ड्रोन रखेंगे माओवादियों पर नजर
२३ अक्टूबर २०१३कोलकाता पुलिस ने दुर्गापूजा की भीड़ के दौरान कोलकाता में पंडालों व सड़कों पर उमड़ने वाली भारी भीड़ पर निगाह रखने के लिए पहली बार इसका सफल इस्तेमाल किया था. उसके बाद ही माओवादी इलाकों में इनके इस्तेमाल की योजना बनी. कोलकाता के पुलिस आयुक्त सुरजीत कर पुरकायस्थ कहते हैं, ‘पूजा के दौरान भीड़ पर निगरानी और ट्रैफिक पर नियंत्रण करने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के नतीजे संतोषजनक रहे हैं.' वह कहते हैं कि आगे से महानगर में कानून व व्यवस्था से जुड़े दूसरे मामलों में भी इनका इस्तेमाल किया जाएगा. इससे पुलिस को मौके पर पहुंचने से पहले ही हालात की जानकारी मिल जाएगी.
माओवादी गतिविधियों वाले इलाकों में तैनात पुलिस व खुफिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पहले भी कई बैठकों में ड्रोन की तैनाती का मुद्दा उठाते रहे हैं. एक बार पहले भी इस योजना पर विचार हुआ था. तब परीक्षण के दौरान इनमें लगे कैमरों से खींची गई तस्वीरों के साफ नहीं होने की वजह से इस योजना को ठंढे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन अब कोलकाता पुलिस को मिली कामयाबी ने इस फैसले पर अंतिम मुहर लगा दी है.
जंगलमहल के हालात
जंगलमहल यानी पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा व पुरुलिया में माओवादियों के असर वाले इलाकों में काफी घने जंगलों की वजहों से सुरक्षा बलों के लिए प्रभावी तरीके से निगरानी संभव नहीं है. वाममोर्चा सरकार के शासन के आखिरी दिनों में तो जंगलमहल इलाका माओवादी आतंक का पर्याय बन गया था. इसी वजह से उसका नाम जंगलमहल पड़ गया, यानी जहां कानून का कोई राज नहीं हो.
ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद हालात तेजी से बदले हैं. ममता ने इलाके में शांति बहाल करने को अपनी प्रथामिकता सूची में रखा है. मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभालने के बाद वे अब तक आधा दर्जन बार इलाके का दौरा कर दर्जनों विकास परियोजनाओं का एलान कर चुकी हैं. इलाके में आदिवासी लोगों की बहुलता है. सरकार ने उनके लिए नए स्कूल, कॉलेज व अस्पताल खोलने के अलावा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की स्कॉलरशिप देने का भी एलान किया है. युवतियों को मुफ्त साइकिलें बांटी गई है ताकि वह स्कूल जा सकें.
इन बस कदमों से माओवादी गतिविधियों पर कुछ अंकुश तो लगा है, लेकिन खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. खुफिया विभाग की रिपोर्टों में कहा गया है कि लंबी चुप्पी के बाद माओवादी एक बार फिर इलाके में अपने पैर जमाने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में ड्रोनों की तैनाती सुरक्षा बलों के लिए माओवादियों के खिलाफ एक बेहद असरदार हथियार साबित हो सकता है.
ड्रोन
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की ओर से विकसित ऐसे एक ड्रोन की कीमत लगभग 65 लाख रुपए है. पुलिस उपायुक्त (मध्य कोलकाता) डी.पी.सिंह बताते हैं, "ड्रोन एक बार में तीन घंटे तक उड़ान भर सकते हैं. इनको किसी खास जगह पर स्थिर भी रखा जा सकता है. इसलिए यह निगरानी के लिए काफी मुफीद है. इन्फ्रारेड तकनीक की सहायता से यह रात के अंधेरे में भी बेहतर तस्वीरें खींच सकता है." अतिरिक्त पुलिस आयुक्त देवाशीष राय कहते हैं, "उड़ान भरने और किसी भी कोण से तस्वीर खींचने की ड्रोन की क्षमता इसे एक असरदार हथियार बनाती है. सुरक्षा बल के जवान माओवादी हमलों का खतरा उठाए बिना उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं." पहले माओवादी हमलों में इलाके में दर्जनों पुलिस वालों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत हो चुकी है.
राज्य पुलिस के आईजी(आधुनिकीकरण) बरुण मल्लिक बताते हैं कि जंगलमहल में तैनाती के लिए ड्रोन की खरीद पर अंतिम फैसला जल्दी ही किया जाएगा. उन्होंने बताया, "जंगलमहल में इनकी तैनाती के बाद इस परियोजना के लिए एक अलग तंत्र विकसित किया जाएगा ताकि ड्रोन से मिलने वाली तस्वीरों को पुलिस मुख्यालय के अलावा खुफिया विभाग को भी भेजा जा सके. उनके विश्लेषण के आधार पर ही भावी रणनीति तय की जाएगी."
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: निखिल रंजन