1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पढाई करने की कोई उम्र नही

२२ अक्टूबर २०१०

श्रोता अक्सर हमारी वेब साइट पर जाकर लिखे आलेखों को पढ़ते हैं और हमें अपनी टिप्णियां भेजते रहते हैं. हाल ही में श्रोताओं से मिली ईमेलों में क्या लिखा है, वह सब आप भी जाने.

https://p.dw.com/p/PlSM
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

डी.डब्ल्यू हिंदी कार्यक्रम के तमाम प्रस्तोता को मैं सादर अभिवादन कहता हूं. आपको मैंने 1998 के इंडिया टुडे में प्रकाशित विज्ञापन के जरिये जाना,पर मैंने 2000 से सुनना शुरु किया व पत्र-लेखन का कार्य भी आरम्भ किया. तब प्रसारण रात्रि को 08.45 से 09.30 बजे को हुआ करते थे. करीब 2-3साल तक आपको नियमित रुप से सुनना जारी रखा व पत्र भेजता रहा. उस समय तक आपके तरफ से ढ़ेरों उपहार सामग्री मुझ तक प्रेषित किये गए. बताते हुए असीम हर्ष की अनुभूति हो रही है कि तमाम सामग्री धरोहर के रुप में आज भी संजो कर रखी है. 2003के बाद कतिपय वजह से आपका प्रसारण नियमित रुप से सुनना जारी न रख सका, पर नेट पर जब भी मेरी पहुंच हुई बीबीसी व वायस ऑफ अमेरिका के संग आप पे द्वष्टिपात करने को न भूलता. आज आपने दोनों माध्यमों को काफी संजोया है वह भी बड़े यत्न से. कामना यही है कि आप ऐसे ही अपनी प्रस्तुतिकरण को बरकरार रखें. साथ में आपको असीमित श्रोता का असीम स्नेह व प्रेम मिलता रहे. हम आपके कार्योँ की तहेदिल से सराहना करते है. आपका हौसला, मेहनत व लगन यों ही बरकरार रहे, यही मेरी दुआ है.

पवन कुमार पंकज, संदलपुर,महेन्द्रू,पटना (बिहार)

***


मैं रेडियो सुनने के साथ साथ आप लोगों का हिन्दी वेब पेज भी रोज देखता हूं. रंग तरंग के अंतर्गत "सौ साल का स्टूडेंट" नामक लेख पढ़कर अच्छा लगा. अगर मन और शरीर दोनों आपस में तालमेल रखकर कोई भी काम करना चाहे, तो वह काम जरूर सफल होता हैं और आत्म बल भी बढ़ता है. भोलारामजी ने भी यही किया हैं. अपने उम्र का ख्याल किये बिना सौ साल की उम्र में भी पढ़ाई करने निकले. हमारी नई पीढ़ी को उनसे सीख लेनी चाहिये.

जीउराज बसुमतारी, सोनितपुर (असम)

***


दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल के नायक और भारत के चहेते पहलवान सुशील कुमार के साथ इंटरव्यू सुना, जो मुझे बहुत ही रोचक लगा. यथा नाम तथा गुण, सुशील कुमार वाकई में सुशील हैं. हमारी शुभकामनाएं हमेशा सुशील जी के साथ हैं. इतनी अच्छी और दुर्लभ बातचीत सुनवाने के लिए डायचे वेले को कोटिशः धन्यवाद.

चुन्नीलाल कैवर्त, ग्रीन पीस डी-एक्स क्लब सोनपुरी, जिला बिलासपुर, (छत्तीसगढ़)

***


भारत सिक्योरिटी कौंसिल (सुरक्षा परिषद) का मेम्बर चुना गया. सर्वाधिक मत मिले. बहुत ख़ुशी की बात है. भारतवर्ष पूर्वी गोलार्ध का यूएसए बन कर उभर रहा है यूएसए ऑफ़ द ईस्ट. भारतवर्ष को यूनाइटेड स्टेटस ऑफ़ एशिया कह सकते हैं. भारतवर्ष और अमेरिका में हर बात में समानता है. फर्क सिर्फ इतना है कि एक न्यू है, और दूसरा बहुत ओल्ड है.

एस आर वाकणकर, ईमेल से

***

निर्मल जी द्वारा प्रस्तुत अंतरा में रूथ मनोरमा जी से विस्तार से बातचीत बहुत पसंद आई. मनोरमा जी की महिलाओं और दलितों के लिए लड़ाई जारी रहेगी. इनकी लड़ाई की यात्रा दक्षिण भारत से प्रारंभ होकर एशिया, यूरोप तक फैली है. कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिए डी डब्ल्यू को धन्यवाद.

लाइफ लाइन में आभा जी द्वारा इंडोनेशिया के बाली द्वीप में गंदे पानी के कारण बीमार हो रहे लोगों के बारे में बताया गया. एक तरफ पानी की कमी हो रही है, दूसरी तरफ पानी प्रदूषित भी हो रहा है. साथ ही कोलकाता से प्रभाकर जी की खास रिपोर्ट में कृत्रिम पांव बना रहे ऐसे लोगों के बारे में बताया गया जिनके खुद के पैर कृत्रिम हैं, जो दूसरे लोगों के लिए कृत्रिम पैर बना रहे है और दूसरों का सहारा बन रहे है. कार्यक्रम पसंद आया.

वेस्ट वॉच में रोमा जिप्सियों के फ्रांस से भगाए जाने के बारे में सुना. इनको इस तरह से नहीं भगाया जाना चाहिए, बल्कि इनकी स्थिति सुधारने के लिए आबंटित राशि का पूरा उपयोग करना चाहिए और इन्हें एक अच्छे नागरिक का दर्जा देना चाहिए. रोमानिया में सबसे ज्यादा रोमा जिप्सी रहते हैं, लेकिन इनकी स्थिति सुधारने के लिए पूरे यूरोप को आगे आना चाहिए. यूरोपीय सम्मलेन में इसकी अच्छी शुरुआत हुई है.

दुर्गेश कुमार पटेल, रायगढ़, छत्तीसगढ़

***

Indien Commonwealth Games Sania Mirza
तस्वीर: UNI

सानिया भारत की हैं, कीट पतंगों के बीच रहने की आदी हैं फिर भी वह कीट पतंगों की वजह से हारीं. सानिया मिर्जा की बातों से तो यही लगता है कि कीट पतंगों ने ऑस्ट्रेलिया की रोडियोनोवा को परेशान नहीं किया. हार जीत होना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन ऐसे बहाने अच्छे नहीं लगते.

अंगिरस द्विवेदी, ईमेल से

***

जर्मनी के समाचार पत्रों को पढ़ कर लगा, कि जर्मनी भी उसी कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त है जिससे बाकी पश्चिमी देश जो भारत की कॉमनवेल्थ गेम्स की इनआगरेशन सैरेमनी और उसके बाद की सफलताओं को पचा नहीं रहे है और समाचार पत्रों में सिर्फ कमियां निकाल रहे है. कम से कम रेडियो डीडब्ल्यू को तो अपनी खुद की समीक्षा देनी चाहिए कि सीएमजी कितने सफल हैं. और न केवल हम हिंदी श्रोताओं को खुश करने के लिए बल्कि अपनी इंग्लिश न्यूज़ साईट पर भी जैन्वीन टिप्प्णी देनी चाहिए.

अनूप अग्रवाल, ईमेल से

***

Commonwealth Games Clothing Ceremony Neu Delhi Indien Sport Flash-Galerie
तस्वीर: AP

पूरा भारत मैदान पर उतर आया - इस आयोजन से आम आदमी को जो खेल का वातावरण मिला वह नयी प्रतिभाएं सामने लायेगा खेलों की तैयारियों में कथित भ्रष्टाचार , कुछ मिसमैनेजमेंट हमारी कमियां थीं , जो प्रायः प्रगतिशील देशों की सामाजिक समस्या है. पर जिस तरीके से सुरक्षा, अंतिम तैयारियां व प्रदर्शन रहा उससे हमारी देश प्रेम की भावना भी दिखी. कहा जाता है अंत भला तो सब भला. अब भ्रष्टाचार की जाँच वगैरह चलती रहेगी, जिसमें कुछ ज्यादा मिलेगा नहीं क्योंकि कागजी कार्यवाही पूरी की ही गई होगी. पर इस आयोजन से आम आदमी को जो खेल का वातावरण मिला, उससे नई प्रतिभाएं तैयार होंगी.

विवेक रंजन श्रीवास्तव, ईमेल से.

***


खेल गांव में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का उत्पात - गलत मानसिकता के लोग हैं ऑस्ट्रेलिया वाले ...उधर भारत के छात्रों पर जुल्म और इधर क्रिकेट की हार पर सर के बाल नोच रहे हैं. वो तो भला हो, हाकी 8 गोल से जीत गए वरना ना जाने ये और क्या गुल खिलाते .

गोविन्द पंत, ईमेल से

***

कीट पतंगों की वजह से हारी सानिया - अच्छा होगा अगर सानिया मिर्ज़ा खेल को गंभीर भाव से खेलेगी, अंतराष्ट्रीय खेलों में खेल चुकी सानिया अगर ये कहती है कि कीटों के कारण वो हार गई तो ये हास्यपद ही लगती है.

यश चोपडा को पसंद नहीं आई दबंग - दबंग फिल्म में वही बात है जो दूसरी एक्शन फिल्मों में थी. हमारे भारतीयों की मानसिकता ही ऐसी है कि सिर्फ मनोरंजन और एक्शन मिल जाये तो काफी है. यही कारण है कि हम आज तक ऑस्कर अवार्ड के दौर में भी पीछे है. लोग अपनी पुरानी सोच को छोड़कर कुछ नया सोचना ही नहीं चाहते हैं.

किशोरों को संवेदनहीन बनाते हिंसक विडियो - ये वास्तव में सोचनीय विषय है कि फिल्मों के खुलेपन के कारण और जब बच्चों को हिंसक फिल्में दिखाई जाती हैं तो उनकी मानसिक हालत में धीरे धीरे काफी परिवर्तन होते हैं. वे बड़ों को सम्मान कम देने लगते हैं और मौका मिले तो बिना सोचे किसी को भी मारने का प्रयास करते है. इस पर विचार जरुरी है.

निर्मल सिंह राणा, ईमेल से

***

संकलनः विनोद चढ्डा

संपादनः महेश झा