1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नशे से ही नशे को रोकने की कोशिश

२ नवम्बर २०१०

पीने की लत छुड़ाने के लिए दुनिया भर में शराब से परहेज की ही हिदायतें दी जाती हैं, पर नीदरलैंड्स में नशेड़ी लोगों को दिन में पांच लीटर तक बीयर पीने को दी जा रही है. वह भी इस उम्मीद में कि वे धीरे धीरे शराब से दूर हो जाएं.

https://p.dw.com/p/Pvy0
तस्वीर: Senator Film

डच अधिकारियों का कहना है कि यह कार्यक्रम खासा कामयाब रहा है. डच मनोविज्ञानी ओएगेन शाउटेन कहते हैं, "इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान है कि शराब की लत को रोका जाए."

पीने की आजादी

राजधानी एम्सटरडैम से 20 किलोमीटर दूर बने मेलीबान सेंटर में भी यह कार्यक्रम चल रहा है. वहां पीने की लत के शिकार कई लोगों को रखा गया है. शाउटेन बताते हैं कि डच शहरों में बेघर लोगों के छोटे छोटे समूह इस समस्या की मार झेल रहे हैं. वे सड़कों पर धीरे धीरे दम तोड़ रहे हैं. कुछ साल पहले सरकार ने सड़कों पर रात गुजारने वाले लोगों के लिए खास कार्यक्रम चलाया. इसके तहत ऐसे नशेड़ी लोग मिले जिन पर पारंपरिक तरीका यानी शराब से दूर रहने की हिदायत असर नहीं करेगी.

Symbolbild Bier Alkohol Dose
Symbolbild Bier Alkohol Doseतस्वीर: picture-alliance / dpa

शोउटेन बताते हैं, "खास कर ऐसे लोग दशकों से शराब के आदी हैं, बेघर हैं, कोई परिवार नहीं, रिश्तेदार नहीं. इनमें शराब के बुरी तरह आदी हो चुके लोगों से यह कह पाना तो ठीक नहीं होगा कि आप शराब को हाथ न लगाएं. कम से कम ऐसे वक्त में जब वे मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं."

नीदरलैंड्स में साल भर पहले यह केंद्र बनाया गया जिसमें लोगों को पीने की पूरी छूट होती है. वहां एक बार है जिसमें सेंटर में रहने वाले लोग आकर दिन में पांच लीटर बीयर तक पी सकते हैं. हां, इसके लिए कुछ नियम तो मानने ही होंगे. पहला वे सिर्फ सेंटर के बार में ही बीयर पी सकते हैं. दूसरा एक घंटे में आधा लीटर से ज्यादा बीयर नहीं मिलेगी. और पीने के लिए सुबह साढ़े सात से रात साढ़े नौ बजे तक का समय तय किया गया है.

Mann mit Alkohol und Zigarette Kater Kopfschmerzen
तस्वीर: picture-alliance

पुरानी लत

मार्शल फान त्साइटेरेन मालेबान सेंटर में रहने वाले कई लोगों में से एक हैं. वह बताते हैं, "जब मेरे मां बाप की मौत हुई तो मेरी उम्र काफी कम थी. फिर मैं गलत संगत में पड़ गया. मैं बहुत ज्यादा धूम्रपान करने लगा जिसके साथ पीने की भी आदत लग गई. मेरी बीवी और बीस साल का एक बेटा भी है लेकिन वह मुझसे नफरत करता है क्योंकि मैं पीता हूं. मैं जेल में भी रहा."

इस सेंटर को चलाने वालों का कहना है कि यहां रहने वाले लोगों के खून में अल्कोहल की मात्रा बनी रहती है, लेकिन वे इस हालत में होते हैं कि ठीक से बात कर सकें और दूसरों की समझ सकें. शोउटेन बताते हैं, "अगर इन लोगों को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा तो वे अपने आपको नुकसान पहुंचाते रहेंगे. सुबह से शाम तक पीते रहेंगे. यहां कम से कम वे कुछ होश में तो रहते हैं. आप उनसे बात कर सकते हैं. उन्हें अपनी बात समझा सकते हैं. और हमें उनमें सुधार दिखाई देता है. जब वह यहां आते हैं तो उनके शरीर पर बहुत से घाव होते हैं. हम उनका इलाज करते हैं और दिन में तीन वक्त खाना देते हैं."

एक आशा

वैसे इस तरह के कार्यक्रम की शुरुआत पहली बार कनाडा में हुई जहां सरकार पर कड़ाके सर्दी में बहुत से नशेड़ी लोगों की मौत के बाद बेघर लोगों के लिए ठोस कदम उठाने का दबाव था. नीदरलैंड्स की एक टीम भी टोरंटो गई और देखा कि यह प्रयोग कैसे काम करता है. लेकिन कनाडा में शराब महंगी है और सुपरमार्केट्स भी बहुत दूर दूर होते हैं. इसलिए वहां इस कार्यक्रम के तहत पीने के लिए लोगों को लाइन लगानी पड़ती है. लेकिन नीदरलैंड्स में ऐसा नहीं हो सकता. शोउटेन बताते हैं, "नीदरैलैंड्स में थोड़ी थोड़ी दूरी पर सुपरमार्केट्स होते हैं और 35 सेंट में बीयर मिल जाती है. तो यहां तो कोई उसके लिए लाइन लगाने से रहा. तो हमने यहां रहने वाले हर व्यक्ति से बात की और तय किया कि उसे दिन में बीयर के कितने कैन चाहिए. लेकिन किसी को पांच लीटर से ज्यादा बीयर नहीं मिलेगी."

किसी को भी यह भ्रम नहीं है कि इस सेंटर में रहने वाले लोग पीना छोड़ देंगे. लेकिन इस तरह बेघर लोगों को एक अच्छी जिंदगी तो दी ही जा सकती है. उन्हें पीने दिया जाता है लेकिन कायदे से, और क्या पता जिंदगी की अहमियत समझने के बाद वे पीने से भी तौबा कर लें.

रिपोर्टः डीडब्ल्यू/ए कुमार

संपादनः एमजी

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी