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परंपराओं और लापरवाही की बलि चढ़ते लोग

प्रभाकर११ अप्रैल २०१६

क्या केरल सरकार इस हादसे से सबक लेते हुए पटाखा उद्योग पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर यह हादसा भी दूसरे हादसों की तरह दब जाएगा?

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Indien Kollam Tempel Feuer Ruine
तस्वीर: picture-alliance/dpa

केरल के कोल्लम जिले के पुत्तिंगल देवी मंदिर में सैकड़ों बरसों से जारी एक परंपरा और सरकार की लापरवाही का खमियाजा 100 से ज्यादा लोगों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है. आतिशबाजी प्रतियोगिता के दौरान पटाखों के ढेर में लगी आग से हुए भयावह विस्फोट ने जहां मंदिर को मलबे में तब्दील कर दिया है, वहीं साढ़े तीन सौ से ज्यादा लोग अस्पतालों में जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं.

इस हादसे से साफ है कि सरकार ने पहले हुए ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं सीखा है. अब ऐसे दूसरे हादसों की तरह इसका दोष भी एक-दूसरे के मत्थे मढ़ने का खेल शुरू हो गया है. अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हुए इस भयावह हादसे के बाद इस पर राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत तमाम राजनीतिक दलों के नेता मौके पर पहुंचने लगे हैं.

Indien Kollam Tempel Feuer Ruine
तस्वीर: Reuters/Sivaram V

कैसे हुआ हादसा

पारावुर टाउन में स्थित पुत्तिंगल देवी मंदिर में हर साल नववर्ष के मौके पर आतिशबाजी की प्रतियोगिता होती है. इसके लिए भारी तादाद में पटाखे और विस्फोटक मंदिर परिसर में रखे जाते हैं. लगभग आधी रात के समय शुरू हुए इस सालाना जलसे को देखने के लिए कोई 15 हजार श्रद्धालु मंदिर परिसर में मौजूद थे. अब हादसे के बाद पता चला है कि राजस्व व पुलिस अधिकारियों ने इस आतिशबाजी की अनुमति दी ही नहीं थी. लेकिन यह भी सही है कि वर्षों से चल रही परंपरा के नाम पर प्रशासन ने आंखें मूंद रखी थीं. अगर प्रशासन ने इस मामले में सतर्कता बरती होती, तो इस हादसे को रोका जा सकता था.

Indien Kollam Tempel Feuer Ruine
तस्वीर: Reuters/Sivaram V

वैसे भी केरल के चर्चों और मंदिरों में उत्सवों के मौके पर आतिशबाजी की परंपरा काफी पुरानी रही है. पारावुर टाउन में तो बाकायदा जजों की एक मंडली आतिशबाजी प्रतियोगिता के विजेता का चुनाव करती है. हालांकि जिला प्रशासन ने अबकी उस प्रतियोगिता की अनुमति नहीं दी थी लेकिन मंदिर प्रशासन ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. उसका नतीजा इस हादसे के तौर पर सामने आया.

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तस्वीर: Reuters/Sivaram V

नहीं सीखा सबक

राज्य में बीते आठ वर्षों के दौरान आतिशबाजी की वजह से हुए हादसों में पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ढीले नियमों, पटाखों के निर्माण में सुरक्षा नियमों व मानदंडों की अनदेखी, लाइसेंस जारी करने के लिए राजनेताओं के दबाव और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (पेसो) को विस्फोटक पदार्थों से निपटने के मामले में पर्याप्त अधिकार देने में केरल सरकार की नाकामी ही ऐसे हादसों की प्रमुख वजह रही है.

Indien Kollam Tempel Feuer Ruine
तस्वीर: Reuters/Sivaram V

केरल में पेसो फिलहाल सिर्फ ग्रेनाइट की खदानों में ताकतवर विस्फोटकों के इस्तेमाल के लिए ही लाइसेंस जारी करता है, जबकि दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संघटन को काफी अधिकार मिले हैं. मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने 18 मार्च 2013 को विधानसभा में कहा था कि अवैध पटाखा निर्माण यूनिटों पर अंकुश लगाने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं. लेकिन अब साबित हो गया है कि पुलिस या जिला प्रशासन ने इन दिशानिर्देशों के पालन पर निगरानी की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है. अतिरिक्त जिला शासक को सिर्फ 15 किलो विस्फोटकों के स्टोरेज की अनुमति देने का अधिकार है. लेकिन मौके पर भारी मात्रा में विस्फोटक रखे गए थे.

Indien Kollam Tempel Feuer
तस्वीर: Reuters/ANI

लापरवाही

इसके अलावा ज्यादातर कंपनियां पटखा बनाने में पोटैशियम क्लोरेट का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि यह काफी सस्ता और आसानी से उपलब्ध है. यह हल्की रगड़ से भी आग पकड़ सकता है. साथ ही अप्रिशिक्षत कामगरों की ऐसे हादसों में अहम भूमिका है. ज्यादातर कामगरों को पता ही नहीं होता कि कौन सा केमिकल खतरनाक है और कौन सा सुरक्षित. और तो और अधिकतर इकाइयों में पेसो के सुरक्षा संबंधी दिशानिर्देशों की भी सरेआम अनदेखी की जाती है.

Indien Kollam Tempel Feuer
तस्वीर: Reuters/ANI

अब ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि क्या केरल सरकार इस हादसे से सबक लेते हुए पटाखा उद्योग पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर यह हादसा भी दूसरे हादसों की तरह दब जाएगा. चुनावी सीजन में चांडी सरकार को इस सवाल का जवाब शीघ्र तलाशना और देना होगा.

ब्लॉग: प्रभाकर

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