पंचायत ने दिया रेप का आदेश
२३ जनवरी २०१४मामला वही पुराना है. 20 साल की लड़की किसी और जाति के लड़के से प्रेम करती थी और मंगलवार रात दोनों को एक साथ बैठे देख लिया गया. आपाधापी में चार लोगों की पंचायत बैठी. उन्होंने तय किया कि लड़की वालों को 25,000 रुपये का जुर्माना देना होगा. पुलिस के मुताबिक जब परिवार वालों ने कहा कि उनके पास पैसे नहीं हैं तो जुर्माना बलात्कार की कीमत पर वसूला गया. पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया है.
प्रेम की सजा
बीरभूम जिले के एसपी सी सुधारकर ने बताया, "इस लड़की का किसी और जाति के लड़के के साथ प्रेम चल रहा था. और इसी की सजा के तौर पर गांव पंचायत ने 12 लोगों से कहा कि वह लड़की से जबरदस्ती करें. हमने इस मामले में अब तक 12 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है." इस घटना ने एक बार फिर दिल्ली बलात्कार कांड की याद ताजा कर दी है जब दिसंबर, 2012 में एक चलती बस में छात्रा के साथ छह लोगों ने हिंसक तौर से सामूहिक बलात्कार किया.
दक्षिण एशिया में बलात्कार के मामलों ने भारत सहित सभी देशों की छवि पर गहरे धब्बे दिए हैं. कड़े कानून के बावजूद भारत में बलात्कार के मामले नहीं रुक रहे हैं, जो समाज में फैले दकियानूसी विचारधारा के प्रतीक हैं. इससे पहले दिल्ली में भी डेनमार्क की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. उधर, पाकिस्तान में 2002 में मुख्तार माई के साथ बलात्कार का आदेश दिया गया था, क्योंकि कथित तौर पर उनके नाबालिग भाई का किसी संभ्रांत परिवार की लड़की से प्रेम चल रहा था. पाकिस्तान में इस मामले में छह लोगों को बलात्कार के लिए मौत की सजा दी गई लेकिन पांच को बाद में छोड़ दिया गया.
पंचायत का फैसला
भारत में कोलकाता से करीब 240 किलोमीटर दूर सुबलपुर गांव में जब लोगों को पता चला तो उन्होंने आनन फानन में पंचायत बुलाई. सुधाकर का कहना है, "ग्राम परिषद के प्रमुख ने मंगलवार को आपात बैठक बुलाई. लड़की और उसके प्रेमी को भी बुलाया गया. दोनों को अलग अलग पेड़ों से बांधा गया और दोनों पर 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया." लड़की के घर वालों ने असमर्थता जताई, तो लड़की के बलात्कार का आदेश दे दिया गया. लड़के ने हफ्ते भर में पैसे देने की बात कही, जिसके बाद उसे छोड़ दिया गया.
ऐसी पंचायतों का कोई कानूनी आधार नहीं है लेकिन समाज और जाति के कुचक्र में फंसे भारत के बड़े हिस्से के लोग इनके तानाशाही फैसले मानने को मजबूर हैं क्योंकि ऐसा नहीं करने पर उन्हें "समाज से बाहर" कर दिया जाता है. जिस्मानी और मानसिक तौर पर टूट चुकी युवती एक अस्पताल में अपने शरीर को बेहतर करने की जंग लड़ रही है.
एजेए/एमजी (एएफपी, एपी)