भी पैदा हो गई है. भारत में अब तक इसकी कोई ठोस योजना या नीति नहीं है.

नई परियोजनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में परमाणु ऊर्जा से बिजली पैदा करने को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी तकनीक से बने दस नए रिएक्टर लगाने को हरी झंडी दिखाई गई है. इनमें से हर रिएक्टर की क्षमता सात सौ मेगावाट की होगी. यानी इनके पूरा होने पर सात हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी. फिलहाल देश में 6,780 मेगावाट बिजली परमाणु ऊर्जा से पैदा करने की परियोजना पर काम चल रहा है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल बताते हैं, "ऐसी तमाम परियोजनाएं वर्ष 2021-22 तक पूरी हो जाएंगी. बिजली पैदा करने की यह तकनीक दूसरी तकनीकों के मुकाबले सस्ती और पर्यावरण-सम्मत हैं."

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की तकनीक को लगातार बढ़ावा दिया है. केंद्र का लक्ष्य अगले एक दशक के दौरान इस क्षमता को तीनगुना बढ़ाने का है. अगले पांच वर्षों के दौरान इसे बढ़ा कर 10 हजार मेगावाट से ज्यादा करने का लक्ष्य तय किया गया है. फिलहाल देश के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का हिस्सा महज साढ़े तीन फीसदी है. विशेषज्ञों का कहना है कि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के सरकार के फैसले से भविष्य में बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी.

बिजली को तरसती आबादी

अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में बिजली का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के बावजूद देश की 23.7 करोड़ यानी लगभग 19 फीसदी आबादी अब तक बिजली के लिए तरस रही है. देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत एक हजार किलोवाट घंटे है जबकि विकसित देशों में यह अनुपात सालाना 15 हजार किलोवाट घंटे का है. इस मामले में वैश्विक औसत तीन हजार किलोवाट घंटे है. पड़ोसी चीन में वर्ष 2014-15 के दौरान प्रति व्यक्ति बिजली की खपत चार हजार किलोवाट घंटे रही. बिजली की कमी पूरा करने के लिए सरकार अब अक्षय ऊर्जा के संसाधनों के दोहन को बढ़ावा दे रही है. इसकी एक प्रमुख वजह देश में कार्बन उत्सर्जन बढ़ना भी है. ऐसे में देश में बिजली की भावी जरूरतों को पूरा करने में परमाणु ऊर्जा से बनी बिजली की भूमिका अहम रहने की उम्मीद है. वर्ष 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद में बताया था कि वर्ष 2020 तक देश में इस तकनीक से 14.6 गीगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य तय किया गया है जिसे 2032 तक बढ़ा कर 27.5 गीगावाट किया जाएगा. केंद्र की योजना वर्ष 2050 तक देश की कुल बिजली का एक चौथाई इसी तकनीक से पैदा करने की है.

केंद्र सरकार परमाणु ऊर्जा के अलावा अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्रोतों को भी बढ़ावा दे रही है. उसकी योजना वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जा से एक लाख मेगावाट बिजली पैदा करने की है. इंटनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईइए) का अनुमान है कि वर्ष 2040 तक भारत में पैदा होने वाली बिजली में अक्षय़ उर्जा का हिस्सा 43 फीसदी तक पहुंच जाएगा. देश में यूरेनियम का घरेलू भंडार कम होने की वजह से पहले इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुआ. तब रूस से ही परमाणु इंधन का आयात होता था. लेकिन मार्च, 2011 में कर्नाटक के टुम्मालपाले में यूरेनियम का बड़ा भंडार मिलने के बाद इस क्षेत्र में तेजी आई है. इसके साथ ही विभिन्न देशों के साथ हुए समझौतों से भी इस क्षेत्र को प्रोत्साहन मिला है.

परमाणु कचरे की चुनौती

बिजली की मांग पूरी करने के लिए ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने की सरकार की योजना ने परमाणु कचरे से निपटने की चुनौती भी बढ़ा दी है. तमाम पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने सरकार से इस चुनौती से निपटने की ठोस रणनीति बनाने को कहा है. अब तक देश में परमाणु कचरे से निपटना कोई बड़ी चुनौती नहीं रही है. इसकी वजह यह है कि इससे बनने वाली बिजली बहुत कम थी. लेकिन अब 10 नए संयंत्रों से यह कचरा तेजी से बढ़ेगा. सरकार अब तक झारखंड के जादूगौड़ा में इस कचरे को फेंकती रही है. वहां इसकी रेडियोधर्मिता और विकिरण से आसपास के लोगों के विकलांग होने की खबरें अक्सर सुर्खियां बटोरती रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस कचरे से लगातार होने वाले रेडियोधर्मी किरणों के रिसाव ने आसपास के पर्यावरण को जहरीला बना दिया है. इसका प्रतिकूल असर आम लोगों से लेकर पूरे माहौल पर नजर आने लगा है.

पर्यावरणविद् डा. धीरेन चंद्र दास कहते हैं, "वर्ष 2000 तक देश में पैदा होने वाली कुल बिजली का 2.5 फीसदी ही परमाणु ऊर्जा से मिल रहा था. लेकिन वर्ष 2020 तक इसे बढ़ाकर पांच से सात फीसदी तक करने के केंद्र से फैसले से परमाणु कचरा तेजी से बढ़ेगा." वह कहते हैं कि तब इससे निपटना एक गंभीर चुनौती बन जाएगी और भारत को विदेशों से मदद लेनी होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देकर कोयले पर निर्भरता कम करना एक सराहनीय कदम है. लेकिन इसके साथ ही परमाणु कचरे से निपटने के लिए ठोस योजना बनानी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में परमाणु ऊर्जा से फायदे की बजाय नुकसान ही ज्यादा होगा. पर्यावरणविद् डा. सुगत हाजरा कहते हैं, "बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य और पर्यावरण की अनदेखी नहीं की जा सकती." उनकी दलील है कि इस ऊर्जा से होने वाले फायदे के मुकाबले इसके कचरे का निपटान ज्यादा खर्चीला है. परमाणु ऊर्जा और इससे जुड़ी चुनौतियों पर देशव्यापी चर्चा के बाद मानक तय किए जाने चाहिए. इस मामले में पारदर्शिता जरूरी है.

रिपोर्टः प्रभाकर