1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दार्जिलिंग चाय और पर्यटन पर आंदोलन की मार

२३ दिसम्बर २००९

गोरखालैंड प्रांत की मांग कर रहे आंदोलन के चलते पहाड़ियों की रानी दार्जिलिंग में पर्यटन और चाय उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

https://p.dw.com/p/LB6i
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

पश्चिम बंगाल के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन केंद्र दार्जिलिंग में क्रिसमस और नए साल के मौके पर देशी-विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती थी. लेकिन अलग गोरखालैंड की मांग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का आंदोलन तेज होने की वजह से इस साल यहां वीरानी छाई है. यही वजह है कि यहां ट्वाय ट्रेन को यात्री तक नहीं मिल रहे हैं. इस आंदोलन से दुनिया भर में मशहूर दार्जिलिंग चाय भी अछूती नहीं है. इस चाय के उत्पादन में अबकी कम से कम 20 प्रतिशत गिरावट का अंदेशा है.

दार्जिलिंग को पहाड़ियों की रानी यूं ही नहीं कहा जाता. प्रकृति ने यहां खुले हाथों से अपना खजाना लुटाया है. इलाके की अर्थव्यवस्था अंग्रेजी के टी अक्षर से बने तीन शब्दों-टिम्बर, टी और टूरिज्म पर निर्भर है. पेड़ों की कटाई के चलते टिम्बर यानी लकड़ी तो ज्यादा बची नहीं है. अब अलग राज्य की मांग में नए सिरे से होने वाले आंदोलन और बंद ने टी और टूरिज्म पर भी ग्रहण लगा दिया है. शहर के ज्यादातर होटल खाली हैं.

Transfair Flash-Galerie
तस्वीर: Transfair

ईस्टर्न हिमालयन टूर आपरेटर्स एसोसिएशन के सचिन सम्राट सांन्याल कहते हैं कि क्रिसमस का समय होने की वजह से इस सीजन में काफी पर्यटक यहां आते थे. लेकिन आंदोलन और बंद की वजह से इस साल डर के मारे लोग शायद इन पहाड़ियों का रुख नहीं करेंगे.

इस आंदोलन ने दार्जिलिंग चाय की हरियाली भी छीन ली है. चाय बागानों में उत्पादन भी घट रहा है. इलाके के 56 चाय बागानों में हर साल नब्बे लाख किलो चाय पैदा होती है. इसका ज्यादातर हिस्सा निर्यात होता है. देश के कुल चाय निर्यात में दार्जिलिंग का हिस्सा लगभग सात प्रतिशत है. टी बोर्ड की अधिकारी रोशनी सेन कहती हैं कि निर्यात तो प्रभावित हुआ ही है, विश्व बाजार में दार्जिलिंग चाय की साख को भी धक्का लगा है.

लेकिन आंदोलनकारियों को इन सब बातों की चिंता नहीं है. वे तो फिलहाल खुली आंखों से अलग राज्य का सपना देखने में जुटे हैं.

रिपोर्ट: प्रभाकर, दार्जिलिंग

संपादन: महेश झा