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शरण मांगने वालों में भारत के लोग ज्यादा

१८ जुलाई २०१७

देश से बाहर रहने वाले भारतीयों की तादाद बढ़ती जा रही है और ओईसीडी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि इस मामले में भारत शीर्ष देशों में है. दुनिया भर में भारत के लोग मिल जाते हैं, लेकिन इससे भारत की एक नकारात्मक छवि भी बनती है.

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Bildergalerie Oktoberfest in München 2013
तस्वीर: DW/I. Moog

दूसरे देशों की नागरिकता लेने वालों में भारत के लोगों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है. अमेरिका और यूरोप के बड़े देश ही नहीं, बल्कि न्यूजीलैंड और लातविया जैसे दूर दराज के छोटे देशों में भी भारतीय समुदाय अपना घर जमा रहा है. ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट के सदस्य देशों की इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2017 के मुताबिक न्यूजीलैंड में 2012 से 2016 के बीच जिन लोगों ने शरण के लिए आवेदन दिया, उनमें चीन, भारत, फिजी और इराक के लोग सबसे ज्यादा थे.

न्यूजीलैंड के बारे में लिखा गया है कि वहां शरण मांगने वालों की कुल संख्या के 11 फीसदी लोग चीन जबकि 9 फीसदी लोग भारत से थे. इसके बाद फिजी, इराक और पाकिस्तान का नंबर आता है.

Fachkräfte aus Indien
तस्वीर: Fotolia

साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, जापान, लातविया, स्लोवाक रिपब्लिक, ब्रिटेन और अमेरिका में शरण मांगने वाले लोगों में सबसे ज्यादा भारतीय हैं. लातविया यूरोप का एक छोटा सा देश है जहां की कुल आबादी महज 20 लाख है. यहां 2015-16 में 6 हजार से ज्यादा विदेशी छात्रों ने खुद को रजिस्टर कराया है. इनमें सबसे ज्यादा भारत और उज्बेकिस्तान के छात्र हैं.

जानकारों के मुताबिक दूसरे देश में शरण मांगने वाले भारतीयों में या तो छात्र हैं जो वीजा खत्म होने पर भी विदेश में रहना चाहते हैं या फिर वे लोग जो अवैध तरीके से देश की सीमा पार करते पकड़े जाते हैं. ओईसीडी के अंतरराष्ट्रीय प्रवासन विभाग के नीति विश्लेषक जोनाथन शालोफ कहते हैं, "लातविया में शरण के लिए 20 आवेदन आये और 20 भारतीयों को सीमा पार करते पकड़ा गया. मुमकिन है कि वे वही लोग हों."

Fachkräfte aus Indien
तस्वीर: Fotolia

बीते कई सालों से भारत के लोग 40 देशों में जाते रहे हैं. हाल के वर्षों में शरण मांगने वालों ने सबसे ज्यादा यूरोप को चुना है. हालांकि सीरिया और इराक के शरणार्थी संकट ने बीते कुछ सालों में तस्वीर बदल दी है. हालांकि छात्रों को पढ़ाई के नाम पर विदेश जाना और वीजा खत्म हो जाने के बाद भी वहीं रुक जाने की अनुमति मांगने की प्रवृत्ति में बहुत तेजी आयी है. इसके अलावा कम कुशल कामगार भी बेहतर मेहनताना पाने के लिए भारत से बाहर का रुख करते हैं. उन लोगों की तादाद भी कम नहीं हैं जो अवैध तरीके से दूसरे देशों का रुख करते हैं और फिर वहीं शरण लेने की कोशिश करते हैं.

भारत में राजनीतिक स्थिरता, लोकतंत्र और आर्थिक तरक्की के बावजूद इस तरह की प्रवृत्ति का बढ़ना बहुत से लोगों को हैरान करता है. हालांकि जानकार इसके पीछे रोजगार रहित विकास और संसाधनों के असंतुलित बंटवारे को जिम्मेदार मानते हैं. आर्थिक विकास के कई मानकों पर बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद भारत में गरीबी और सुविधाओं से वंचित लोगों की संख्या काफी बड़ी है. रोजगार के पर्याप्त मौके ना होने की वजह से लोग पलायन करने पर विवश हैं.

चीन और भारत से पहुंचे प्रवासियों की तादाद पिछले 10 सालों में काफी ज्यादा बढ़ी है. सबसे ज्यादा प्रवासियों वाले देशों की कतार में ये दोनों देश तीसरे और चौथे नंबर पर हैं. 2000-01 की तुलना में इन देशों के प्रवासियों में 75 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि इसके साथ ये भी सच है कि जी 20 देशों में काम करने पहुंचे ऊंची शिक्षा वाले प्रवासियों में हर पांचवां भारत, चीन या फिलीपींस का है. जी20 देशों में काम करने आये दक्ष कामगारों में सबसे बड़ा समुदाय भारतीय लोगों का ही है. बीते 10 सालों में यह तकरीबन दोगुना हो गया है. इसके बाद चीन और फिर फिलीपींस का नंबर आता है.

निखिल रंजन