दूध से रेशम जैसे मुलायम कपड़े
३० सितम्बर २०१६हैंगर पर दूध लटका है. सच कहें तो दूध का प्रोटीन, नीले, काले और भूरे रंग में. नया टेक्सटाइल रेशम की तरह मुलायम है. इसे डिजायन किया है डिजायनर और माइक्रोबायोलॉजिस्ट आंके डोमास्के ने. इसे सूंघ कर नहीं बताया जा सकता कि यह दूध से बना है. मजे की बात यह है कि पता चलते ही बहुत से लोग सबसे पहले इसे सूंघते हैं. लेकिन फिर भी पता नहीं चलता. ये बहुत ही मुलायम है. असल में दूध से बना फाइबर, प्रोटीन फाइबर जैसा है, ऊन के जैसा, सिल्क के जैसा. इसकी सतह अत्यंत चिकनी है इसीलिये ये सिल्क जैसी महसूस होती है.
आंके डोमास्के दूध बर्बाद नहीं करतीं, वे काम के लायक नहीं रहे दूध से फाइबर बनाती हैं. वह दूध जो मानव इस्तेमाल के लायक नहीं रह गया है. ये ऐसा आयडिया है जो टेक्सटाइल उद्योग को बदल कर रख देगा. इसकी शुरुआत हुई थी, किचन में. यूनिवर्सिटी से माइक्रोबायोलॉजिस्ट बनकर निकली डोमास्के ने सुपर बाजार में एक मिक्सर, एक बड़ा जैम थर्मामीटर और बहुत सारा प्रोटीन पावडर खरीदा. वे ऐसा फाइबर बनाना चाहती थीं जिससे कपड़ा बन सके. प्रयोग के बारे में आंके डोमास्के कहती हैं, "किचन में हमने पौने साल तक परीक्षण किया, जब तक कि हमें वह नुस्खा नहीं मिल गया जो पानी में फौरन घुलता नहीं था. और यही तो महत्वपूर्ण बात कि यदि आपके पास टेक्सटाइल फाइबर है तो और उसे धो भी सकें."
एक डब्बा दूध लेकर डोमास्के बताती हैं कि फाइबर कैसे बनता है, "शुरुआती चीज दूध है और वह जब खट्टा हो जाता है तो उसमें ये सफेद टुकड़े तैरने लगते हैं. ये दूध का प्रोटीन है. इसे छानने पर पनीर मिलता है जिसे सुखाकर पावडर बनाया जा सकता है. यही हमारा कच्चा माल है. इसे दूसरी चीजों के साथ मिलकार हम गूंथ लेते हैं. उसे एक स्प्रे पंप में डाला जाता है जिसे दबाने पर खूबसूरत पतले धागे बनते हैं. इसे और परिष्कृत कर कपड़ा बुनने वाला तार बनाया जाता है. उससे ही आखिरकार ये खूबसूरत पोशाक बनाई गई है. और ये इतनी प्राकृतिक है कि इसे खाया भी जा सकता है."
डोमास्के अब बड़े पैमाने पर दूध के प्रोटीन से फाइबर बना रही हैं. इसे पानी और दूसरे प्राकृतिक तत्वों के साथ मिलाने से फाइबर बनाने का मैटीरियल तैयार होता है. इसे जब पिचकारी में डालकर दबाया जाता है तो इंसानी बाल से भी पतले धागे मिकलते हैं. लैब में नियमित रूप से इन धागों की ताकत और स्थिरता परखी जाती है. इन फाइबरों की सबसे अच्छी तुलना सिल्क और उन से हो सकती है क्योंकि वे भी प्रोटीन फाइबर ही हैं. दूध के प्रोटीन से बने फाइबर के बहुत से फायदे हैं. इनसे बने कपड़े वे लोग भी पहन सकते हैं जिन्हें एलर्जी की शिकायत है. इनमें रसायनिक तत्व नहीं हैं और खराब हो जाने पर कपड़ों को कंपोस्ट किया जा सकता है.
आंके अपने फाइबर के कई और फायदे भी गिनाती हैं, "हमारा फाइबर सांस लेने योग्य है, तापमान को रेगुलेट करता है, एंटी बैक्टीरियल और मुश्किल से जलने वाला है. इसीलिए वह न सिर्फ कपड़ा उद्योग के लिए दिलचस्प है बल्कि तकनीकी क्षेत्र के लिए भी. मसलन इससे फेन बनाया जा सकता है, तेज धार फेंकी जा सकती है, इससे प्लास्टिक बनाया जा सकता है, नैनो मैटीरियल भी बनाया जा सकता है. यहां बहुत बड़ी संभावना है जिसकी अभी हम खोज करने में लगे हैं.
दूध से बने फाइबर की सफलता तब सामने आई जब कुछ हॉलीवुड स्टार्स ने इससे बने कपड़े पहने और उन्हें पसंद किया. डोमास्के का आयडिया था कि सितारों को कुछ ड्रेस भेजी जाए, जो उनके हिसाब से बनी हो, "मीशा बार्टन पहली थीं जिन्होंने इसे पहना और उसी दिन जिस दिन उन्हें ये ड्रेस मिली. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार मिला और ये हमारे लिए सचमुच बहुच बड़ी बात थी." यदि ये आयडिया चल निकला तो दूध गारमेंट्स उद्योग के लिए कच्चा माल बन जाएगा. इससे पशुपालकों को भी फायदा होगा और पर्यावरण को भी.
(क्यों सफेद सोना कहा जाता है ऊंटनी का दूध)
मार्टिन रीबे/एमजे