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समाज

नमाज के ब्रेक से पहले सम्मान की जगह देते

शिवप्रसाद जोशी
२० दिसम्बर २०१६

उत्तराखंड सरकार ने अपने मुस्लिम कर्मचारियों के लिए हर शुक्रवार को नमाज के लिए डेढ़ घंटे की विशेष छुट्टी देने का ऐलान किया है. इस फैसले के बाद देश भर के राजनैतिक हल्कों और सोशल मीडिया गलियारों में हलचल मच गई है.

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Indien Bundesland Uttarakhand - Harish Rawat
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

रावत कैबिनेट के इस फैसले पर अभी अधिसूचना जारी होना बाकी है. अमल में आने से पहले इस फैसले के क्या किंतुपरंतु और तकनीकी बातें होंगी, वे भी अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं. लेकिन सोशल मीडिया में जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है, ऐलानिया अंदाज में आरोप-प्रत्यारोप की जंग छिड़ चुकी है. हर शुक्रवार को 90 मिनट के ब्रेक में कर्मचारियों का निर्धारित भोजनावकाश भी शामिल है. निजी संस्थान इस फैसले से नहीं बंधे होंगे. मुख्यमंत्री रावत के हवाले से एक बयान मीडिया में ये भी आया है कि जरूरत पड़ने पर ऐसा ब्रेक अन्य धर्मों और वर्गों के कर्मचारियों के लिए भी रखा जा सकता है.

जुमे की नमाज के लिए ब्रेक देकर अव्वल तो हरीश रावत सरकार ने मुस्लिम समुदाय का कोई उपकार नहीं किया है. अगले साल फरवरी में राज्य में चुनाव होंगे, उसे देखते हुए ये  मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की एक कोशिश मानी जा रही है. खासकर हरिद्वार, उधमसिंह नगर, नैनीताल और देहरादून जैसे चार जिलों में जहां मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक संख्या है और विधानसभा सीटों की सबसे ज़्यादा संख्या भी इन्हीं जिलों में है. कुल 70 विधानसभा क्षेत्र वाले उत्तराखंड में आधा सीटें इन्ही चार जिलों में बंटी हैं. हरिद्वार में 11, देहरादून में नौ, उधमसिंह नगर में नौ, नैनीताल में छह सीटें हैं. मजे की बात ये है कि मुस्लिम कर्मचारियों को ये तोहफा देकर निशाना उस मुस्लिम मतदाता आबादी पर साधा गया है जो इन जिलों के देहातों में खेती किसानी और दूसरे छोटेमोटे रोजगार करती है. 2011 की जनगणना के हिसाब से उत्तराखंड की कुल आबादी में हिंदू करीब 83 फीसदी और मुसलमान करीब 14 फीसदी हैं. इनमें भी सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी क्रमशः हरिद्वार, उधमसिंह नगर, नैनीताल और देहरादून में हैं जहां 34 से 12 फीसदी मुसलमान हैं.

Indien Lucknow Unabhängigkeitstag
नमाज ब्रेक पर राजनैतिक घमासान शुरूतस्वीर: DW/S. Waheed

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि चाहे उत्तराखंड हो या कोई दूसरा राज्य, सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की संख्या नगण्य है. केंद्र सरकार की नौकरियों से लेकर राज्य सरकारों की नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत 10 फीसदी से ज्यादा किसी भी राज्य में है ही नहीं. और अगर कुल अनुपात में देखे तो ये पांच प्रतिशत से भी कम प्रतिनिधित्व आता है. आबादी के सापेक्ष सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की उपस्थिति उस समुदाय के अंदरूनी हालात और देश की राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है. खासकर जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की जा चुकी है, उसके बाद कुंदु समिति की रिपोर्ट भी आ चुकी है और उन दोनों रिपोर्टों में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक आर्थिक बदहाली के चिंताजनक आंकड़े दर्ज हैं.

अब ऐसे में नमाज के ब्रेक का ये झुनझुना थमाकर हरीश रावत सरकार किसका कल्याण कर रही है. चली आ रही ऑफिस परंपरा में तो नमाज के लिए पहले से वक्त मुकर्रर है. आप नया क्या दे रहे हैं? क्या कौमों की बदहाली के अध्ययनों और उनके उत्थान के उपायों में ये कहीं शामिल है कि कोई ब्रेक या छुट्टी घोषित करते रहें? रही बात बीजेपी के आरोपों की तो पूछा जाना चाहिए कि कई हिंदू त्यौहारों के लिए निर्बन्धित अवकाश (रेस्ट्रिक्टड) रखे गए हैं, और तो और हरीश रावत सरकार ने पिछले दिनों छठ और करवाचौथ पर भी अवकाश घोषित कर डाले थे, तब तो बीजेपी चुप रही. ऐसे में 90 मिनट के ब्रेक से कौनसा आसमान गिर पड़ेगा. पूछा तो असल में ये जाना चाहिए कि आखिर सरकारें इस या उस धर्म या जाति या समुदाय की धार्मिक-पारंपरिक मान्यताओं को भुनाने की कोशिशें क्यों करती हैं. क्यों सरकार लोगों की निजताओं से अपने लिए फायदे निकालने की जुगत में लगी रहती है. आप अगर इस या उस समूह के रीति रिवाजों और उत्सवों पर सरकारी छुट्टी की मुहर लगाते रहेंगे तो ये सिलसिला कहां जाकर रुकेगा. इस पर कौन सोचेगा.

लोग अपने त्यौहार बाखुशी और अपने रीतिरिवाज के मुताबिक मनाए, इस पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती लेकिन सरकारों को इस तोहफेबाजी से बचना चाहिए. ऐसे में उनकी नीयत पर सवाल तो उठेंगे ही. सभी धर्मों और मान्यताओं को सम्मान दीजिए लेकिन ऐसा कोई कॉस्मेटिक और लोकप्रियतावादी फैसला मत कीजिए जिससे तात्कालिक हित तो सध जाएं लेकिन दूरगामी तौर पर जो समाज और सामंजस्य के लिए नुकसानदेह बन जाए.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी