तस्वीर जो दिल को छूती है
यह तस्वीर क्षुब्ध करने वाली है. यह गृहयुद्ध में फंसे सीरिया से भागने की नाकाम जानलेवा कोशिश की भयावहता को दिखाती है. यह खास घड़ी की दास्तान है, लेकिन ऐसी जो भूमध्यसागर में हर रोज कहीं न कहीं घट रही है. इस तस्वीर में गृहयुद्ध की विभीषिका कैद है. यह ऐसी तस्वीर है जो दिल को छूती है. यह ऐसी तस्वीर है जो तकलीफदेह संवेदना के साथ चुप करा देती है. यह ऐसी तस्वीर है जो हमारी बेबसी का अहसास कराती है. यह ऐसी तस्वीर है जो सोचने को मजबूर करती है. हमें स्तब्ध करा देती है. यह ऐसी तस्वीर है जो हम सबको संवेदना से भर देती है. यह साल की तस्वीर है, शायद दशक की. यह उस सब का प्रतिनिधित्व करती है जो इन दिनों हमें आंदोलित कर रही है, छू रही है, क्षुब्ध कर रही है. यह एक भयानक तस्वीर है.
सवाल है कि क्या इसे दिखाया जाना चाहिए? क्या हमें, डॉयचे वेले को इसे दिखाना चाहिए? इसके समर्थन में दलीलें हैं, इसके विरोध में दलीलें हैं. इसमें सम्मान की बात है, बच्चे की मर्यादा की बात है और मीडिया के उचित संयम की बात है. हमने इस तस्वीर को दिखाने का फैसला किया है. सनसनी फैलाने के मकसद से नहीं, क्लिक बढ़ाने के उद्देश्य से नहीं, टेलिविजन की पहुंच बढ़ाने के मकसद से नहीं. हम इसे इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि यह हम सब को झकझोर रही है. हम इसे दिखा रहे हैं क्योंकि यह शरणार्थी समस्या को एक प्रतीक दे रहा है. एक निर्दोष बच्चा, जिसे मानवीय भविष्य देने के लिए माता-पिता ने खतरनाक रास्ता चुना था, जिसका अंत समुद्र में मौत के साथ हुआ.
हम इसे इसलिए भी दिखा रहे हैं कि इसने हमें झकझोर दिया है और संपादकीय बैठक में हम सोच मे पड़ गए थे और गुमसुम हो गए थे. तकलीफ और मृत्यु से शोकसंतप्त. हम इसे इसलिए दिखा रहे हैं कि हम इस तकलीफ को महसूस करते हैं और अपने व्यस्त रोजमर्रे में हमने एक क्षण सोचा है, इस तस्वीर के सामने.