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दक्षिण एशिया में बर्दाश्त नहीं होगी गर्मी

३ अगस्त २०१७

इस सदी के अंत तक दक्षिण एशिया में गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि जीना मुश्किल हो जाएगा. उमस भरी गर्मी से बचने के लिए कोई न कोई इंतजाम करना होगा वरना, हालात जीने लायक नहीं होंगे.

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Pakistan Hitzewelle
तस्वीर: Reuters/A. Soomro

विज्ञान की पत्रिका साइंस एडवांसेस में छपी रिपोर्ट में साफ चेतावनी देते हुआ कहा गया है कि, साल 2100 तक दक्षिण एशिया में "गर्मी और उमस से भरी हवाओं का स्तर इतना बढ़ जाएगा कि कि इंसान बिना सुरक्षा के बच नहीं पाएगा." दक्षिण एशिया में दुनिया की 20 फीसदी अबादी रहती है. शोध अमेरिका के प्रतिष्ठित मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया है.

रिसर्च के लिए दो क्लाइमेट मॉडलों का सहारा लिया गया. पहला मॉडल अभी जैसी स्थिति जारी रहने पर फोकस करता है. दूसरा 2015 के पेरिस समझौते के मुताबिक तापमान वृद्धि को दो डिग्री से ऊपर न जाने देने के नतीजों का विश्लेषण करता है. यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों "वेट बल्ब टेम्प्रेचर्स" पर ध्यान दिया है. तापमान, नमी और इंसानी शरीर के खुद को ठंडा करने की क्षमता को मिलाकर वेट बल्ब टेम्प्रेचर बनाया जाता है.

इंसान 35 डिग्री तक के तापमान को बर्दाश्त कर लेता है. इसे सरवाइवल थ्रेसहोल्ड कहा जाता है, यानि अस्तित्व के लिए जरूरी सीमा. रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा स्थिति जारी रही तो "ऐसा लग रहा है कि वेट बल्ब टेम्प्रेचर्स दक्षिण एशिया के ज्यादातर इलाकों में सरवाइवल थ्रेसहोल्ड की तरफ बढ़ रहा है, कुछ इलाकों में इस सदी के अंत तक यह आगे निकल जाएगे."

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की 30 फीसदी आबादी खतरनाक तापमान का सामना करेगी. किसानों पर इसका बेहद बुरा असर पड़ेगा क्योंकि खेतों में एयर कंडीशनर लगाकर काम नहीं किया जा सकता.

रिपोर्ट कहती है, "कुछ दशकों के भीतर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जानलेवा गर्म हवाएं चलने लगेंगी, इनका असर उपजाऊ सिंधु और गंगा के उस मैदान पर भी पड़ेगा जो इलाके का सबसे बड़ा अन्न भंडार है." 2015 में भारत और पाकिस्तान में ऐसी ही गर्म हवाएं चली थीं, जिन्होंने करीब 3,500 लोगों की जान ली.

लेकिन अगर पेरिस समझौते पर अमल जारी रहा तो वेट बल्ब टेम्प्रेचर्स 31 डिग्री से थोड़ा ज्यादा ऊपर जाएगा लेकिन यह प्राणघातक वाली स्थिति तक नहीं पहुंचेगा. शोध की अगुवाई करने वाले मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के पर्यावरण विशेषज्ञ  प्रोफेसर अलफातिह अलताहिरहे कहते हैं, "यह ऐसा नहीं है, जिसे टाला न जा सके."

(कैसी है हमारी धरती की तबीयत)

ओएसजे/एनआर (एएफपी)