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समाज

दहेज के दानव से लड़ते झारखंड के मुसलमान

एम. अंसारी
१८ अगस्त २०१७

मुस्लिम समाज में शादी पर लड़के को दहेज देने का रिवाज नहीं है, लेकिन इस बीच भारत के कुछ इलाकों में वह आम हो गया है. लेकिन इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ने की मिसालें भी सामने आ रही हैं.

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Symbolbild Indien Mitgift Massenhochzeit
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

झारखंड के लातेहार जिले के पोखरी कला गांव के मोहम्मद जाकिर हुसैन की बेटी की शादी हुई तो उन्होंने जरूरत के सामान के साथ-साथ 50 हजार रुपये बतौर दहेज दिए. जाकिर हुसैन कहते हैं कि गांव में दहेज का लेनदेन आम था, इसीलिए उन्होंने भी नकद रुपये देना सही समझा. इसी तरह से झारखंड के पलामू जिले के न्योरा गांव के शफीक अंसारी ने बेटी को दहेज देने के लिए अपनी जमीन गिरवी रख दी. जमीन के बदले शफीक को करीब डेढ़ लाख रुपये मिले.

लेकिन दोनों ही अपने इस कदम को गलत मानते हैं. उनका कहना है कि दहेज समाज को खोखला कर रहा है, ऐसी कुरीति के चलते लोग कर्ज और साहूकारों के चक्कर में पड़ जाते हैं. दोनों के दिल में इस बदलाव का कारण है दहेज रोको अभियान.

झारखंड में इन दिनों शादी में दहेज और नकद लेनदेन के खिलाफ अनोखा अभियान चल रहा है. अभियान का नाम है दहेज रोको अभियान, लातेहार जिले से 2016 में शुरु हुआ यह अभियान अब पूरे झारखंड में फैल चुका है. मोहम्मद जाकिर हुसैन और शफीक अंसारी जैसे 800 परिवारों को दहेज की रकम वापस तो मिली साथ ही उन्हें सम्मान भी मिला.

जाकिर हुसैन बताते हैं, "जब दहेज के खिलाफ मुहिम चली तो मेरे समधि ने मुझे पचास हजार रुपये लौटा दिये. मुझे लगता है कि उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि दहेज लेना गलत है और उसके बाद उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दहेज लौटाने का फैसला किया.”

60 साल के हाजी मुमताज अली ने मुस्लिम समाज में दहेज की मांग के खिलाफ इस अभियान की शुरुआत की. दरअसल हाजी मुमताज को इस अभियान का विचार तब आया जब लोग अक्सर उनके पास दहेज के लिए मदद मांगने आते. हाजी मुमताज के मुताबिक, "सबसे पहले तो मैंने अपने आसपास के लोगों को इकट्ठा कर इस सामाजिक बुराई के बारे में बताया और कहा कि दहेज के रूप में नकद की मांग के खिलाफ हमें कोई कदम उठाना चाहिए, वहां जमा सभी लोगों ने इसका समर्थन किया. इसके बाद हमने एक महासम्मेलन कर दहेज मांगने वालों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का एलान किया. दहेज मांगने वालों के खिलाफ सख्ती के लिए हमने फैसला किया कि जो लड़के वाले दहेज मांगते हैं उनकी बारात में गांव के लोग शामिल नहीं होंगे, जिस गांव में बारात जाएगी वहां का काजी निकाह नहीं पढ़ाएगा. इस अभियान का नतीजा यह रहा कि 2016 में ही दहेज रोको अभियान की मदद से 6 करोड़ रुपये लड़की वालों को लौटाये गये.”

दहेज के चक्कर में कर्ज में पड़ते हैं लोग

इस आंदोलन की वजह से 2017 में 90 फीसदी शादियां बिना दहेज या फिर नकद लेनदेन के हुई. एक गांव से शुरू हुआ यह अभियान झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों में भी फैल रहा है. यही नहीं दूसरे धर्म से जुड़े समाज में भी इस तरह के कदम उठाने की मांग हो रही है. दिलचस्प बात ये है कि दहेज वापस करने वाला परिवार खुद बखुद इस आंदोलन का हिस्सा बन जाता है और वह दूसरे परिवारों को भी बिना दहेज शादी के लिए राजी करता है.

Indien Mitgift und Islam
हाजी मुमताज अली दहेज विरोधी आंदोलन के संस्थापक हैंतस्वीर: DW/A.M. Ansari

हाजी मुमताज के मुताबिक, "अब लोग दहेज और नकद की मांग करने से डरते हैं और सोचते हैं कि गांव के लोगों को पता चल जाएगा कि हमने दहेज की मांग की है तो हमारी बेइज्जती तो होगी ही, साथ ही हमारा सामाजिक बहिष्कार भी हो जाएगा. इस अभियान का एक खास पहलू यह भी है कि अब लोगों की दहेज देने और लेने के बारे में सोच बदली है. इसी सकारात्मक सोच की बदौलत हम कैंसर के रूप में फैले दहेज को समाज से बाहर कर सकेंगे.”

सामाजिक ही नहीं धार्मिक दबाव भी

पलामू जिले में दहेज के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाने वाले फैजल अहमद कहते हैं, "हमारी कोशिश होती है कि शादी से पहले यह सुनिश्चित करें कि दूल्हा गांव की मस्जिद में जाकर इस बात की घोषणा करे कि उसने शादी में दहेज नहीं लिया है. अगर उसने दहेज या फिर नकद लिया होता है तो मस्जिद की सीढ़ी भी चढ़ने से कतराता है.”

वैसे तो इस्लाम में दहेज की कोई अवधारणा नहीं है. इस्लाम में मेहर देने के बारे में कहा गया है, वह भी अपनी खुशी और मर्जी के साथ. इस्लाम के जानकारों का कहना है कि कुरान में भी कहीं भी दहेज का जिक्र नहीं है. बल्कि इस्लाम में लड़कियों को संपत्ति में हक देने का हुक्म है. इस्लाम के जानकारों का कहना है कि दहेज लेना और देना शरियत के खिलाफ तो है ही साथ ही यह एक कुप्रथा भी है जिसे जल्द खत्म होने की जरूरत है.

सख्त है दहेज कानून

अगर कानूनी रूप से देखें तो दहेज एक्ट के मुताबिक दहेज लेने, देने या इसके लेनदेन में मदद करने पर 5 साल से अधिक की कैद और जुर्माने की सजा है. दहेज के लिए उत्पीड़न पर भी कड़ी सजा का प्रावधान है. लेकिन इन सबके बावजूद भारत में दहेज का लेन देन और दहेज के कारण होने वाली हत्या कम नहीं हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक देश में 2007 से 2011 के बीच दहेज संबंधी अपराध बढ़े हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार दहेज की वजह से हर साल करीब 8000 मौत होती है, हर दिन करीब 21 मौत. इनमें हत्यायें और दबाव में हुई आत्महत्या शामिल है. करीब 65 प्रतिशत मामलों में दोषी को सजा नहीं मिलती. विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती जांच में खामियों के चलते न्याय की प्रक्रिया धीमी होती है.