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नोबेल विजेताओं के बीच उभरता भारत

३० जून २०११

भले ही भारत को गिने चुने नोबेल पुरस्कार मिले हों पर जब नोबेल विजेताओं के सम्मेलन की बात हो, तो वहां भारत की उभरती प्रतिभा एकदम से सामने आती है. लिंडाऊ में जर्मनी और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रिसर्चर और छात्र भारत से आए.

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दक्षिणी जर्मनी में बसा लिंडाऊ एक बेहद खूबसूरत शहर हैतस्वीर: dpa

कहानी बहुत दिलचस्प है. विज्ञान और रोमांस एक साथ चल रहा है. मानो वैज्ञानिक समीकरणों और क्रियाओं के बीच कहीं बॉलीवुड फिल्म भी बन रही हो. विश्वास शर्मा और अमृता नंदर उत्तर प्रदेश की छोटी सी यूनिवर्सिटी जौनपुर में पढ़ रहे थे. दोनों की मुलाकात हुई, फिर भारत के सबसे बड़े रिसर्च सेंटर सीसीएमबी, हैदराबाद ने अमृता को बुला लिया. बिछुड़े हुए कुछ ही दिन हुए कि विश्वास का भी बुलावा आ गया. जौनपुर और इलाहाबाद का जोड़ा हैदराबाद में दोबारा मिल गया.

दोनों ने शादी का फैसला किया. शादी के दो दिन बाद जर्मन छात्र एक्सचेंज सेंटर डीएएडी का इंटरव्यू था, जिसमें पास होने पर जर्मनी जाकर पढ़ने का मौका मिलता. कुछ दिन बाद एक सुबह अमृता को ईमेल मिला कि उनका सेलेक्शन हो गया है. वह खुश भी थीं और दुखी भी क्योंकि उन्हें अलग रहना होगा. लेकिन शाम होते होते विश्वास को भी डीएएडी का आमंत्रण मिल गया. पति पत्नी दोनों को जर्मनी के एक ही यूनिवर्सिटी हनोवर में रिसर्च का मौका मिल गया.

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अविषेक का कहना है कि प्रतिभाओं की नहीं, संसाधनों की कमी हैतस्वीर: DW

अमृता कहती हैं, "हम खुद को बहुत भाग्यशाली महसूस करते हैं कि भगवान ने हम दोनों को यह मौका दिया है. जब मुझे मेल मिला था तो खुश होने के साथ मैं बहुत दुखी थी कि इनसे अलग रहना होगा. लेकिन रात तक इनका भी मेल आ गया. मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा."

अमृता और विश्वास के साथ करीब 25 भारतीय छात्र जर्मनी में उच्च शिक्षा के लिए आए लेकिन नोबेल विजेताओं के सम्मेलन में उनमें से सिर्फ दो को चुना गया. यहां भी इन्हीं पति पत्नी का नाम सामने आया.

अस्थमा जैसे आनुवांशिक बीमारियों पर रिसर्च कर रहे विश्वास बताते हैं, "आप इस सम्मेलन में सीधे अप्लाई नहीं कर सकते. कोई संस्था आपको नामांकित करती है और बाद में नोबेल चयन समिति आपके नाम पर फैसला करती है. डीएएडी ने हमारा नाम प्रस्तावित किया और नोबेल समिति ने हम दोनों के नाम को हरी झंडी दे दी."

भारत का बड़ा हिस्सा

अमृता और विश्वास सहित भारत के कुल 40 छात्र और रिसर्चर जर्मन शहर लिंडाऊ के 61वें नोबेल सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. पटना के अविषेक अनंत भी उनमें से एक हैं, जो नई दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में टीबी पर रिसर्च कर रहे हैं. उनका कहना है, "हम लोग आम तौर पर जब प्रयोग करते हैं तो 10 में से नौ प्रयोग विफल हो जाते हैं. लेकिन लिंडाऊ में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के अनुभव सुनने पर लगता है कि उनके जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. मुझे बहुत बड़ा मौका मिला है कि मैं यहां आ पाया हूं."

सोचा न था

चंडीगढ़ के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेसन एंड रिसर्च की गीता नेगी को तो पता ही नहीं था कि लिंडाऊ में उन्हें कुछ ऐसा देखने को मिलेगा. नोबेल विजेताओं और इतने सारे देशों के रिसर्चरों के साथ अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन बिता रही गीता कहती हैं, "मुझे तो यहां के बारे में पता ही नहीं था कि ऐसा माहौल होगा. इतने सारे नोबेल विजेताओं से बात करने और उनके साथ लंच करने का मौका मिलेगा. उनसे अपने सवालों के बारे में जानने का मौका मिलेगा."

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गीता नेगी का सबंध चंडीगढ़ के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेसन एंड रिसर्च से हैतस्वीर: DW

शूगर की बीमारी यानी डायबिटीज पर काम कर रही गीता कहती हैं कि आज के जमाने में भारत में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है, "जैसा दूसरे देशों में रिसर्च हो रहा है, भारत में भी वैसा हो सकता है. प्रतिभाओं की तो कोई कमी ही नहीं है. लेकिन हमारे यहां तकनीक का सही फायदा नहीं उठाया जा रहा है और नई सोच पर काम करने से लोग घबराते हैं. आम तौर पर किताबी फॉर्मूले पर ही काम जारी रहता है, जिससे वहां ऐसे नतीजे नहीं मिल पाते हैं."

हम किसी से कम नहीं

क्लिनिकल रिसर्च कर रहे पटियाला के डॉक्टर सिमर राजन सिंह खुद को चुनिंदा लोगों में गिनते हैं, जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक सम्मेलन में आने का मौका मिला. सिंह का कहना है, "यहां नोबेल विजेताओं की बात सुन कर बहुत प्रेरणा मिलती है. उन्हें भी कई बार नाकामी मिली, लेकिन मेरा सोचना है कि अगर आपको कोई चीज संभव लगती है, तो आपको उस पर काम करते रहना चाहिए." भारत में रिसर्च और मेडिकल साइंस की स्थिति पर सिमर कहते हैं, "भारत कोई पीछे नहीं है. हम लोग एक ही टॉपिक पर बात करते हैं. एक ही मुद्दे होते हैं. शायद पैसों की दिक्कत होगी. लेकिन हम उनसे कम नहीं हैं."

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सिमर राजन सिंह सिंह लिंडाऊ में आकर बेहद खुश हैंतस्वीर: DW

भारत क्यों है पीछे

अविषेक भी इस बात की पुष्टि करते हैं, "हमारे यहां प्रतिभा की कमी नहीं. मेहनत की मुश्किल नहीं. हमारे यहां दिक्कत है संसाधनों की. यही वजह है कि हमें विज्ञान में संसाधनों को लेकर संघर्ष करना पड़ता है."

लिंडाऊ पहुंचे जर्मनी में डॉक्ट्रेट कर रहे विश्वास इसे जरा और समझाते हुए बताते हैं, "आजकल अत्याधुनिक विज्ञान मशीनों पर निर्भर है और हमारे देश में अगर मशीनें हों भी, तो बहुत जगह लाइट नहीं है. पूर्वांचल विश्वविद्यालय में महंगे उपकरण लाइट न होने की वजह से खराब हो रहे हैं. मूल रूप से सपोर्टिंग सिस्टम की कमी है."

भारत को विज्ञान के क्षेत्र में सीवी रमन के तौर पर नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा भारतीय मूल के हरगोविंद खुराना, एस चंद्रशेखर और वेंकटरमन रामाकृष्णन को भी विज्ञान का नोबेल मिला है. इन वैज्ञानिकों ने भी शुरुआती पढ़ाई भारत में की लेकिन बाद में बेहतर सुविधाओं के लिए भारत छोड़ कर अमेरिका चले गए.

विश्वास भी विज्ञान के लिए दुनिया के किसी भी कोने में जाने को तैयार हैं. उनका कहना है, "मुझे विज्ञान की सेवा करनी है, चाहे कहीं भी रहना हो. जहां अच्छा साइंस होगा, मैं वहां जाऊंगा."

और उनकी पत्नी अमृता का कहना है, "जहां वह जाएंगे, वहां मैं जाऊंगी"

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, लिंडाऊ (जर्मनी)

संपादनः ए कुमार

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