1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

थप्पड़ मारने वाले शिवराज पर कौन कार्रवाई करेगा?

ओंकार सिंह जनौटी
१६ जनवरी २०१८

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना काम कर रहे सुरक्षाकर्मी को थप्पड़ जड़ दिए. ताकत के अंहकार में डूबे ऐसे नेताओं पर सख्त कार्रवाई जरूरी है.

https://p.dw.com/p/2quhU
10. Welt Hindi-Konferenz in Bhopal Shivraj Singh Chauhan
तस्वीर: UNI

कानूनी रूप से देखा जाए तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पर पहला मामला सरकारी काम में बाधा डालने का बनता है. गहराई में जाएं तो एक दो मामले और बन जाएंगे लेकिन नतीजा क्या होगा. शायद कुछ नहीं. जब मुख्यमंत्री ही कानून और व्यवस्था के मुंह पर झापड़ मारे तो बाकियों का क्या. वो भी जहां ताकत होगी वहां उसका दुरुपयोग करेंगे.

धार जिले के सरदारपुर में शिवराज सिंह चौहान के रोड शो के दौरान सुरक्षाकर्मी सिर्फ अपना काम कर रहा था. चौहान लोगों के बीच में थे और सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी का पालन करते हुए उनकी हिफाजत करने की कोशिश कर रहा था. लेकिन चौहान भड़क गए. उन्होंने सुरक्षाकर्मी को थप्पड़ भी मारा और धकेलते हुए दूसरी तरफ फेंक सा दिया.

मामला सिर्फ शिवराज के थप्पड़ मारने का नहीं हैं. लोकतंत्र में विधायिका की अपनी जगह है और कार्यपालिका की अपनी जगह. अपनी ड्यूटी निभाने पर अगर किसी को गैरकानूनी रूप से शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़े तो पूरे समाज के लिए अपमान की बात है. शिवराज को अपने ऊपर शर्म आनी चाहिए. जिस हिंदुत्व की बात वह और उनकी पार्टी करती है, उसकी कहानियों में राजा वचन निभाने के लिए अपने राजकुमारों को वनवास में भेज देता है. राजकुमार भी शबरी के जूठे बेर खा लेते हैं.

लेकिन शायद सत्ता का अंहकार इन सब बातों को किनारे कर देता है. इस मामले में ये उम्मीद करना कि सुरक्षाकर्मी कुछ बोलेगा, बेईमानी है. शिवराज जैसे नेता चाहें तो उसे निलंबित, बर्खास्त और पता नहीं क्या क्या करा सकते हैं. क्या यही सुशासन है?

असल में यह समस्या शिवराज सिंह चौहान से ही शुरू और उन्हीं पर खत्म नहीं होती. भारत के ज्यादातर राज्यों में नेताओं का सरकारी कर्मचारियों व आम लोगों को हड़काना, धमकाना आम हो चला है. छात्र नेता तक बाजू चढ़ाते हुए तुम्हें देख लूंगा कहते नजर आते हैं. यह अच्छी बात नहीं है. शिकायतों और सुधार के लिए प्रक्रियाएं बनी हुई हैं. उनका सहारा लिया जाना चाहिए. वरना ताकत दिखाकर गुंडे भी डराते ही हैं, ऐसे में नेताओं और गुंडों में अंतर कैसे किया जाए?