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'पंधेर के दोषी होने का सबूत नहीं'

११ सितम्बर २००९

निठारी हत्याकांड में इलाहबाद हाईकोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंधेर को बरी कर दिया है. शुक्रवार 11 सितंबर को इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ये फ़ैसला सुनाया. पंधेर को ग़ज़ियाबाद विशेष अदालत ने फांसी की सज़ा दी थी.

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पंधेर बरी.तस्वीर: AP

जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तुज़ा और जस्टिस एन के पांडे की खंडपीठ ने ये फ़ैसला सुनाया कि "ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया जो ये बताता हो कि पंधेर दोषी है". इलाहबाद हाईकोर्ट की इस खंडपीठ ने फांसी की सज़ा से पंधेर को बरी कर दिया है लेकिन सुरेंद्र कोली की मौत की सज़ा बरकरार रखी है.

निठारी कांड में सीबीआई ने भी पंधेर को ये कहते हुए क्लीन चिट दे दी थी कि वजब हत्या हुई उस वह समय भारत से बाहर ऑस्ट्रेलिया में था.

हाईकोर्ट में मौजूद मोनिंदर सिंह पंधेर के पुत्र ने अदालत के इस निर्णय पर ख़ुशी जताई और कहा कि "इस मामले में बचे हुए मुद्दों पर भी वे न्याय की अपेक्षा करते हैं. साथ ही कहा कि इस देश में भगवान है और न्याय भी. हमें बहुत ख़ुशी है".

अदालत की सहायता के लिए नियुक्त किये गए वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता जीएस चतुर्वेदी को आशा है कि कोली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेगा

जी एस चतुर्वेदी ने पंधेर के मामले पर कहा कि "इसकी जांच के लिये उच्च अदालत ने जो प्रक्रिया अपनाई वह तार्किक वैज्ञानिक नहीं थी. दूसरा कि इस आदमी के ख़िलाफ़ अदालत के पास कोई सबूत नहीं था".

चतुर्वेदी का कहना है कि इस फ़ैसले का असर निठारी कांड के दूसरे मामलों पर भी पड़ सकता है क्योंकि सबूत एक जैसे हैं.

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अप्रैल 2006 में नॉयडा के निठारी में कंकाल मिले थे.तस्वीर: AP

निठारी हत्याकांड

2006 में नई दिल्ली के नॉयडा के पास निठारी गांव में बच्चों के कंकाल मिलने के बाद सनसनी फैल गई थी. इसी मामले में 26 अप्रैल 2006 से ग़ायब लड़की रिंपा हालदार के बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में इन दोनों को सज़ा सुनाई थी.

निठारी में 19 लोगों की हत्या का मामला सामने आया था जिनमें ज़्यादातर बच्चे थे. सीबीआई को इस मामले की जांच के दौरान 40 ऐसे पैकेट मिले थे जिसमें मानव अंगो को भरकर फेंक दिया गया था. इसी मामले में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंधेर को दिसंबर में पुलिस ने गिरफ्तार किया था. ग़ाज़ियाबाद विशेष अदालत ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर को निठारी हत्याकांड मामले में मौत की सज़ा सुनाई थी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ आभा मोंढे

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य