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देह व्यापार पीड़ित ने नोट बदलने के लिये की पीएम से गुजारिश

४ मई २०१७

भारत सरकार की नोटबंदी मुहिम के दौरान 500 और 1000 के नोट नहीं बदल सकी अरुणा ने प्रधानमंत्री मोदी से मदद की गुहार लगाई है. अरुणा को तस्करी कर भारत लाया गया था और यहां उसे एक वेश्यालय को बेच दिया गया था.

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Indien Geldverleiher in Ahmedabad
तस्वीर: REUTERS/File Photo/A. Dave

बांग्लादेश की अरुणा देह कारोबार में फंसी थी और पिछले डेढ़ साल से वह चोरी-छुपे पैसे बचा रही थी. ग्राहकों से मिलने वाली बख्शीश को अरूणा इसी उम्मीद के साथ संभाल कर रखती कि जिस दिन उसे अपने घर जाने का मौका मिलेगा वह खाली हाथ नहीं होगी. अरुणा को जब वेश्यालय से बचाया गया तो अरुणा के पास 10 हजार रुपये थे. लेकिन अब अरुणा के वे पैसे किसी काम के नहीं हैं क्योंकि अब 1000 या 500 रुपये के पुराने नोट बंद हो चुके हैं.

देश में काले धन से निपटने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोट बंदी का कदम उठाया था. इसलिये अब अरुणा ने प्रधानमंत्री मोदी से ही मदद की गुहार लगायी है. जिस संस्थान ने अरुणा को वेश्यालय से बाहर निकाला था, उन्हीं की मदद से अरुणा ने ट्विटर पर मोदी से अपनी शिकायत दर्ज करायी है. मोदी को ट्विटर के माध्यम से भेजे अपने पत्र में अरुणा ने बताया कि कैसे वह वेश्यालय में चुपके से अपने पैसे बचा रही थी ताकि एक दिन वह उसे घर ले जा सके. उसने लिखा, "ये पैसा मैंने बहुत तकलीफ सह कर बचाये हैं इसलिये इन्हें बदलने में मेरी मदद कीजिये".

नोट बंदी का मकसद काले धन पर लगाम कसना था लेकिन नोटबंदी ने अरुणा जैसे लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. बांग्लादेश में अरुणा एक कपड़ा फैक्टरी में काम करती थी जिसे अच्छी नौकरी का झांसा देकर भारत लाया गया था. लेकिन सीमा पार करते ही उसे एक वेश्यालय को बेच दिया गया. पहले उससे बेंगलूरु के एक वेश्यालय में डेढ़ साल काम करवाया गया और फिर पुणे के एक वेश्यालय को बेच दिया गया और यहीं से उसे बचाया गया है. इस साल मार्च में अरुणा को घर वापस जाने का परमिट भी मिल गया.

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तस्वीर: AP

अरुणा तस्करी से बचाई गई उन 19 महिलाओं में से एक है, जिसे 15 मई को पुणे से भेजा जायेगा. लेकिन अगर अरुणा के नोट नहीं बदल पाये तो उसे खाली हाथ जाना पड़ेगा. पुणे के रेसक्यू फाउंडेशन से जुड़ी तनुजा पवार कहती हैं कि जब अरुणा को बचाया गया तब उसने बताया कि वेश्यालय के एक संदूक में उसके पैसे रखे हुए हैं. बाद में जब पुलिस ने उस संदूक से पैसे निकाले तो पाया कि अब वह किसी काम के नहीं है.

हालांकि अब तक अरुणा की चिट्ठी पर प्रधानमंत्री की ओर से कोई उत्तर नहीं दिया गया है. फाउंडेशन ने बताया इसके बावजूद अब लोग अरुणा की मदद करने सामने आये हैं और घर ले जाने के लिये उसे पैसे भी दे रहे हैं.

एए/आरपी (रॉयटर्स)