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धरोहर बचाने की कवायद

१० मई २०१३

अंग्रेजों के जमाने में हुगली नदी पर बना ऐतिहासिक हावड़ा ब्रिज विश्व धरोहरों में शुमार है. सालों तक उपेक्षा का शिकार रहे इस पुल को बचाने के लिए अब गंभीरता से पहल की जा रही है.

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तस्वीर: DW/P.Mani Tewari

बिना किसी पाए वाला हावड़ा ब्रिज कोलकाता को पड़ोसी शहर हावड़ा से जोड़ता है. लेकिन बीते वर्षों के दौरान पान, सुपारी और गुटके की पीक के चलते इस पुल के लोहे के गर्डरों को भारी नुकसान पहुंचा है. अब ब्रिज की देख-रेख करने वाले कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने इस धरोहर को बचाने की दिशा में ठोस पहल की है. इसके तहत ब्रिज के लोहे के खंभों को जड़ से कुछ दूर तक फाइबर ग्लास के कवर से ढंका जा रहा है.

बेमिसाल इंजीनियरिंग

वर्ष 1943 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बना हावड़ा ब्रिज इंजीनियरिंग का बेमिसाल नमूना तो है ही, यह कोलकाता की पहचान भी बन गया है. इसके निर्माण में लगभग 26 हजार पांच सौ टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है. 1937 से 1943 के बीच बने इस ब्रिज में कुल 78 हैंगर हैं जिनके सहारे यह हवा में लटका रहता है. तैयार होने बाद पहले इसका नाम न्यू हावड़ा ब्रिज रखा गया. बाद में 14 जून, 1965 को कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर इसका नाम रवींद्र सेतू कर दिया गया. लेकिन आम बोलचाल में इसे हावड़ा ब्रिज ही कहा जाता है. इस ब्रिज के निर्माण पर 333 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.

Indien Howrah Bridge
तस्वीर: DW/P.Mani Tewari

ब्रिज पर संकट

अब हाल के कुछ वर्षों से इस पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इसकी वजह है पान, तंबाकू मिले गुटके और सुपारी की पीक. पुल पर जगह-जगह इतनी पीक जमा हो गई है कि ब्रिज के खंभों पर जंग लगने लगा है. विशेषज्ञों का कहना है कि गुटके की पीक लोहे पर पड़ने से एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है जिसके असर से लोहे में जंग लगने लगती है. इसकी वजह से सत्तर साल पुराने इस ब्रिज के ढहने का खतरा पैदा हो गया था. यादवपुर विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर देवाशीष राय कहते हैं, "चूना, कत्था, तंबाकू और सुपारी के मिश्रण से बने गुटके की पीक में किसी भी धातु को गलाने की क्षमता है."

अब इसकी देख-रेख करने वाले कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने इस ऐतिहासिक धरोहार को बचाने की दिशा में ठोस पहल की है. इस पीक के अलावा पक्षियों की बीट से भी ब्रिज को भारी नुकसान पहुंचा है. हाल में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि पीक और बीट के चलते इस ब्रिज पर पड़ने वाले वजन को बराबर बांटने वालों गर्डरों की मोटाई पहले के मुकाबले घट कर आधी रह गई है.

Indien Howrah Bridge
तस्वीर: DW/P.Mani Tewari

बचाने की कवायद

इस नुकसान की भरपाई के लिए तकनीकी विशेषज्ञों ने अब एक नई राह तलाश ली है. उसके तहत इस ब्रिज के गर्डरों को फाइबर ग्लास के कवर से ढंका जा रहा है. इस ब्रिज से रोजाना एक लाख से ज्यादा वाहन और पांच लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते हैं. कोई सात दशकों से यह ब्रिज वाहनों और आम लोगों का बोझ भले सह रहा हो, अब थूक और पीक के बोझ तले यह चरमरा रहा है. कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के इंजीनियरों ने इस खतरे को भांपते हुए अब ब्रिज के खंभों को फाइबर ग्लास से ढंकने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है. इस पर कोई 15 लाख रुपए खर्च होंगे. पोर्ट ट्रस्ट के चीफ इंजीनियर ए.के.मेहरा कहते हैं, "पान और गुटके की पीक का इस ब्रिज पर असर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है. इनमें मौजूद चूना और पैराफिन इंसान की थूक के साथ मिल कर ऐसा मिश्रण बनाते हैं जो लोहे और स्टील के लिए खतरनाक है."

Indien Howrah Bridge
तस्वीर: DW/P.Mani Tewari

मेहरा कहते हैं, "फाइबर ग्लास को धोया जा सकता है और उस पर तंबाकू और पान की पीक का कोई असर नहीं होता." मेहरा के मुताबिक इस कवर पर विज्ञापन के लिए विभिन्न एजेंसियों से बातचीत चल रही है. तब वह एजेंसियां ही इस कवर के रखरखाव का जिम्मा उठाएंगी.

वर्ष 2007 में ब्रिज के हैंगरों में जंग लगने के बाद पोर्ट ट्रस्ट ने उनके कवर को बदल दिया था. 2012-13 के दौरान इस ब्रिज के रखरखाव पर 2.57 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. अब इस ताजा कवायद से पूर्वी महानगरी के प्रतीक हावड़ा ब्रिज के दीर्घायु होने की संभावना बढ़ गई है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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