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तेल उत्पादन में रिकॉर्ड कटौती का ऐलान

१९ दिसम्बर २००८

तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने उत्पादन में अब तक की सबसे बड़ी कटौती के अंतर्गत रोज़ाना 22 लाख बैरल की कटौती करने का फैसला किया. ओपेक के साथ रूस ने भी उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया है.

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अल्जीरिया में हुई ओपेक बैठक के दौरान तेल उत्पादन में कटौती का फैसला लिया गया.तस्वीर: picture-alliance / dpa

सऊदी अरब के तेल मंत्री अली नईमी ने बताया कि अलजीरिया के ओरान शहर में तेल उत्पादक देशों की बैठक में सहमति बनी है कि अब से प्रतिदिन 22 लाख बैरल कम तेल का उत्पादन होगा और फ़ैसला एक जनवरी से अमल में लाया जाएगा.

इस बार रूस और अज़रबायजान जैसे ग़ैर-ओपेक सदस्यों ने भी ऐलान किया है कि वे प्रति दिन छह लाख बैरल कम तेल बनाएंगे. बाज़ार में कुल मिलाकर 28 लाख बैरल कम तेल उपलब्ध होगा यानि विश्व में तीन प्रतिशत की कटौती. इस फैसले से ओपेक को उम्मीद है कि तेल की गिरती कीमतों को रोका जा सकेगा.

एक समय जुलाई में कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी लेकिन आर्थिक संकट के चलते, गिरती मांग के कारण क़ीमत 100 डॉलर से भी ज़्यादा गिर कर 44 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी.

Symbolbild Preis für Öl steigt auf neue Rekordhöhe
इस साल जुलाई में तेल की क़ीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं जिसके बाद रिकॉर्ड गिरावट आईतस्वीर: picture-alliance/ dpa

दुनिया के सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश, सउदी अरब कुछ समय पहले से उत्पादन में कमी की मांग करता आ रहा था और ओपेक के फैसले से पहले ही उसने निर्यात में कमी कर दी थी.

इस बीच रूस के उप-प्रधानमंत्री इगोर सेचिन ने कहा कि रूस ओपेक के साथ सहयोग करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है और शायद वह ओपेक का सदस्य भी बन जाए.

इससे पहले अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजैंसी ने भविष्यवाणी की थी कि 1983 के बाद पहली बार तेल की मांग में कमी आई है जिससे मंहगाई दर कम होने के आसार बढ़ गए हैं. आर्थिक संकट के दौर में तेल की कम होती कीमतों का फायदा खासकर अमीर देशों के केन्द्रीय बैंको को मिला है जो महंगाई को भुलाकर आर्थिक संकट ने निपटने में ध्यान लगा सके.

विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे वक्त में कम होती तेल की कीमतों का आर्थिक बाज़ार पर नकारात्मक असर पड़ेगा. माना जा रहा है कि 2009 में भी तेल की मांग कम ही रहेगी और एक बैरल तेल का दाम 25 डॉलर तक गिर जाएगा. डॉएचे बैंक के अध्यक्ष मिशाइल ल्यूविस ने बताया कि ऐसे में मंगाई दर इतनी ज़्यादा गिर जाएगी कि इसका असर 70 साल पहले अमेरिका की महान वित्तीय मंदी यानि "ग्रेट डिप्रेशन" से भी कहीं ज्यादा बुरा होगा.