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तुर्क इमामों के लिए जर्मन शिक्षा

१९ जनवरी २०१०

जर्मनी में तुर्क आप्रवासियों के लिए तुर्की से इमाम आते हैं. उन्हें जर्मन भाषा व सामाजिक ज्ञान की शिक्षा देने के लिए एक पाइलट कार्यक्रम शुरू किया गया है.

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डुइसबुर्ग में जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिदतस्वीर: Driouich Hicham / DW

जर्मनी में रह रहे आप्रवासियों में तुर्क मूल के लोगों की संख्या सबसे अधिक है. वे आम तौर पर मुसलमान हैं, शहरों में उनकी मस्जिदें भी हैं, और वे चाव से दूसरे धर्मों के अनुयायियों को वहां आमंत्रित भी करते हैं. अन्य धर्मों और संस्कृतियों में रुचि रखने वाले लोग वहां जाते भी हैं. मस्जिद में तुर्की से आए इमाम होते हैं, जो तीन साल के लिए जर्मनी आते हैं. दिक्कत यह है कि लोग उनसे बात नहीं कर पाते, क्योंकि मेहमानों को तुर्क भाषा नहीं आती है, और तुर्की से आए इमाम अक्सर जर्मन नहीं बोल पाते हैं. हाल में जर्मन गृह मंत्रालय ने आप्रवास और शरणार्थी दफ़्तर को निर्देश दिया था कि विदेश से आने वाले इमामों के लिए एक भाषा व समेकन पाठ्यक्रम तैयार किया जाए. न्युरेमबर्ग में पहला ऐसा पाठ्यक्रम आयोजित किया गया.

मेरा नाम हाकान है. आपका नाम क्या है? मेरा नाम यासीन है - जर्मन में ऐसे ही ज़रूरी, लेकिन मामूली वाक्यों के साथ पाठ्यक्रम आगे बढ़ाया जा रहा है. भागीदार चाहते हैं कि उन्हें थोड़ी बहुत जर्मन बोलनी आए और जर्मन संस्कृति के बारे में थोड़ी जानकारी मिले. पूर्वाग्रहों को दूर करना, विवादों में मध्यस्थता और जर्मनी में मुसलमानों के प्रति समझ बढ़ाना - ये भी इमामों के काम हैं, और इनके लिए भाषा की जानकारी ज़रूरी है. इसलिए सारे जर्मनी में 130 इमामों ने मिलकर एक परियोजना शुरू की है, जिसका नाम है समेकन के लिए इमाम. न्युरेमबैर्ग के इस कोर्स में 15 लोगों को शामिल करने की योजना थी, आए हैं फ़िलहाल 7, जिनमें से दो महिलाएं हैं. कोर्स के प्रधान हाकान आल्टिनोक कहते हैं कि कुछ लोगों का कहना था कि रास्ता बड़ा लंबा है. कुछ लोगों का ख़्याल था कि उन्हें काफ़ी जर्मन आती है, तो कुछ लोगों को दिलचस्पी नहीं थी. कई लोगों ने आने से मना कर दिया.

Tag der offenen Moschee
जर्मनी की एक मस्जिद में.तस्वीर: dpa

हफ़्ते में चार दिन सुबह कक्षाएं होती हैं. भाषा के साथ-साथ जर्मनी के संदर्भ में सामाजिक ज्ञान की शिक्षा दी जाती है. गोएथे संस्थान, भारत में जिसे मैक्सम्युलर भवन कहा जाता है, इस पाठ्यक्रम का आयोजन कर रहा है. संस्थान की प्रतिनिधि अंगेला काया कहती हैं -

आपको सोचना पड़ेगा कि यहां पाठ्यक्रम में भाग लेने के साथ-साथ उन्हें मस्जिद में भी अपना काम करना होता है, यानी कि उन पर काफ़ी बोझ है. उन्हें आसपास के शहरों से यहां तक आना पड़ता है, शब्द याद करने पड़ते हैं, परीक्षा देनी पड़ती है. हम इसे काफ़ी गंभीरता से ले रहे हैं. - अंगेला काया

हालांकि भाषा शिक्षा पर ज़ोर दिया जा रहा है, लेकिन दूसरे विषयों पर भी ध्यान दिया जा रहा है. कोर्स के प्रधान हाकान आल्टिनोक की राय में दोनों महत्वपूर्ण हैं -

इरादा यह है कि वे अपने काम की दुनिया को जर्मन भाषा में पेश कर सकें. ताकि वे अपनी मस्जिद और उम्मा का परिचय दे सकें. मिसाल के तौर पर वे बता सकें कि धार्मिक कामों के अंतर्गत वे क्या करते हैं, खुतबे में वे क्या पढ़ते हैं, उसका एक हिस्सा वे जर्मन में भी पढ़ सकते हैं. - हाकान आल्टिनोक

इसके अलावा गिरजों के दौरे का भी आयोजन किया जाएगा, उन्हें दफ़्तरों का भी परिचय दिया जाएगा. आप्रवासी समुदाय के लोग अक्सर अपनी समस्याओं को लेकर इमाम के पास पहुंचते हैं. अगर उन्हें दफ़्तरों के काम-काज के बारे में पता हो, तो वे मदद कर सकते हैं. जहां तक जर्मन भाषा शिक्षा का सवाल है, तो भारत में मैक्सम्युलर भवन की तरह तुर्की में भी गोएथे संस्थान लंबे समय से उनका आयोजन कर रहा है. लेकिन अंगेला काया की राय में यह काफ़ी नहीं है. उन्हें बेहद ख़ुशी है कि इस परियोजना में तुर्क इस्लामी यूनियन और तुर्क दूतावास उनके साझेदार हैं. फ़िलहाल न्युरेमबैर्ग और कोलोन में तीन साल तक इसे चलाया जाएगा. फिर इसके विस्तार की भी योजना है. अंगेला काया कहती हैं -

Deutschland Muslime Imam Gebet in der Sehitlik Moschee Berlin
बर्लिन में खुतबा पढ़ते इमामतस्वीर: picture-alliance/ dpa

कस्बों के बीच काफ़ी दूरी है और हम सोच रहे हैं कि कक्षा में शिक्षा, पत्राचार से शिक्षा और खुद अभ्यास के बीच कैसे सामंजस्य तैयार किया जाए. किस तरीके से हम काम करें, ताकि बाद में एक स्थाई, देशव्यापी कार्यक्रम तैयार हो सके. - अंगेला काया

रिपोर्ट: कार्लो शिंडहेल्म/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: अशोक कुमार