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नोटबंदी ने भारत के किसानों पर की तगड़ी चोट

१८ नवम्बर २०१६

शहरों में तो लोग बैंकों और एटीएम के सामने लाइन लगाए खड़े हैं लेकिन असली मुसीबत गांवों में है. और इसका असर फसल पर भी पड़ रहा है.

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Indien Hitzewelle Dürre
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

दिल्ली के बजना गांव में रहने वाले किसान बुद्धा सिंह के लिए नोटबंदी का सरकार का फैसला मुसीबत बन गया है. उनके जैसे हजारों किसान अपने खेतों में बोने के लिए बीज और लगाने के लिए खाद नहीं खरीद सकते.

दो साल के सूखे के बाद भारत के किसानों को इस साल मानसून से कुछ राहत मिली थी. लेकिन सरकार की तरफ से 500 और 1000 रुपए के नोट बंद किए जाने के फैसले से उनके सामने फिर मुश्किल स्थिति पैदा हो गई है. नकदी की कमी के चलते वो रबी की फसल के लिए बुआई को तरस रहे हैं और इसका असर न सिर्फ खाद्य उत्पादन पर पड़ सकता है बल्कि इससे गांवों की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी.

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बुद्धा सिंह बताते हैं, "हमें जितने बीजों, खादों और कीटनाशकों की जरूरत है, हम वो नहीं खरीद पा रहे हैं. समय निकलता जा रहा है और गेहूं, सरसों और चने जैसी फसलों को लगाने के लिए हमारे पास 10 से 15 दिन और बचे हैं.” उनके साथ नीम के पेड़ के नीचे बैठे लगभग 30 अन्य किसानों की भी यही कहानी है.

भारत के लगभग 26.3 करोड़ किसानों का काम ज्यादातर नकदी से ही चलता है. ऐसे में काले धन को काबू करने के लिए सरकार की तरफ से नोटबंदी के फैसले की सीधी मार इन किसानों पर पड़ रही है. सरकार के इस फैसले से भारतीय बाजार में चल रही 86 फीसदी नकदी गायब हो गई है. अभी 500 और 2000 रुपए के नोट पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं हैं. ऐसे में हालात को सामान्य होने में हफ्तों का समय लग सकता है.

शहरों में तो लोग एटीएम मशीनों और बैंकों की शाखा में लाइन लगाए खड़े हैं. लेकिन गांवों में बहुत से लोग नजदीकी बैंक की शाखा से मीलों दूर रहते हैं. गांवों में रहने वाले बहुत से लोगों ने तो अभी तक नए नोट देखे भी नहीं होंगे. अगर फसल देरी से लगाई जाती है तो इसका असर न सिर्फ उत्पादन पर पड़ता है बल्कि फसल को होने वाले जोखिम भी बढ़ जाते हैं. एक किसान प्रकाश चंद्र शर्मा कहते हैं, "फसल लगाने का सबसे अच्छा समय लगभग बीत गया है. इसलिए तय मानिए कि इस बार हमें नुकसान उठाना पड़ेगा.”

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कृषि मामलों के जानकार देवेंदर शर्मा कहते हैं कि नोटबंदी के फैसले से गांवों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. उनकी राय है, "ये अंदाजा लगाना अभी मुश्किल होगा कि फसलों को कितना नुकसान हो सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आमदनी और मांग पर इसका निश्चित तौर पर बुरा असर होगा. अगले साल अप्रैल से ही चीजें बेहतर होने की उम्मीद जा सकती है.”

वहीं सरकार ने किसानों को अनुमति दी है कि वो अपनी फसलों के ऋण की एवज में हर हफ्ते 25 हजार तक की रकम निकाल सकते हैं कि ताकि रबी की फसल की बुआई सही समय पर हो जाए. आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांता दास ने कहा है कि किसानों के लिए फसल बीमा का प्रीमियम देने की समय सीमा 15 दिन के लिए बढ़ा दी गई है.

बहरहाल किसानों को ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद नहीं है क्योंकि वो नकदी के लिए बैंकों से ज्यादा साहूकारों पर निर्भर रहे हैं जो सालाना 40 प्रतिशत तक का ब्याज लेता है.

एके/वीके (रॉयटर्स)