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धर्मनिरपेक्ष या हिंदू राष्ट्र है भारत

कुलदीप कुमार२३ नवम्बर २०१५

असम के राज्यपाल के इस बयान पर विवाद छिड़ गया है कि मुसलमान पाकिस्तान और बांग्लादेश जाने के लिए स्वतंत्र हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि भारत धर्मनिरपेक्ष या हिंदू राष्ट्र हो, इस पर वैचारिक द्वंद्व खत्म नहीं हुआ है.

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Indien Parlamentswahl 2014 Modi im Parlament 20.05.2014
तस्वीर: Reuters

1947 में भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था क्योंकि मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहती थी. विभाजन के बाद बहुत बड़ी तादाद में हिन्दू सीमा पार से भारत आए और मुसलमान पाकिस्तान गए. लेकिन इसके बावजूद मुसलमानों की अधिकांश आबादी ने भारत में रहना ही तय किया. क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व में चला राष्ट्रीय आंदोलन सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर स्वाधीन भारत के निर्माण में यकीन रखता था और उसने कभी भी सिद्धांत रूप में मुस्लिम लीग के इस दावे को नहीं माना था कि सिर्फ वही भारतीय मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि और प्रवक्ता है.

इसलिए धर्म के आधार पर देश का बंटवारा होने के बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने का फैसला लिया गया. राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व ने अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि एक ऐसा देश जिसमें अनेक धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं और क्षेत्रों के लोग रहते हों, केवल लोकतांत्रिक, संघीय और धर्मनिरपेक्ष रूप में ही अपनी एकता और अखंडता को सुरक्षित रख सकता है.

Indien Opferfest Eid al-Adha 2015 Moschee in Neu Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Mukherjee

लेकिन इस निर्णय से हिन्दू हितों की बात करने वाले सांप्रदायिक तत्व खुश नहीं थे. उनका लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करना था और उन्होंने कभी इसे छिपाया भी नहीं. यह हिन्दू राष्ट्र एक तरह से मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान का ही प्रतिबिंब था जहां बहुसंख्यक आबादी के धर्म का वर्चस्व हो और अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाये. बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा इस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे. हिन्दू महासभा का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने अनेक आनुषंगिक संगठनों के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने में सफलता प्राप्त की. उसने एक राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना की. आजादी के बाद लगभग तीन दशकों तक इन तत्वों को भारत की राजनीति में विशेष स्थान नहीं मिल पाया और भारतीय जनसंघ कमोबेश राजनीति के हाशिये पर ही रहा. लेकिन 1980 के दशक से भारतीय जनता पार्टी, जो भारतीय जनसंघ का ही नया संस्करण थी, का प्रभाव बढ़ने लगा. आज उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अनेक महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति मूलतः संघ के पूर्व प्रचारक हैं. इनमें से जो राजनीतिक रूप से अधिक सजग हैं, वे संविधान के दायरे में रहकर बात करते हैं लेकिन बहुत-से ऐसे भी हैं जिनके मन की बात होंठों तक आ ही जाती है.

Indische Muslime feiern Ramadan
तस्वीर: AP

असम के राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य भी ऐसे ही व्यक्ति हैं जो अपने बयानों के कारण विवाद में फंस गए हैं. इससे निकलने के लिए उन्होंने जो स्पष्टीकरण दिया है, उसने उन्हें उस विवाद से निकालने के बजाय और फंसा दिया है और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने उन्हें हटाये जाने की मांग भी कर डाली है. दरअसल समस्या यह है कि आचार्य धर्मनिरपेक्ष संविधान की शपथ लेकर राज्यपाल के पद पर आसीन तो हुए हैं, लेकिन उनके मन में भारत की छवि एक हिन्दू राष्ट्र की ही है. इसलिए एक पुस्तक के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कह दिया कि भारत तो हिंदुओं के लिए है और हिन्दू जहां कहीं भी प्रताड़ित हैं, उनके लिए शरण लेने की एक ही जगह है और वह है भारत.

जब उनके बयान पर विवाद मचा तो उन्होंने यह भी कह डाला कि मुसलमान जहां कहीं जाना चाहें, जाने के लिए स्वतंत्र हैं. आजादी के बाद बहुत-से मुसलमान पाकिस्तान और बांग्लादेश गए भी हैं. जाहिर है कि उनके इस स्पष्टीकरण ने आग में घी डालने का काम किया है और मुख्यमंत्री गोगोई ने कहा है कि असम की एकता की रक्षा के लिए आचार्य को हटाया जाना जरूरी है. उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि अगले साल राज्य में होने जा रहे चुनावों से ठीक पहले राज्यपाल संघ के प्रचारक की तरह काम कर रहे हैं.

Indien Organisation Rashtriya Swayamsevak Sangh
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

इस तरह के बयान देने वाले आचार्य अकेले नहीं हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने कहा था कि मोदीविरोधियों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए. चुनाव के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया गया. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार चुनाव के दौरान कहा कि यदि बिहार में उनकी पार्टी हारी तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. भले ही शाह किसी संवैधानिक पद पर न हों, लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष होने के नाते उनकी बात का बहुत महत्व है.

इस प्रसंग में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज भी भारत के स्वरूप के बारे में वैचारिक द्वंद्व खत्म नहीं हुआ है और उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखने और हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करने वालों के बीच वैचारिक संघर्ष जारी है. इस संघर्ष के शीघ्र समाप्त होने की संभावना नजर नहीं आती.

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