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सऊदी अरब ने किया रूस से गठजोड़

२० अप्रैल २०१८

सऊदी अरब को उम्मीद है कि रूस दुनिया के तेल उत्पादक देशों के क्लब में शामिल होगा ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार को स्थिर बनाया जा सके. लेकिन इसके कारण तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक की भूमिका सवालों में हैं.

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Russland - Kronprinz Mohammed bin Salman und Vladimir Putin
तस्वीर: picture-alliance /ZUMAPRESS/P. Golovkin

माना जा रहा है कि सऊदी अरब और रूस के नेतृत्व में होने वाला नया गठजोड़ 14 सदस्यों वाले ओपेक से कहीं बड़ा होगा. बीते छह दशकों से दुनिया के तेल बाजार में ओपेक का ही दबदबा है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तेल उत्पादक देशों के क्लब में रूस के शामिल होने से अगर ओपेक पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ तो उसका असर कम जरूर हो जाएगा.

जनवरी में ओपेक के अहम देश सऊदी अरब ने प्रस्ताव रखा कि 2016 में ओपेक और गैर ओपेक तेल उत्पादक 24 देशों के बीच उत्पादन को घटाने और कीमतें बढ़ाने के लिए जो सहयोग समझौता हुआ था, उसमें विस्तार किया जाए. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और सऊदी ऊर्जा मंत्री खालेद अल फालेह समेत आला सऊदी अधिकारियों ने कहा कि तेल उत्पादक देशों के बीच एक दीर्घकालीन सहयोग समझौता होना चाहिए. इस प्रस्ताव को संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत जैसे कई ओपेक सदस्य देशों का समर्थन मिला.

रूसी सरकार के प्रवक्ता ने पिछले महीने कहा कि रूस और सऊदी अरब वैश्विक तेल बाजार में सहयोग को लेकर "व्यापक विकल्पों" पर बात कर रहे हैं. तेल उत्पादक देश अपने व्यापक होते सहयोग की शुरुआती सफलता से उत्साहित हैं. तेल के जो दाम 26 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए, वे अब 70 डॉलर से ऊपर हो गए हैं.

बुरे दौर से निकलें

ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिंदो ने इस सहयोग समझौते को बड़ी कामयाबी बताया और कहा कि इससे "तेल के इतिहास के सबसे बुरे दौर" से निकलने में मदद मिली. कुवैती तेल विशेषज्ञ कामेल अल हरमी कहते हैं कि "अकेले ओपेक देशों के साथ यह कामयाबी हासिल करना मुश्किल होता." उन्होंने कहा कि नया समझौता दरअसल सऊदी-रूस गठबंधन जैसा दिखाई देता है.

समझौते के तहत प्रति दिन तेल के उत्पादन में 18 लाख बैरल की कमी की गई है, जिससे बाजार में अतिरिक्त 30 करोड़ बैरल तेल को हटाया गया है और बाजार में कच्चे तेल का भंडार सिर्फ 5 करोड़ बैरल है. गैर ओपेक देश ओमान के तेल मंत्री मोहम्मद अल-रुहमी ने कुवैत में हुए एक सम्मेलन में कहा कि उत्पादन में कटौती करने से ही यह कामयाबी मिल पाई है. लेकिन उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि "खेल अभी खत्म नहीं हुआ है." वह बाजार में ऐसी ही परिस्थितियां बनाए रखने के लिए तेल उत्पादक देशों के बीच सहयोग जारी रखने को कहते हैं.

ज्यौं फ्रांसुआ सेजने अमेरिका की हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में तेल के विशेषज्ञ हैं. वह कहते हैं, "सऊदी अरब और रूस दुनिया में पारंपरिक तेल के दो सबसे बड़े उत्पादक हैं. या तो वे साथ रह कर तेल की कीमतों को स्थिर बना सकते हैं या फिर आपस में लड़ते रहें और तेल उत्पादन बढ़ाते रहें जिससे बाजार को खत्म कर दें और खुद भी खत्म हो जाएं." उनके मुताबिक असली मूल मंत्र यही है कि तेल के दामों को स्थिर रखा जाए.

कामयाबी का मंत्र

2014 में तेल के दाम धड़ाम से नीचे आ गिरे क्योंकि तेल उत्पादक देशों और खासकर सऊदी अरब ने उत्पादन में कटौती से इनकार कर दिया, ताकि अमेरिका के शेल ऑइल के मुकाबले बाजार में उसकी हिस्सेदारी कम न हो. इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार में बहुत अधिक तेल का भंडार जमा हो गया और कीमतें गिरने लगीं. बाद में सऊदी अरब को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने बड़ी कटौती की.

बारकिंदो सऊदी-रूस गठबंधन को तेल के इतिहास में "एक नया अध्याय" बताते हैं. संयुक्त अरब अमीरात के ऊर्जा मंत्री सुहैल अल-माजरोई ने पिछले महीने कहा कि नए गठबंधन का "ड्राफ्ट चार्टर" 2018 के आखिर तक तैयार कर लिया जाएगा.     

सऊदी ऊर्जा मंत्री फालेह मानते हैं कि रूस के साथ साझेदारी "दशकों और पीढ़ियों" तक चलेगी. उनका कहना है कि इससे यह संदेश भी जाएगा कि सऊदी अरब ओपेक के दायरे से बाहर भी तेल उत्पादक देशों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि इस नए गठबंधन से तेल के अंतरराष्ट्रीय बाजार में ओपेक की भूमिका कमजोर होगी. हरमी की राय है, "जब से रूस इस सहयोग समझौते में शामिल हुआ है, तब से ओपेक की चमक कुछ कम हो गई है.. संदेश साफ था कि सिर्फ ओपेक से काम नहीं चल सकता." वहीं हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के सेजने कहते हैं कि "ओपेक तो एक तरह से खत्म हो गया है," लेकिन यह फिर भी उपयोगी है क्योंकि इसके जरिए सऊदी अरब को छोटे तेल निर्माता देशों के साथ आदान प्रदान का मंच मिलता है.

एके/आईबी (एएफपी)